अचानक रात को एक लड़का एक लड़की को व्हाट्सएप पर मैसेज करता है, l love you
लड़की का रिप्लाई आता है, ठीक है पर ऐसा क्यों ?
लड़का डरते हुए कहता हैं, कुछ नहीं बस इमोशन में आकर कह दिया।
लड़की ने कही , सबकुछ ठीक है ना।
लड़का ने कहा, बोलना नहीं चाहते प्रॉब्लम पर आखरी बार बहुत याद आ रहा है तुम्हारा इसलिए फीलिंग रोक नहीं सके ।
इसके लिए सॉरी बुरा लगा तो क्योंकि पिछले टाइम भी लगा था ना।
लड़की ने फिर कही, क्या हुआ है बोलो।
लड़का कहता है , कुछ नहीं सब ठीक है पागल। लेकिन हमको नहीं बोलना चाहिए , प्लीज माफ कर देना। हम डर से जल्दी तुमको रिप्लाई नहीं कर रहे हैं।
लड़की बोली, की किस बात का डर , हम कौन सा तुमको मारेंगे।
लड़का बोला , तुमसे मार खाने का डर नहीं है , डर रहे हैं कि मेरा ऐसा फीलिंग जताने से तुमको बुरा लगेगा।
लड़की बोली, नहीं नहीं ठीक है।
लड़का चाह कर भी इसके आगे कुछ बोल नहीं पाता है जबकि अंदर से उससे बहुत बात करना चाहता है उस वक्त। वह अंदर ही अंदर तकलीफ में सोचता है कि कितना करीब थी तुम । कभी भी कुछ भी कह सकता था तुम्हें। पर क्यों आज तुमसे चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा हूं ।
और फ्लैशबैक में जाकर उस उस लड़की के बारे में शुरू से सोचने लगता है। की ऐसा कैसे।
बेस्टफ्रेंड यह दुनिया का एक अकेला ऐसा इंसान होता है जो पता ही नहीं चलता कब बेस्ट हो जाता है और खास करके तब जब वह इंसान कोई लड़की हो। लेकिन जब कोई लड़की किसी लड़के के बेस्ट फ्रेंड हो तब उनके बीच सिर्फ दोस्ती है या प्यार यह समझना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यह कोई नहीं जानता कि एक मर्द और औरत के रिश्ते में कहां तक रिश्ते निभाए तो दोस्ती कहलाएगा और कहां तक रिश्ता निभाएं तो प्यार कहलायेगा।
आखिरकार कौन तय करता है यह सीमा ? क्या हर बेस्ट फ्रेंड के पीछे एक छुपा हुआ अनजाना सा प्यार का एहसास होता है या फिर करीबी खास रिश्ते होने के नाते प्यार का एक भ्रम ?
क्योंकि मेरा मानना है जिस इंसान के पीछे ( बेस्ट ) लगाया जाता है न वह इंसान उसके जीवन का खास व्यक्ति होता हैं जिसकी जगह कोई और नहीं ले सकता । पर यह भी कितनी अजीब बात है कि ये तो जरूरी नहीं कि हर खास इंसान से आपको प्यार हो पर जिस इंसान से आपको प्यार होता है वह आपके लिए खास जरूर होता है ।
पर इस एहसासों का भ्रम के कारण हम उलझन में पर जाते हैं और यह समझ नहीं पाते कि यह प्यार है या सिर्फ दोस्ती ?क्योंकि दोनों की व्यवहार ,एहसास, खयालात, परवाह एक जैसे होते हैं जबकि दावे अलग-अलग जैसे कोई प्यार का पक्ष लेता है तो कोई दोस्ती का। और यह रिश्ते जितने गहरे होते जाते हैं यह उलझन है उतनी ही बढ़ती जाती है अंत में इसका परिणाम या तो एक होना होता है या अलग होना।
कहते हैं दो लड़के बेस्ट फ्रेंड बन सकते हैं और दो लड़कियां भी बेस्ट फ्रेंड बन सकती हैं। पर जब एक लड़का और लड़की बेस्ट फ्रेंड होती है ना तो उसकी बात ही कुछ और होती हैं क्योंकि दो लड़कों के बीच या दो लड़कियां के बीच भावनात्मक जुड़ाव कितनी भी करीबी का क्यों ना हो कहलायेंगे वह एक दूसरे के अच्छे दोस्त ही।पर जब ऐसा जुड़ा एक लड़का और लड़की के बीच होता है ना तो न वो दोस्ती कहलाती है और ना ही प्यार।
अब जब प्यार का जिक्र हो ही गया है तो फिर कहना तो बनता है कि लड़का लड़की की दोस्ती को तब तक बेस्ट फ्रेंड नहीं मानी जा सकती जब तक दुनिया वालों को ना लगे कि कहीं इन दोनों के बीच कुछ चक्कर तो नहीं चल रहा ।
ऐसा मेरे साथ या आपके साथ हम सभी इंसान के साथ होता है कि कभी-कभी यह रिश्ते इतने करीब के हो जाते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते की प्यार और दोस्ती के बीच का दायरा कितना है।
और सच पूछिए तो जैसे-जैसे आपका बेस्ट फ्रेंड आपके लिए बहुत ज्यादा बेस्ट हो जाता है प्यार और दोस्ती का बीच का फासला उतना ही कम होता जाता है और यह प्यार से कम और दोस्ती से ज्यादा का अजनबी एहसास हमें इतना बेचैन करती है कि न ही हम एक दूसरे के बिना रह सकते हैं ना आगे बढ़ने की हिम्मत होती है ना ही पीछे हटा जाता है।
इस कहानी के सिलसिला इतने इत्तेफाक से भरे हैं कि जैसे मानो ईश्वर की मर्जी का कोई खेल हो जिसमें नए-नए मोड़ देखकर इसे रोमांच से भर दिया हो।
तो प्यार और दोस्ती के बीच के कशमकश में फंसे अनजान एहसासों के उलझनो की ऐसी ही एक कहानी मेरे कॉलेज के उन दो बेस्ट फ्रेंड कि है जिनके उलझनों की दासता ना जाने कितनी मोड़े ली और उनका अंत काफी रोमांचक रहा जिससे मर्द और औरत के रिश्ते के नजरिए को एक नई सोच मिली
कहानी शुरू करने से पहले मैं यह बताना चाहूंगा कि मैं अपने तीनों दोस्तों का नाम काल्पनिक गढ़ रहा हूं ताकि उनकी निजता का सम्मान कर सकूं। ऐसे ही रोमांच से भरा अजनबी एहसासों के उलझनों की कहानी से आपको रूबरू कराने जा रहा हूं जिसे सुनकर आप रोमांचित हो उठेंगे।
कहते हैं कि शिद्दत से जिसका साथ चाहो उनका साथ एक दिन मिल ही जाता है।
ज्यादातर हम सभी कॉलेज की जिंदगी का दृश्य फिल्म के दृश्य की तरह ही सोचते हैं पर सच में ऐसा कुछ होता नहीं है लेकिन इनसे कुछ कम भी नहीं होता। कॉलेज लाइफ ही तो वह फल है जहां सुख दुख से भरी रोमांच करने वाली यादें बनती है
हम सभी के कॉलेज के फर्स्ट ईयर तो एक दूसरे से परिचित होने में ही पार हो गए ,सेकंड ईयर तो लगा पूरा क्लास ही अपना दोस्त है पर लास्ट ईयर पता चला कि वे तीनों ही एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन पाए। जिसमें दो लड़के ( कृष्णा और ऋषि ) और एक लड़की जिसका नाम थी आरुषि ।
जिसमें कृष्णा और आरुषि ही बेस्ट फ्रेंड थे और तीसरा इसमें काटा था जो इनके बीच कभी-कभी दलाल यानी मध्यांतर का काम करता था जब दोनों के बीच लड़ाई होती थी ।वैसे भी हर ग्रुप में तीसरा दोस्त का काम दो दोस्तों के बीच का झगड़ा ही सुलझाना होता है और ऐसा कर कर के इनका कॉन्फिडेंस इतना बढ़ जाता है कि उनको लगता है यह रसिया और अमेरिका का भी झगड़ा सुलझा लेगा।
तो बिना इनविटेशन के शादी में आए हुए गेस्ट की तरह कॉलेज और क्लास में एंट्री थी हमारी जहां सब अजनबी थे पता नहीं कहां बैठना है किसके साथ बैठना है कहां क्लास है ऐसा ही कुछ दृश्य था।
अपने शुरुआती दिन में ऐसे ही कृष्णा क्लास में आता है और अपनी सरसरी निगाहों से पूरी क्लास की ओर देखता है और ढूंढता है खाली बेंच और मन में सोचता है कि काश कोई अच्छी सी लड़की टकराए तो क्लास का 75 परसेंट अटेंडेंस कोई माई का लाल नहीं रोक सकता। वह धीरे से लास्ट थर्ड बेंच पर अकेला बैठ जाता है ताकि भीड़ के पीछे छुप सके ।
तभी अचानक से पीछे से एक लड़की मधुर आवाज लगाती है और कहती है कि " प्लीज आप पीछे वाले बेंच पर बैठ जाइएना मुझे ऐसे अकेले बैठे में ऑकवर्ड फील हो रहा है क्या मैं आगे आ जाऊं "
क्योंकि ऋषि के आगे दो लड़कियां बैठी थी और उसके पीछे व लड़की अकेली बैठी थी जो कृष्णा से अनुरोध कर रही थी उसे लगा कि लड़की के आस पास ही बैठना सही होगा।
कृष्णा ने सोचा कि अगर उतना पीछे बैठेंगे तो टीचर की नजर में आ जाएंगे जिससे सभी बच्चों को डर था कि कहीं खड़ा कर कुछ पूछ ना ले । कृष्णा उसे मना करने के लिए जैसे ही पीछे मुड़ा और उसका नजर उस लड़की पर पड़ा कृष्णा कर दो दिल गार्डन गार्डन ही हो गया(जींस टॉप और दो चोटी के साथ लेंस ग्लासेस पहने हुए क्या लग रही थी) जैसे ऊपर वाले से मांगा हुआ कोई अधूरा मुराद पूरी हो गई हो, और यह मजाक नहीं सच में हुआ भी।
तो कृष्णा ने उसे देख कर कहा कि "आगे क्यों हम साथ में ही बैठते हैं ना जान पहचान भी हो जाएगी " पर अपने मन में। तभी इतनी हिम्मत भी नहीं थी । फिर उसने अपनी भावनाओं को दबाया और उसे इंप्रेस करने के लिए चुपचाप पीछे चला गया और उसे आगे अपनी जगह पर बैठने के लिए सीट दे देता है वह लड़की कृष्णा को इस्माइल देते हुए थैंक्यू कहती हैं
कृष्णा उसके स्माइल पर मरते हुए उसी वक्त तय कर लेता है कि अब से मेरे कॉलेज आने की पहली वजह सिर्फ तुम होगी और दूसरा 75 परसेंट अटेंडेंस। कृष्णा उसकी जस्ट पीछे बैठकर उसे घूरते हुए दर्द भरी आवाज में सोचता है कि कम से कम अपने साथ बैठने के लिए तो बुला लेती तुम्हारे लिए पूरा बेंच छोड़ के पीछे बैठे हैं।
इसी तरह कृष्णा रोज क्लास में और क्लास के बाद कॉलेज में हर जगह उसे पूरा दिन देखने में गुजार देता । वह उसके पीछे घूमने के लिए एक किसी को दोस्त बना लिया जिसके साथ के बहाने वह उसे देख सके।
कैफे मे एक दिन उसे देखने के लिए वह एक फ्रुरूटी को बहुत देर तक पीता रहा जबकि उसका दोस्त एक फ्रुरूटी खत्म कर जाने को तैयार था कृष्णा ने अपने दोस्त को पुनः दूसरी फ्रुरूटी खरीद कर दी और कहा कि "धीरे-धीरे पियो ना यार इतनी जल्दी खत्म कर देते हो " वह फिर से जल्दी पीकर खत्म कर दिया इससे पहले कि वह और फ्रुरूटी ला कर देता
तभी कृष्णा को अपने औकात याद आई और फिर उसने अपनी भावनाओं पर ब्रेक लगाई। और अपनी दुखती हुई सुर से गाया कि जो लड़का दूसरों के लिए एक रूपए खर्च तक नहीं करता है वह आज दूसरों पर दो-दो फ्रूटीयां कुर्बानी कर दी तेरे लिए कभी तो मुझे पर गौर कर।
कृष्ण को व लड़की इतना पसंद था कि वह उसे अपना दोस्त बनाना चाहता था पर कृष्णा के कमजोर व्यक्तित्व और लोगों से बात करने की डर (खास करके लड़की से) ने उसके इस भावना को अंदर ही दवाये रखा जो कॉलेज के शुरुआती समय में सबके साथ होता है।
और फिर कृष्णा अपने निजी समस्याओं के कारण वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने में लग गया जिसके कारण उनका पहला और दूसरा सेमेस्टर का एग्जाम खराब गया और उसका ईयर बैक लग गया जिससे वह परेशान होकर कॉलेज ड्रॉप करना चाहता था क्योंकि उसके सभी क्लासमेट आगे निकल गए और वह अकेला पीछे रह गया जहां उनका साथ कोई नहीं था इस डिप्रेशन में कॉलेज के शुरुआती बातें सब कुछ भूलने लगा था और उस लड़की को भी।
कृष्णा घर वालों के दबाव में आकर किसी तरह अपने मन को मार कर अकेला उस साल तक अपना कॉलेज को जारी रखा। उसी साल उसके पिछले बैच के एक जूनियर से उसकी पहचान हुई जिसका कई दोस्त होने के बावजूद भी उसे कोई एक ऐसा दोस्त की कमी थी जिसके कारण उसे कॉलेज में मजा नहीं आ रहा था और वह कमी कृष्णा से मिलकर पूरी हुई ।
और उसका एक सीनियर लड़की से जान पहचान थी जो उसे उसके सीनियर होने के नाते उसके सब्जेक्ट में उसे मदद करती और उसी तरह धीरे-धीरे उनके दोस्ती बन गई पर वो लड़की उसे भाई मानती थी। यह बहुत अच्छा हुआ कि उसे कुछ और नहीं मानी नहीं तो एक दिलचस्प भरी कहानी का वहीं अंत हो जाता।
हालांकि लड़का उसे कुछ और मानने का सोचा तो था पर ऊपर वालों को तो कुछ और ही मंजूर था । जी हां इसी लड़का का नाम ऋषि था ऋषि से मिलते मिलते कृष्णा का मुलाकात कभी कभी ऋषि के दोस्त उस लड़की से भी हो जाता था और ऐसा चलता रहा कॉलेज के काम से तो कभी क्लास करने के बहाने तीनों मिलते रहते थे।
पर यहां अजीब यह है कि इस बार कृष्णा को लड़की से मिलने में कोई इंटरेस्ट नहीं आया ।वह अब लड़कियों से काम के अलावा कोई और मतलब नहीं रखता था । अचानक ऐसा बदलाव क्यों ?
क्योंकि कृष्णा के बुरे वक्त में उसका एक लड़की दोस्त उसके बहुत मदद करती थी कृष्णा उस पर हद से ज्यादा भरोसा करता था और वह लड़की एक दिन उसका भरोसा तोड़ दिया जिसके कारण कृष्णा को लड़की कि दोस्ती से नफरत होने लगा। दिल टूटने के कारण उसका मोहब्बत से तो पहले से ही भरोसा उठ गया था उसने बुरे वक्त में इस तरह से जिया था कि उसे लोग के मानसिकता के बारे समझ में आने लगा और ज्यादातर सतर्क रहने लगा।
लेकिन कहते हैं ना जब ऊपर वाले की लाठी चलती है न तो नीचे वाले की मर्जी नहीं चलती। यहां से शुरू होता है इत्तेफाक का सिलसिला जिसके कारण ना चाहते हुए भी कृष्णा को उसके साथ होना पड़ा और यही साथ रहने के कारण दोनों को एक दूसरे के इतने करीब ले आए।
वो कहते हैं ना चार दिन जानवरों के साथ रहो तो उनसे भी लगाव हो जाता है वे लोग तो फिर भी इंसान थे कैसे एक दूसरे के ना होते। लेकिन इतने करीब होने की वजह इत्तेफाकन वह हालत ही बने। अब सबसे महत्वपूर्ण जानना यह हो जाता है की ऐसे कौन से हालात थे ?
अगर आप सोच रहे हो कि यही लड़की का नाम आरुषि है जो ऋषि की दोस्ती था तो आप सही सोच रहे हो
तो हालात यह थे कि इत्तेफाक से ऋषि का दोस्त आरुषि का भी बैक ईयर लग चुका था वह भी अकेली हो गई थी मेरे जैसे ही। और दूसरा वह मेरी क्लासमेंट ही थी जिससे पहले कोई खास पहचान नहीं था। और कृष्णा तो पहले ही कॉलेज छोड़ने करने का धुन सवार था
और वह यह बात आरुषि को बताया तो उसने उसे समझाया और रुकने का सलाह दी। उसका कहना था कि "जब इतना झेल ही चुके हैं तो कुछ और साल भी झेल ही लेते हैं साथ में रहेंगे तो पता नहीं ही नहीं चलेगा।"
आरुषि के इन शब्दों ने कृष्णा के दिल को छू लिया यही वह पल था जहां पहली बार कृष्णा आरुषि की तरफ पिघला।उनकी बातों से कृष्णा को लगा कि आरुषि अप्रत्यक्ष रूप से उनका साथ मांग रही हैं एक दोस्त के रूप में ।और कृष्णा के घर वालों का भी दबाव था कॉलेज को ना छोड़ने के लिए तो कृष्णा ने आरुषि के साथ को ही अपना प्रेरणा बना लिया कॉलेज आगे जारी रखने के लिए । यह मानकर कि चलो कोई साथ है तो कॉलेज आराम से कट जाएगा।
वो कहते हैं ना मर्द अपने आप को कितना भी चट्टान बना ले औरत की भावनाओं के स्पर्श में आते ही वह पिघलजाता है और यह नारी की प्राकृतिक सकती है जिसे चाहे तो किसी पुरुष के जीवन बिगाड़ भी सकता है और बना भी सकता है
इसी तरह आरुषि के भावनाओं का असर भी कृष्णा के जीवन पर कैसा पड़ा और उसका परिणाम आप खुद जान जाएंगे। ?
बहुत सोचने के बाद कृष्णा ने कॉलेज न छोड़ने का बात आरुषि को बताया और वह बहुत खुश हुई यह सुनकर ऋषि भी बहुत खुश हुआ भाई जैसा दोस्त को वह भी खोना नहीं चाहता था। तभी से मानो हम हम सब तीनों कॉलेज में साथ रहने लगे।
अपनापन और करीबी का यह पहला कदम था जब कृष्णा और आरुषि ने दोनों एक दूसरे की ओर बढ़ाया था। तभी से साथ घूमना, क्लास में साथ बैठना और एक दूसरे को करीब से जानने का सिलसिला शुरू हुआ।
और जब वह लोग पिछले वाले बैच के साथ क्लास शुरू करने लगे तब तो मानो इत्तेफाकको की बाढ़ सी आ गई। जैसे मानो हर हालात चिल्ला चिल्ला कर कह रहा हो कि तुम लोग दोनों साथ ही रहो कभी अलग मत होना नहीं तो तुमलोगों का कोई काम नहीं होने वाला।
उदाहरण के तौर पर - पूरे क्लास में कृष्णा और आरुषि ही दो रिपीटर्स स्टूडेंट थे जिनका कॉलेज का हर काम दोनों का साथ में ही होता था।क्लास में हम लोग दोनों का अलग से अटेंडेंस होता था हमारा रोल नंबर भी एक साथ पड़ा जिसके कारण हमें परीक्षा हाॅल में भी एक साथ बैठना पड़ता ।
साथ ही अलग से हम दोनों का परीक्षा के लिए अटेंडेंस भी होता था यहां तक कि हम दोनों का अलग से एडमिट कार्ड तक जारी होता था कि परीक्षा के लिए। अगर एक का प्रॉब्लम होता तो दूसरा का भी प्रॉब्लम हो जाता था।
इस तरह वे दोनों को कॉलेज का हर प्रॉब्लम और सॉल्यूशन एक होने लगा इसके लिए दोनों को हमेशा एक साथ ही दौड़ना पड़ता था और बिना एक - दूसरे के काम होता ही नहीं था क्योंकि कॉलेज वाले सारे रिपीटर्स स्टूडेंट के काम एक साथ ही करते थे
और हमारे पूरे क्लास में सिर्फ वे दोनों ही रिपीटर्स स्टूडेंट थे । जैसे मानो कॉलेज वाले ने दोनों की शादी करा दी हो ,हर रस्मे वे दोनों का साथ जरूरी है। मजबूरी का कितना अजीब सा रिश्ता था ना।
इसका एक नकारात्मक परिणाम यह हुआ कि दोनों को एक दूसरे के साथ की इतनी आदत लग गई कि अब कॉलेज का कोई भी काम एक दूसरे के बिना करने को दिल ही नहीं करता था। और सच पूछिए तो कई जगह एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चलता था जै
क्लास में अटेंडेंस के समय दोनों अपने अपने रोल नंबर कॉल को सुनकर रिस्पांस नहीं करते थे बल्कि एक दूसरे की आवाज को सुनकर प्रोफेसर को रिस्पांस करते थे क्योंकि दोनों का रोल कॉल एक दूसरे के बाद ही आता था।
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि दोनों का रोल नंबर कॉल सबसे लास्ट में आता था जिसके कारण इतना देर तक दोनों को चुपचाप प्रोफेसर पे फोकस बनाए रखना बहुत मुश्किल लगता था इसीलिए वे दोनों एक दूसरे पर फोकस बनाए रखते थे क्योंकि दोनों साथ ही बैठते थे और दोनों आपस में बात भी करते रहते थे साथ-साथ दोनों में से कोई एक रोल कॉल के नजदीक आने पर ध्यान भी रखता था जैसे कोई एक अटेंडेंस रिस्पांस करता तो दूसरा अपने आप अलर्ट हो जाता था।
कभी-कभी किसी कारण बस एक बेंच पर सीट ना मिलने के कारण दूर बैठते तो भी क्लास की इस भीड़ में उन दोनों का फोकस एक दूसरे पर ही होता इस डर से कि कही अटेंडेंस मिस ना हो जाए। इसके कारण एक दूसरे से दूर बैठने से बेचैनी भी होती ।मजबूरी से भरा कितना रोमांटिक कंडीशन था न ये।जैसे दोनों खुद को मजबूर कर रहा हो एक दूसरे में डूबने के लिए।
क्योंकि उन दोनों के अलावा एक दूसरे का कोई और दोस्त था भी नहीं उस हालात में जो उनकी मदद करता। शिवाय ऋषि के। औरय यही से वह पल बनना शुरू हुआ था जब एक दूसरे से दूर होने पर फर्क महसूस होने लगा था। पर अभी वह लोग इस बात को अच्छे से समझते थे कि यह लोग सिर्फ एक दूसरे के अच्छे दोस्त हैं। हालांकि ऐसी ही आदतें उन दोनों को एक दूसरे के साथ होने का लत लगा दिया था
जाने अनजाने में ऐसे ही ढेर सारे हालत बनते गए और वे दोनों एक दूसरे के करीब होते गए। कॉलेज के इस कुछ महीनों के भाग दौड़ में पता ही नहीं चला कब वे दोनों अजनबी से करीबी बन गए।
स्त्री और पुरुष का भावनाओं का संबंध का तो यह बस अभी शुरुआत है इसे तो और गहरा होना अभी बाकी है इन दोनों के भावनात्मक जुड़ाव इतने गहरे हो जाते हैं कि आने वाले समय में इनके संबंधों में एक ऐसा मोड़ आता है जहां इन दोनों को पता ही नहीं चल पाता कि इन दोनों के साथ क्या हो रहा है
अचानक फिर कृष्णा उससे बातचीत करना बंद कर देता है उसका नंबर ब्लॉक कर देता है उसे इग्नोर करने लगता है उस से दूरी बनाने लगता है जैसे मानो बहुत नफरत करता हो।कृष्णा के ऐसे रवैया से आरुषि का जो हाल हुआ वह कृष्णा कभी सपने में भी नहीं सोचा था। जिसका एहसास कृष्णा को बाद में होने पर वह फूट-फूट कर रोया........
यह कहानी अचानक से ऐसी मोड़ क्यों ली और इसकी क्या वजह थी और ऐसा क्या हुआ होगा ?
आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए :
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