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नये पासे

27 October 2022

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लिख रहा हूँ रंग
बदलते चेहरो की हकीकत के 
जिसमे शामिल हूँ आज मैं भी
आज इन कतारो में,
अब कैसे मिलाऊँगा
नज़रे आईने के सामने
खुद से औऱ औरो से
जिनके लिए आदर्श हूँ
मगर अब लगता है 
इस समाज का
कोई विकल्प लिए बैठा हूँ
जब चाहा तब वही चेहरा
लगा लिया अपनी सहूलियत
के अनुसार औऱ छुपा लिया
खुद को नीयत की आस्तीन में
नये पासे फेकने के लिए
नये तरीको से आँखो में
धूल झोकने के लिए |

अजय निदान
सर्वाधिकार सुरक्षित
9630819356


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Articles
जिंदगी का चेहरा
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ये मेरे निजी एहसास है जो ज़माने से मिले हैं कुछ अपनों से और कुछ ज़माने के उन लोगों से जिन्होने मुझे और मेरी शराफत का पूरा फ़ायदा ही उठाता रहा, लोग ईमानदार इंसान को ही ज़्यादा परेशान करते है आजकल के परिवेश में चलन है ये  जिंदगी में कुछ लोगो का. यह बुक मेरी समर्पित है जो जिंदगी को को अच्छे से जानना और वाकई में समझना चाहते है क्योंकि जिंदगी में वक़्त ने इतने मोड़ लिए है कि बयान करना मुश्किल है हे शब्द भीगा हुआ है अश्कों में मेरे इसलिए पढियेगा.
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नये पासे

27 October 2022
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लिख रहा हूँ रंगबदलते चेहरो की हकीकत के जिसमे शामिल हूँ आज मैं भीआज इन कतारो में,अब कैसे मिलाऊँगानज़रे आईने के सामनेखुद से औऱ औरो सेजिनके लिए आदर्श हूँमगर अब लगता है इस समाज काकोई विकल्प लिए ब

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छल

27 October 2022
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मैंने लिखाआँखेउसने नज़र लिखा,मैंने लिखासफ़रउसने रास्ता लिखामैंने लिखादर्दवो लिख न सकाऔर मैं रुक न सकादोनो ही गिर गयेफिर न उठेइस एक पल सेन जाने किस छल से ?अजय निदानसर्वाधिकार सुरक्षित9630819356

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प्यार की भाषा

27 October 2022
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कह दियाआज उनसे मैंनेवो भी समझ गईआँखों की भाषामेरी अभिलाषाफेंका था उसनेनज़रों का पाशाउसमें से उभरीप्यार की आशाऔर बदल गयीफिर नज़र की भाषाहकीकत थी एक ओरदूसरी तरफ चरित्र का खुलासामैंने देखा सिर्फ मनलेकिन नज़

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काले वर्तमान

27 October 2022
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आँखे ही नहीं रहीं तो रह क्या गया वजूद में उसकेअब ये अँधेराहर पल उसके इर्दगिर्दजो की वजूद को झूठलायेगा,क्या लड़ सकेगा वो शख्स,और दिन को रातकी भांति ही जी सकेगा,अपने आसपास के हालातों मेंक्

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सितम

27 October 2022
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और ग़म बहुत कमआँखे नमहरदममैं चलता भी कैसेसमुन्दर था आँखों मे सनमएक तेरा ग़म एक मेरा ग़मवक़्त के कम न हुये सितमआबाद तो हो न सकाआशियाना मेराबर्बाद होने के लिएबहुत बेताब रहे हम।अजय निदान9630819356सर्वाध

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मुमकिन नहीं

27 October 2022
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आज फिरसोचा तुझे हर बारकई बार कण-कण मेऔर न पूछो हमसे कहां कहां हर जगह हर कहीं पर चेहरा ही नजर आता है ,फिर आंख खुलती है तो ऐसा लगता है कि सच नहीं ,एक पल आईने के सामने सोचता रह जाता हूँ कि कहा

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अंतिम पड़ाव

7 November 2022
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जीवन दर्शन के योग्य नहीं हैंवक़्त का पड़ाव जब आपके हक में न होतब ही असल दर्शन होता जीवन का,फिर ऐसे पड़ाव तो गरीब की ज़िंदगी मेरोज़-रोज़ आते ही रहते है फिर जबउम्र जवाब देने लगे औऱअपने ही आँख दिखाने लगेतब जीव

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बुनियाद

7 November 2022
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समाज की बुनियादी सोच में दरार हैंइसलिए तो जहाँ में औरत एक सवाल हैंऔरपुरूष एक प्रश्नचिन्ह हैंहालांकि की दोंनो ही सवाल और जवाब हो सकते हैंमगर फर्क सोच का हैंनींव में दरार का हैंये सिलसिला मेरे पहले

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