आज उसने अभी तक रोटी नही बनाई,
पांच ही तो बजे हैं अभी ज्यादा समय थोडा ही हुआ हैं भाई।।
फिर मना करने पर जब पति ने खुद बना मां बेटे को दी खिलाई,
तो अपनी नही बना सकता था,
कहा थी कोई मौत उसको आई।।
फिर मशीन लगा बीस पच्चीस कपड़े भी तो धोने थे,
उठती थोडे लेट ही हैं न,,इतवार था,न,आज
तो,कुछ सपने भी तो संजोने थे।।
वैसे रोज जल्दी सात सवा सात उठ ही जाती हैं,,
वो आठ बजे का स्कूल है न सौतेले बेटे का तो उसके लिए नाश्ता भी तो बनाती हैं।।
पति ,नकारा काम नही कोई, सुबह पांच साढे पांच उठ जाता हैं।।
सास बूढी बिमार सो कहा पाती हैं,
इसीलिए सुबह उसके उठने से पहले ,
अक्सर नाश्ते की तैयारी कर जाती हैं।।
वो क्या हैं न थोडी बात वो जुदा हैं,
नए जमाने की है न ,
सो बहुत कुछ छूटा हैं।।
और फिर यह कौन सा बच्चा अपना सौतेला ही तो है न।।
क्या हुआ जो यह पहले से ही तलाकशुदा हैं।।
पति की मां को तो आदत होती ही हैं टोकने की,
पति कहा रहता हैं बस मे कही,
आदत उसकी भी हैं बस भौंकने की।।
अब यदि, वह बेचारी गर चौबीस घंटो मे जो सौलह सत्रह घंटे बिस्तर पर पडी सुस्ता ले,
तो सबको आग लग जाती हैं,
मोबाइल ही तो चलाती है लेटे लेटे ,
नींद थोडे ही आती हैं।।
सब पीछे पडे रहते हैं,
क्या हुआ जो किसी के आने पर पानी पिलाने को चिल्लाते हैं।,
जरा पूछे कोई खुद नही दे सकते ,
जो बेकार भुनभुनाते हैं।।
समझते ही नही ग्वार कही के,
पीछे ही पडे रहते हैं बेचारी सती के,
एक तो स्त्री होने से वैसे ही सताई हैं ,
फिर यह क्या कम हैं कि इक विधुर को ब्याही हैं।।
कितने अरमान थे जो सारे घर वालो ने कुचल डाले,
पंसद थी कोई,
सब.शौक ही मेरे मार डाले,
और फांस गले मे ,
कैसे कहूं कि कोई निकाले।।
पति पहला भी बदचलन ही था,
और अब का भी,
प्रमाण पत्र दिया था ,इसी ने,,
तबका भी और अब का भी।।
बस सावित्री को काश वो वाला,
सत्यवान जो मिल जाता,
लौटा लाती उसे धर्मराज से ,
या खुदा यह वाला
अब भी,
मर भी क्यू नही जाता।।
नर्क बना डाला हैं इक अबला का जीवन,,
कदर ही नही लक्ष्मी की कोई कीमत।।
चौखा खाते हैं,कौन सा मुझे खिलाते हैं,
मै तो बस न खा पाने के कारण ,रोटी सब्जी,ड्रेसिंग टेबल मे रख लेती हूं,
तो उसपर भी बवाल करते हैं,
समझ नही आता ट्रंक मे रखे मसालो ,
पर क्यू चिल्लाते हैं।।
जाहिल हैं सब जब परदे की जगह कंबल टांग देती हूं तो वहा भी सवाल करते हैं।।
कोई इन्हे क्या बताए, की आधुनिक हूं,
सब कानून मुंह जुबानी याद हैं,
कुछ आडे तिरछा किया ,
तो इल्जाम लगाने मुझे भी आते हैं।।
बेशर्मी की हद तो तब करते हैं यह लोग ,
जब पति के पूजा का देखती हूं मैं ढोंग।।
तभी आज तक न दीपक जलाया ,हैं,,
न ही ठाकुर जी को भोग लगाया हैं।।
वो बात अलयहदा हैं गांव से था जब जागरण का था निमंत्रण आया,
मैने वहा खूब नाच नाच कर दिखाया हैं।।
यह बेकार के अनपढ ग्वार,
करते सताई हुई अबला का शिकार ,इंसान थोडे वहशी दरिन्दे हैं,,
बद्दुआ देती हूं तब भी जाने कैसे जिंदे हैं।।
या रब ऐसी मासूम को यही घर देना था,
कहा है तेरा विधान, जो मेरा सारा,
सुख चैन तुमने इन ग्वार संग मिल छीना हैं।।
कितनी संस्कारी हूं मैं,और कितनी सताई हुई,
देख रहे हो न रब कितनी मजबूर बनाई हुई। ।
काश मिल जाता वही सत्यवान,
तो मै भी पा लेती थोडा सुख और आराम।।
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संदीप शर्मा।।