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सपनों का सौदागर.....करण सिंह

Karan Singh

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यह बुक कहानीकार करण सिंह ने अपने जीवन के अनुभवों को श्रोताओं के साथ साझा करने के उद्देश्य से लिखा है। हम अक्सर अपने जीवन मे कई बार छोटी छोटी बातों से हार जाते हैं जिस कारण से हम अपने जीवन से नर्वस हो जाते हैं। हम अक्सर मुसीबतों से हार जाते हैं और अपन जीवन से तंग आ जाते हैं क्योंकि हम मुसीबत को मुसीबत के रूप में देखते है जबकि दोस्तों मुसीबतें ही होती हैं जो हमारे जीवन को श्रेष्ठ मार्गदर्शन देती हैं। मुसीबतों से लड़कर ही हम जीवन को बेहतर बना सकते हैं। यही बात यहाँ बड़ी खूबसूरती के साथ कहानीकार करण सिंह ने अपने श्रोताओं को समझाने की कोशिश करते नजर आएंगे। सपनों का सौदागर.......करण सिंह ***************************************** *🌸प्रेरक कहानी🌸*#सहारा** 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर......करण सिंह💐 ***************************************** *#सहारा___** 👇👇👇👇 गर्मियों की छुट्टियों में 15 दिन के लिए मायके जाने के लिए पत्नी ज्योति और दोनों बच्चों को रेलवे स्टेशन छोड़ने गया तो मैडमजी ने सख्त हिदायत दी। ★ माँजी-बाबूजी का ठीक से ध्यान रखना और समय-समय पर उन्हें दवाई और खाना खाने को कहियेगा। ● हाँ.. हाँ..ठीक है..जाओ तुम आराम से, 15 दिन क्या एक महीने बाद आना, माँ-बाबूजी और मैं मज़े से रहेंगे..और रही उनके ख्याल की बात तो... मैं भी आखिर बेटा हूँ उनका, (मैंने भी बड़ी अकड़ में कहा) ज्योति मुस्कुराते हुए ट्रैन में बैठ गई, कुछ देर में ही ट्रेन चल दी.. उन्हें छोड़कर घर लौटते वक्त सुबह के 08.10 ही हुए थे तो सोचा बाहर से ही कचोरी-समोसा ले चलूं ताकि माँ को नाश्ता ना बनाना पडे। घर पहुंचा तो माँ ने कहा... ° तुझे नहीं पता क्या..? हमने तला-गला खाना पिछले आठ महीनों से बंद कर दिया है.. वैसे तुझे पता भी कैसे होगा, तू कौन सा घर में रहता है। आखिरकार दोनों ने फिर दूध ब्रेड का ही नाश्ता कर लिया..!! नाश्ते के बाद मैंने दवाई का डिब्बा उनके सामने रख दिया और दवा लेने को कहा तो माँ बोली। ° हमें क्या पता कौन सी दवा लेनी है रोज तो बहू निकालकर ही देती है। मैंने ज्योति को फोन लगाकर दवाई पूछी और उन्हें निकालकर खिलाई। इसी तरह ज्योति के जाने के बाद मुझे उसे अनगिनत बार फोन लगाना पड़ा, कौन सी चीज कहाँ रखी है, माँ-बाबूजी को क्या पसन्द ह 

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