भारत में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों ने जो भी देखा है, वह उधार की आंखों से देखा है। जो भी कहा है, वह आयातित विचारों के आधार पर कहा है। जो भी सुना है, आधा-अधूरा सुना है तथा जो भी माना है, बिना जाने ही माना है।
बाबा साहेब अंबेडकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जानने का मार्ग अपनाया। जो भी व्यक्ति जानने की बजाय, मानने का मार्ग अपनायेगा उसकी कोई न कोई भावना अवश्य ही आहत होंगी। असहमति, असन्तुष्टि भी उसी प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
उधार की आंखों पर अविश्वास, आयातित विचारों का त्याग, कच्चे कानों को किनारा कर केवल जानने की प्रक्रिया पर ऊर्जा लगाइये। यकीन कीजिए जाति, धर्म से लेकर मान्यता व इतिहास तक बहुत कुछ ऐसा मिलेगा जो आपको अचंभित, परिवर्तित और तार्किक बनायेगा।
श्रेष्ठ रस्तोगी ✍️
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