तुम क्यूं नहीं आये ?
बहुत आनंदायक थीं अपनी अल्हड़ बात
हर पल रहते थे दुनिया से अलग एक ही साथ
ना कोई परवाह ,न थी किसी बात का डर
चिंता नहीं, व्यस्तता नहीं, अमराई में खेलते थे दिनभर
मित्रों से अक्सर पुछ लिया करते थे: तुम क्यूं नहीं आये
कबड्डी खेल जम गया तो पेड़ों पर किताबें कहीं छुपा कर,
चौराहे पर मदारी देखने लगे तो स्कूल पहुंचते थे देर कर
कभी गुरुजी से झूठ बोल कर, कभी मां से बहाना बनाकर
नहीं थी पढ़ाई से लगन, नहीं थी कठिन परीक्षा की ख़बर
घर लौटते मिलते थे सहपाठियों से, अक्सर पुछते थे: तुम क्यूं नहीं आये
पाठशाला थी अपने बचपन का सुंदर जगह
जहां चेहरे पर मुस्कान रहती, मन में हर पल स्फूर्ति
पैरों में पर थे लगे, आंखों में कभी नहीं होती सुस्ती
ना विशेष अपील, ना होते थे विशेष आपसी विवाद ही
लड़कर भी फुरसत में पूछते थे: तुम क्यूं नहीं आये!!!!!
: परवेज आलम ' भारतीय ' 9931481554