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मां Mother

3 September 2022

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रूठने पर झट से मना लेती थी
मां दवा से ज्यादा दुआ देती थी
कुछ बात थी उसके हाथों में जो
भूख ही पेट से वो चुरा लेती थी
चोट कितनी भी गहरी लगी क्यों न हो
फूंक कर झट से वो भगा देती थी
मां पढ़ी कम थी मेरी मगर
हर मर्ज की वो दवा देती थी
आंख से आंसू निकलते नहीं थे
आंचल वो झट से फिरा देती थी
कुछ कहता न था मैं लब से मगर
खिलौना वही वो दिला देती थी
मुंह अंधेरे भी निकलूं जो घर से अगर
उठ कर खाना वो झट से बना देती थी
बहस कितनी भी कर लूं उससे मगर
मुस्कुरा कर सब वो भुला देती थी
मां दवा से ज्यादा दुआ देती थी।

 

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मैं ज़िंदा हूँ
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my book is an attempt to show the real sentiments of a poet when he feel happy, sad or motivated.