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मजदूर बच्चा और गरीबी

Satendra Narvariya

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इतना कहकर दोनों , फुटपाथ से उठे और पास के पियाऊ से पानी लाने के लिए पुरानी प्लास्टिक की बोत्तल लिए दौड़े दौड़े गए । शायद उन्हें आज जल्दी भी थी और डर भी सत्ता रहा था । में पास ही खड़ा ये सब देख रहा है । बहुत से विचार मन में उबाल ले रहे थे । परिस्तिथि , वर्तमान और भविष्य के सवालों में खो सा गया था । खेर मुझे भी ऑफिस जाना था और जहाँ वो दोनों सो रहे थे मुझे भी वही से ऑटो लेना था । लेकिन आज मेरे कदम ऑफिस न जाकर , इन दो मासूम चेहरे और मजबूर दिमाग को बारीकी से समझने की इजाजत दे रहे थे । 

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