साजिश ए इश्क का दौर है संभल कर चल,
मिले न जिस्म तो कट जाते है टुकड़े कई ।।
मोहब्बत आज भी कोडी है सिर्फ भूख की,
मिटे न तो उड़ जाती है रूह तक खुद ही गोई।।
यह दौर बस इश्क के तो मुगालते का है,
असल है वासना जो नकाब है ओढे खड़ी।।
बहुत हुआ तो काट लेगे वक्त कुछ जरा,रकीब सा,,
जो आई बात जिन्दगी की तो लगेगी न वह भली।।
वो दौर और था जब इश्क नही होता प्रेम था,
स्नेह रहता था नेह वात्सल्य सा, वो बात ही न रही।।
देह जिंदा है रूहें है देखो मर चुकी,
इसी को साजिश ए इश्क मे है अब री चली।।
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संदीप शर्मा।।
देहरादून उत्तराखंड ।।