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धर्म का गीत

3 August 2024

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                         धर्म  का  गीत

आज मनुष्य की मनुष्यता पर सवालों का पहाड़ टूट पड़ा है , यह सवाल न केवल अंदर तक चीर कर रख देते हैं बल्कि कई बार शक करने पर मजबूर कर देता की यह जीव जो दशकों से अपने आपको बुद्धि का स्वामी समझता आया है क्या यह सच में मनुष्य कहलाने लायक भी है य नहीं जो धर्म की आड़ लेकर देशवासियों   की धार्मिक मान्यताओं को सुई की नोक पर रख कर जन समृद्धि के खोखले वायदे करते हैं । परेशानी तब नहीं होती जब यह चंद नेता किसी एक धर्म के महान होने पर जोर देते हैं, बल्कि परेशानी का मुद्दा तब बन जाता है जब ये एक धर्म के दूसरे धर्म पर महान होने की बात पर बहुत ज्यादा जोर देते हैं ताकि इससे यह साबित कर सकें कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि ईश्वर के भेजे कोई दूत हैं जिन्हें खुद से ज्यादा एक धर्म की चिंता हैं। यह चिंता तब कहां गई थी जब आपके भड़काए हुए सांप्रदायिक दंगों की चपेट में आकर कई मासूमों ने अपना सब कुछ गवा दिया था , और चिंता करें भी क्यों ? क्योंकि सांप्रदायिक दंगों में मरने वाले व्यक्ति आपके लिए बस शतरंज के प्यादे हैं , उन अन्य धर्म के लोगों की बस इतनी गलती थी की वे ऐसे मजहब में जन्में, जिसमें जन्म लेकर शायद हर अन्य धर्म के व्यक्ति उन्हें एक आतंकवादी की नजर से देखते हैं , लेकिन उन अन्य धर्मों के लोगों की नजरों को आखिर वो चश्मा दिया किसने ? जिससे हर टोपी लगाने वाला आम इंसान आतंकवादी य देशद्रोही से कम न लगे । ऐसे चश्मे कई नेताओं के दफ्तरों में बनाए व आम जनता को अलग अलग माध्यमों से भेंट किए जाते हैं जिन्हें पहनकर एक आम इंसान अपने आपको दूसरे धर्मों से ऊंचा समझने लगता है और बाकियों को देशद्रोही और उसके अंदर ऐसे ही गर्व की भावना जगाई जाती है की दशकों से इन अन्य धर्म के लोगों ने आपके धर्म के लोगों को सताया है , जिससे एक आदमी एक ही डंडे से सारे गैर धर्म के लोगों को हांकने लगता है । यह चश्में उन व्यक्तियों को बिल्कुल भी नहीं बेचे जाते जिनका पतन नेताओं द्वारा तय किया गया है । मेरा मानना है की अगर आप अपनी सत्ता के लालच के चलते एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के खिलाफ जाति य धर्म के बल पर खड़ा करते हो तो आप मानवता की हत्या कर रहे हो , जिससे एक मनुष्य खुद को एक आम मानव समझने के बजाए धर्मज़न समझना शुरू केरदेता है । शायद वास्तव में इन नेताओं ने हिंदुस्तान का फिरसे बंटवारा करवा दिया है , दिवारी सरहदों से नहीं बल्कि देशवासियों के बीच अब दिमागी और दिल्हीं सरहदों ने देश में अपने पैर पसार लिए हैं , अंग्रेजी नौकरशाही ने जो कसर छोड़ी वो इन चंद चंद नेताओं  ने पूरी करदी । आजकल हर कूचों चौराहों पर कोई न कोई खोखला व्यक्ति एक धर्म के दूसरे धर्म के ऊपर होने पर दर्जन भर कमजोर तर्क देता नजर आजाएगा , वास्तव में ये खोखले व्यक्ति भी इन जुमलेबाज नेताओं के कच्चे भाषणों द्वारा प्रेरित हैं , जिनकी खुद की कोई विचारधारा नहीं है और अपनी बूढ़ी होती राजनीति को धर्म की लाठी का सहारा दे रहे हैं ।
इन चंद नेताओं के धार्मिक षडयंत्र अब कागजी अखबारों तक सीमित नहीं रह गए बल्कि एक आधुनिक रूप ले चुके हैं , जिससे यह षडयंत्र भरी अफवाएं हर जगह है टी.वी से लेकर आपके इंस्टाग्राम व यूट्यूब फीड जिसमें दिखाया जाता है आपका धर्म महान है और दूसरे धर्म के व्यक्ति आपके कट्टर दुश्मन हैं। हमारा धर्म महान है यह शायद हर अन्य धर्मों के व्यक्तियों को भली भांति ज्ञात है लेकिन दूसरे धर्म नीच है यह बात यह चंद नेता आपको सिखा रहे हैं । आजकल भारत बस हर पल इसी धर्म की नोंकझोंक तले पीस रहा है । यह चंद नेता देश चलाने के लिए जिस निति का प्रयोग कर रहे हैं वो राजनीति तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह तो धर्मनीति है ।
इन चंद नेताओं के धर्म की ईंटों से बने महल ध्वस्त करने के लिए और वास्तव में जन समृद्धि लाने के लिए हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को धर्मजन मानने के बजाय एक आम इंसान समझे , जैसी मानवीय कमज़ोरियां एक आम आदमी में है वैसी ही मानवीय कमज़ोरियां इन चंद नेताओं में भी है तथा इन नेताओं को अपना भगवान मानना छोड़ दो क्योंकि यह केवल जन सेवक है और जन सेवक होने की सारी शर्तें इन पर लागू होती हैं । और देश में एक सच्चा व भरोसेमंद मीडिया सिस्टम होना तो अति आवश्यक है ,जो किसी एक जाति, मजहब के अंधे पैरोकार न हो , जैसे वर्तमान के काफी मीडिया हाउस चंद नेताओं द्वारा खरीदे जा चुके हैं और यह मीडिया हाउस इन्हीं चंद नेताओं की खोखली तारीफें करते नहीं थकते , देश के नागरिकों को एक धर्म के विरुद्ध भड़काने में इन मीडिया हाउस ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी । वास्तव में एक बीके हुए पत्रकार और एक तवायफ में ज्यादा फर्क नहीं होता बस तवायफ की इज्जत बिके हुए पत्रकार से कई अधिक होती है जिसने अपना ईमान बेचा होता है वो भी बस चंद रूपयों के लिए । इन मीडिया हाउस का आम नागरिकों को अंधभक्त बनाने में  अच्छा खासा हाथ है , जिनसे अगर राजनीतिक , सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर अगर बहस करने बैठें तो बस अपने पूज्य नेता जिनके ये अंधे पैरोकार है उनकी तारीफें करते नहीं थकते और जब बहस के दौरान आर्थिक आंकड़ों ( जैसे hunger index, per capita income, happiness index, unemployment rate, crime rate etc.) का हवाला देकर इनकी आंखें खोलने की कोशिश की जाती है तो इन्हें सच्चाई हजम नहीं होती और इन्हें सच्चाई के नाम से उल्टी आती है , फिर यह अंधभक्त आपको गुस्से व खोखले बयानों के बल पर अपना मुंह बंद रखने पर मजबूर करते हैं । अगर सच में आपको देश की चिंता है तो पहले अपने आपको धर्मजन मानना बंद करें और धर्म का प्रयोग केवल मानवता के कार्यों में करें जिससे धर्म को मानवता के विनाश का कारण बनने से काफी हद तक मुक्ति मिलेगी , इन बीके हुए मीडिया हाउस का बहिष्कार करना शुरू करदो जो झूठी खबरों के बल पर आम जनता की भावनाओं का लाभ लेकर धार्मिक विद्रोह भड़काने की कोशिश करते हैं। आखिर में मैं यही कहना चाहता हूं की सभी धर्म मानवता के अधीन हैं और जो व्यक्ति धर्म का सहारा लेकर राजनीति को धर्मनीति बना रहें हैं और धर्म को लोगों के दिलों से निकालकर उनके दिमागों में चढ़ा रहे हैं वे सबसे बड़े नास्तिक हैं। और याद रहे प्रत्येक धर्म के व्यक्ति की दिल में केवल एक ही धर्म होना चाहिए और वो है मानवता का धर्म ।
                                               — अज्ञात