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निखर उठा था मुझमें मेरे अभिमान का भान इसीलिए अब नहीं गूंजती मुझमें मेरी तनहाई शब्द रूठने लगे हैं अब तो मुझसे कुछ तो घटा है भीतर अंतस में कहीं यूं ही नहीं बिखरती है शब्द भंगिमा कुछ तो हटा है टूट क
हालात ही कुछ ऐसे थे वक्त का फलसफा और जज़्बात का वह आईना जिसमें छनकर निकलीं आंसुओं की कुछ बूंदें लम्हों की गुजारिश में दर्द भरे चुनिंदा पल खींच ले गए यादों में ज