विध्वंश दुदुम्भी सर पर तेरे नाद करे,
बन अनभिज्ञ कल से तु अपने आहृलाद करे !
जल्द ही!
जल्द ही, तु तम के कारे से घिर जायेगा,
उर की पीड़ा उर में दब दिशाहीन
तु, नग्न स्वयं को पायेगा!
कल आएगा, तेरा कल बीता बनके
संताप अश्रु के नयन भरे
तु, मध्य समर के पायेगा!
जो मुखरित थे मौन हुए अब
तत्पर हैं यश, मान, मुकुट लौटाएं कब!
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