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धूल-धूसरित टूटे- फूटे पथ परचल रहा नंगे-थके पाॅंवमज़दूर, दलितशोषित, कमज़ोर कृषकखुले नभ के नीचेसूनी आंखों सेधरती को सींचेविडम्बना तो देखियेअभिजात्य वर्ग, कारपोरेट जगत, पोषित धनवानइनके ही
अकसर उचट जाती है नींदढलती रात को गलियों में जबआवारा कुत्ते लगते हैं भौंकनेगरमियों की रातें शायद उन्हें नहीं भाते ठंडी रातों में दुबक कर कहीं सो जातेआख़िर बेचारे जायेंगे कहाँसरकारें आती हैं, जाती