काव्य स्मारिका अनुगूँज है मेरे काव्य संकलन के शब्दों के चहलकदमी की! इंतज़ार में हूँ इन शब्दों के अनुगूँज से,अपनी एक नज़्म के नगमा बन जाने के..!
0.0(0)
0 Followers
2 Books
सन सत्तावन की पुरवाई थी, चिंगारी एक जलायी थी,दुखद दासता के बंधन ने, अंतर ज्वाला भड़कायी थी,वीरों संग बालाओं ने भी, आहुति शिला सजायी थी,निर्भयता के धागों में फिर ,साहस ने ली अंगड़ाई थी,वो कड़ी सुलगती आ
सुना है वो चौपाल वाला खडंजा चौड़ा हो रहा है, क्या बात कहते हो चचा ,गांव में विधायक जी का दौरा हो रहा है! बगीचे की चाहरदीवारी पर पुताई का सफेद घोल चढ़ा रहे हैं, सुना है विधायक जी के सेवक