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दार्जिलिंग की सैर

3 March 2023

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दार्जिलिंग  की  सैर

दार्जिलिंग अन्तराष्ट्रीय ख्याति का एक प्रमुख पर्वतीय स्थल है, जो 11.44 किलोमीटर में फैला हुआ है तथा 7 हजार फीट का उंचाई पर बसा हुआ है। यहां का जलवायु गर्मी में अधिकतम 14.87 सॅ0ग्रे0 तथा न्यूनतम 8.59 सॅ0ग्रे0 है एवं जाड़े में अधिकतम 6.11 सॅ0ग्रे0 तथा न्यूनतम 1.50 सें0ग्रे0 रहता है। दार्जिलिंग सभी मौसम में जाया जा सकता है परन्तु दार्जिलिंग जाने का सबसे अच्छा मौसम अप्रील से मध्य जून तक और मध्य सितम्बर से नवम्बर तक है।

गर्मी में हल्का उनी वस्त्रों का प्रयोग किया जा सकता है किन्तु जाड़े में गर्म कपड़ों का इस्तमाल करना जरुरी होता है।

भाषा  और  पैदावार : नेपाली यहां कि मुख्य भाषा है, लेकिन अंग्रेजी, बंगला, हिन्दी, भोजपुरी और तिब्बतियन भी बोली जाती है। यहां का मुख्य पैदावार चाय है। दार्जिलिंग टी संसार में काफी प्रसिद्ध है। दार्जिलिंग जाने के लिए सिलीगुड़ी जाना आवश्यक है। सिलीगुड़ी पूर्वोतर सीमा रेलवे का एक मुख्य जंक्शन है, जहां कलकता, गोहाटी, लखनउ, दिल्ली आदि से सीधी रेलगाड़ियां आती हैं। वायुयान से यात्रा करने वालों के लिए बागंडोगरा एयरपोर्ट जाना पड़ता है। बागडोगरा से दार्जिलिंग 90 किलोमीटर तथा सिलीगुड़ी से 80 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को तीन घंटे में टैक्सी, बस या प्राइवेट कार अथवा मोटरसाइकिल से तीन घंटे में तय किया जा सकता है। सिलीगुड़ी दार्जिलिंग जाने का सिर्फ एक ही मुख्य मार्ग नहीं है, बल्कि यह पूर्वांचल का एक महत्वपूर्ण एवं विकसित शहर है, जहां से कालिंमपोंग, दार्जिलिंग, सिक्किम, भुटान, असम, मेघालय इत्यादि अनेक राज्यों में जाया जा सकता है। सिलीगुड़ी को उतरांचल और पूर्वांचल का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। सिलीगुड़ी से खिलौना रेलगाड़ी भी दार्जिलिंग जाती है। जिन दिनों में दार्जिलिंग गया था उस समय खिलौना रेलगाड़ी का सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग का भाड़ा मात्र 9 रुपये 40 पैसे था। तथा बस का किराया 10 रुपये 40 पैसे था तथा जीप का भाड़ा 15 रुपये था।

दार्जिलिंग  जाने  के  लिए  मुख्यतः तीन मार्ग सिलिगुड़ी से है। पहला कार्सियांग होकर दूसरा तिस्ता ब्रिज होकर तीसरा मिरिक होकर है। मिरिक का रास्ता 6 घंटे का है जबकी कार्सियांग और तिस्ता का रास्ता तीन घंटे का है। खिलौना रेलगाड़ी कार्सियांग होकर जाती है। जिसमें 6 घंटे का समय लगता है। खिलौना रेलगाड़ी से दार्जिलिंग जाने का एक अलग ही आनन्द है। बच्चे और बुढ़े खिलौना रेलगाड़ी से ही दार्जिलिंग जाना पसंद करते है।

आइए अब आपको अपने शहर सिवान से दार्जिलिंग ले चलें:- सिवान से सिलीगुड़ी की दूरी रेल द्वारा 15 घंटे में तय की जा सकती है। मैं 12 अक्टूबर 1983 को छपरा से ए.टी. मेल से सिलीगुड़ी के लिए प्रस्थान किया था। 13 अक्टूबर को संध्या मैं सिलीगुड़ी पहुचां। दूर्गापूजा के कारण सिलीगुड़ी में काफी चहल-पहल थी। 13 अक्टूबर को मैं सिलिगुड़ी में ही रुक गया। दूसरे दिन 14 अक्टूबर को मैं सीधे तिस्ता होकर दार्जिलिंग न जाकर अपने मित्र हंसनाथ गुप्ता के यहां कालिंमपोंग पहुंचा। कालिंमपोंग एक सुन्दर पर्वतीय स्थल है जो 4 हजार फीट की उंचाई पर स्थित है। दो रोज हंसनाथ गुप्ता के यहां कालिंमपोंग में रुकने के बाद 16 अक्टूबर को दार्जिलिंग आ गया। मौसम स्वच्छ था। तिस्ता ब्रिज का अत्यन्त ही राष्ट्रीय महत्व है। यह ब्रिज लोहे का बना है जो तिस्ता नदी पर है। यह ब्रिज उतरांचल को सिलीगुड़ी से जोड़ती है। दार्जिलिंग में मुझे युथ होस्टल में जगह मिल गई। युथ होस्टल 7100 फीट की उंचाई पर डॉ. जाकिर हुसैन रोड पर स्थित है। युथ होस्टल का संचालन पश्चिम बंगाल सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा होता है। युथ हॉस्टल के वार्डन श्री पी. मोकटान सेना के एक रिटायर्ड कैप्टन हैं जो 1976 से यहां कार्यरत हैं। 1976 में जब मैं दार्जिलिंग गया था, तो उस समय युथ होस्टल अभी बन रहा था। श्री मौकटान से 1976 में मेरी मुलाकात हुई थी। उन्होंने उन दिनों मुझे परामर्श दिया था कि आजाद साहब जब भी दार्जिलिंग आवें यूथ होस्टल में ठहरें। उनकी बातें मुझे याद थीं। संध्या जब मैं युथ होस्टल पहुंचा तब श्री मोक्टान नहीं थे। बेड भी खाली नहीं था। चौकिदार से बातचीत चल रही थी की इसी बीच श्रीमति मोकटान आ गई। जब मैंने अपना परिचय दिया तो उन्होंने युथ होस्टल में ही मेरे रहने की व्यवस्था करा दी। श्री और श्रीमति मोकटान दोनों काफी मृदुभाषी और मिलनसार हैं। ये लोग दुनिया के कोने-कोने से आने वाले टूरिस्टों के दिक्कतों को समझते है, इसलिए सदैव उनके साथ सहयोग करते हैं।
यूथ होस्टल में 40 बेड हैं। प्रत्येक पर्यटक को 6 रुपये प्रति रात देनी पड़ती है। जो सदस्य नहीं हैं उन्हें आठ रुपये देने
पड़ते हैं। यूथ हॉस्टल में अनेक देशों के युवा, छात्र-छात्राएं और पर्यटक एक साथ ठहरते हैं, और अपने बीच मैत्री, शान्ति, सद्भावना और सांस्कृतिक विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं। अंतराष्ट्रीय सद्भावना और सहयोग बढ़ाने में युथ होस्टल निश्चय ही एक महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है।

आइये अब आपको यूथ होस्टल की सरजमीं से उठाकर हिमालय की उन चांदी सी वर्फीली चोटियों की ओर लें चलेः- जो कंचनजंघा तथा माउन्ट एवरेस्ट सागरमाथा के नाम से विश्व में प्रसिद्ध है। मौसम साफ रहने पर कंचनजंघा के साथ अनेक हिमालयन पिक्स चोटी को आप आसानी से देख सकते हैं। सूर्य की रश्मियां जब बर्फीली चोटियों पर पड़ती हैं तो लगता है आकाश से पिघलकर चांदी जमीन पर गिर रहा है, तब मन में यह एहसास होता है कि मानव प्रकृति के सामने कितना क्षुद्र है। प्रकृति के अनन्तता को मनुष्य कभी लांघ नहीं सकता। आधुनिक युग में मानव अपने बुद्धि के बल पर अनेकों वैज्ञानिक चमत्कार कर सकता है, लेकिन चांद नहीं बना सकता।

दार्जिलिंग का हृदय स्थल चौरास्ता है।
चौरास्ता एक ऐसा केन्द्र है जहां चार रास्ता विभिन्न क्षेत्रों से आकर मिलता है। यह एक खुला हुआ छोटा सा मैदान है जिसके किनारे बेंचों पर बैठकर घर-गृहस्थी से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय समस्याओं पर बात-चीत करते रहते हैं। दुनिया के हर कोने के लोग आपको यहां मिल जायेंगे। प्रेमी-प्रेमिकाओं का यहां मिलन बिन्दु भी है। फोटोग्राफरों का झुंड पर्यटकों का फोटो खिंचने के लिए यहां घुमते रहता है, जिन्हें घोड़ों पर चढ़कर घुमने का शौक है उन्हें यहां आसानी से घोड़े मिल जाते हैं। 7000 फीट की उंचाई पर स्थित दार्जिलिंग अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उबड़-खाबड़ पहाड़ियों पर स्थित दार्जिलिंग काश्मीर के बाद अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। चौरास्ता से पश्चिम 2 कि०मी० की दूरी पर जवाहर पर्वत पर स्थित हिमालियन माउंटेयरिंग इन्स्टीट्यूट है, जहां पहाड़ों पर चढ़ने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह इन्स्टीट्यूट आजकल एक म्यूजियम के रूप में कार्यरत है। म्यूजियम में प्रवेश के लिए 50 पैसे का टिकट लेना पड़ता है। टिकट लेकर आदमी जैसे ही भीतर प्रवेश करता है, सर्वप्रथम विश्व के प्रथम माउंट एवरेस्ट विजेता तेनजिंग की उस विशाल चित्र पर नजर पड़ती है जो 1953 में सबसे पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे। म्यूजियम के भीतर उन सभी एवरेस्ट विजेताओके चित्र देखने को मिलेगा जो अपने जीवनकाल में माउंट एवरेस्ट पर चढ़े थे। तेनजिंग का वस्त्र और उपकरण आज भी वहां सुरक्षित रखे गए हैं। जिनका प्रयोग तेनजिंग ने 1953 में किया था। तेनजिंग के अतिरिक्त अनेक पर्वतारोहियों के वस्त्र और उपकरण आम जनता के दर्शनार्थ रखे गए हैं। उनके जूते, मोजे, चश्में, आक्सीजन का सिलिंडर, खाने की सामाग्री, सिटी तथा रस्से और फट्टे रखे गए है, जिन्हें दर्शक पर्वतारोहियों के संघर्षपूर्ण जीवन की झांकी देखते हैं। मेजर हरिपाल सिंह आहलुवालिया का चित्र भी वहां टंगा हुआ है। जो 1965 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ा था और बाद में पाकिस्तानी आक्रमण में घायल हो गए थे। मेजर आहलुवालिया की पुस्तक "आस्मा और भी हैं " में मेजर आहलुवालिया ने अपने संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी लिखी हैं। तेनजिंग साहब आजकल हिमालयन माउंटेयरिंग इन्स्टीट्यूट के सलाहकार और निर्देशक हैं। म्यूजियम के किनारे एक छोटा-सा सिनेमा हॉल है जहां केवल पर्वतारोहण संबंधी फिल्में दिखलायी जाती हैं। जो करीब 25 से 30 मिनट तक के होते हैं। म्यूजियम से सटे उतर की ओर एक छोटे-से पहाड़ी टीले पर हिटलर द्वारा प्रदत एक दूरबीन रखा गया है जिसके सहारे पर्यटक हिमालय की उन तमाम चोटियों को देख सकते हैं जो बिना दूरबीन के नहीं देखे जा सकते हैं। एच0एम0आई0 से जैसे ही हम लौटते है पद्मजा नायडू हिमालयन जूलोजिकल पार्क में प्रवेश करते हैं। इस जलोजिकल पाक में साइबेरियन टाइगर, हिमालियन काले भालू, हिरन, पंडा, तथा अनेक प्रकार की चिड़ियां दिखाई पड़ती हैं।

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नेचुरल हिस्टी ऑफ म्यूजियम (Natural History of Museum) :- चौरास्ता से भाणूभक्त सरणी के नीचे थोड़ी दूरी पर नेचुरल हिस्टी ऑफ म्यूजियम है। जिसमें विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक वनस्पति आप देख सकते हैं।

Step - Aside (स्टेप-एसाइड):- चौरास्ता से पूरब भूटिया बस्ती के तरफ जाने वाले मार्ग में स्टेप-एसाइड स्थित है। यह देशबंधु चितरंजन दास का निवास स्थान है, जिसका प्रयोग वे अपने जीवनकाल में करते थे, जहां 16 जून 1925 को उनकी मृत्यु हो गई थी। अब उसका प्रयोग मातृ-शिशु कल्याण के रूप में सरकार द्वारा किया जा रहा है।

लेबॉग रेसकोर्स (Lebong Racecourse) :- लेबांग रेसकोर्स संसार का सबसे छोटा रेसकोर्स है जो सबसे अधिक उंचाई पर स्थित है। अप्रील और अक्टूबर में स्थानीय गोमुखा क्लब द्वारा रेसकोर्स की व्यवस्था की जाती है। लेबांग रेसकोर्स को यदि आप देखना चाहते हैं तो स्टेप एसाइड होते हुए भूटिया बस्ती पार करके एक घंटे में पैदल लेबांग रेसकोर्स पहुंच सकते हैं। रेसकोर्स के पास भारतीय स्थल सेना की एक छोटी सी टुकड़ी है जहां आर्मी के जवान रहते हैं, और अपने किमती पहाड़ों की रक्षा करते हैं। जवानों के दर्शनार्थ एक लकड़ी का बना हुआ सिनेमा हॉल है, जो विजय टाकिज के नाम से जाना जाता है।

Tibetan refugee self help centre:- प्रवासी तिब्बतियों द्वारा संचालित इस संस्थान में अत्यन्त सुन्दर कार्पेट, उनी वस्त्र, चमड़े और लकड़ी के सामान आपको सस्ते दामों में उपलब्ध होंगे। इस संस्थान की स्थापना 1 अक्टूबर 1959 को दलाई लामा ने की थी।

Ava Art Gallery:- चौरास्ता से दो किलोमीटर घुम जाने के रास्ते में श्रीमति आभा देवी का आर्ट गैलरी देखने को मिलेगा। जिसकी संचालिका स्वयं आभा देवी हैं। वे 15 साल की अवस्था से पेन्टिग का काम कर रहीं हैं। उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपनी पेन्टिग की प्रदर्शनी अनेक जगह लगा चुकी हैं। जिसको काफी सराहा गया है। विदेशों में खास तौर से लॉस एन्जिलस, न्यूयार्क, बेरुत, युगोस्लाविया, सोवियत रूस में उनकी प्रदर्शनी लग चुकी है। जब मैं आभा देवी से मिला तो वे मुझसे बड़ी आत्मीयता से बातें कीं और अपना एक पासपोर्ट साइज का एक चित्र भी दिया साथ ही अन्य फोटोग्राफ भी। उन्होंने कहा कि जब अपने पूर्वांचल संवाद में इसे प्रकाशित करोगे तो इसकी कुछ प्रतियां डाक से भेज देना।

Darjeeling Ranjeet Vally Passenger ropeway :- दार्जिलिंग शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर नार्थ प्वाइंट के पास रोपवे है। जो भारत का प्रथम रोपवे है। यह रोपवे दार्जिलिंग से सिंगला बाजार की दूरी को तय करता है। दार्जिलिंग से सिंगला का किराया रोपवे का आने-जाने का मात्र 15 रुपये हैं। 15 रुपये देकर कोई भी आदमी आनन्द ले सकता है। सौभाग्यवश मुझे भी आनन्द लेने का अवसर प्राप्त हुआ।

Sanchen Lake:- संचेन लेक दार्जिलिंग से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर कर्सियांग की रास्ते में स्थित है। पहाड़ पर यहां दो छोटे-छोटे तालाब हैं। इस तालाब में बरसात के मौसम में पानी को इकट्ठा किया जाता है फिर साफ करके दार्जिलिंग शहर में पाइप द्वारा पानी पहुंचाने का काम किया जाता है। इन दोनों पुराने लेकों के अलावा एक नया लेक भी बनाया जा रहा है। नये लेक से अभी पानी सप्लाई नहीं किया जा रहा है।

Ghoom Buddhist Monastry:- दार्जिलिंग शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर घुम बुद्धिस्ट मोनिस्ट्री स्थित है। परन्तु घुम रेलवे स्टेशन से यह मात्र 2 फर्लांग की दूरी पर है। इस मोनिस्ट्री की स्थापना 1852 ई0 में मंगोलियन राजा ने किया था। मोनिस्ट्री में भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है। साथ ही बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक धर्म ग्रन्थ हैं जो तिब्बती भाषा में ताड़ के पत्तों पर लिखे गए हैं जो आसानी से पढ़ा जा सकता है। मोनिस्ट्री के भीतर फोटो लेना वर्जित है। परन्तु दस रुपये देकर आप जितना चाहे फोटो ले सकते हैं कोई पाबन्दी नहीं है।   Tiger Hill :- दार्जिलिंग रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर की दूरी पर घुम के पास 8000 फीट की उचाई पर टाइगर हिल संसार में सूर्योदय के प्रथम दृश्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है। उगते हुए सूर्य के दृश्य को देखने के लिए पर्यटकों की प्रतिदिन भीड़ लगी रहती है। अगर आप दार्जिलिंग शहर में हैं अगर टाइगर हिल देखना चाहते हैं तो आपको करीब 4 बजे किसी सवारी से टाइगर हिल आना होगा। बहुत यात्री रात में घुम के पास स्थित जोरबंगला नामक स्थान में ठहरते हैं और यहां से पैदल, टैक्सी या जीप से वहां जाते हैं। टाइगर हिल का दर्शन तो करीब-करीब सभी कर लेते हैं लेकिन बहुत कम भाग्यशाली होते हैं जो उगते हुए सूर्य का दर्शन कर पाते हैं। यह दृश्य अत्यन्त ही लुभावना है। लगता है खून का समुद्र जैसा दिखाई पड़ता है। टाइगर हिल देखने का सबसे है सुन्दर मौसम अक्टुबर का महीना होता है।

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 Deepak Azad & Aprajeeta Azad with Kamla Sankrityayan 

Botanical Garden:- दार्जिलिंग शहर के मोटर स्टेन्ड के पश्चिम 2 फर्लांग की दूरी पर बोटानिकल गार्डेन है। इसे किसी भी मौसम में देखा जा सकता है। संसार के अनेक देशों के पेड़-पौधे यहां देखने को मिलते हैं। गार्डेन के बीच में एक छोटा सा फुलों का झुण्ड है जिसको शीसे से घेरा गया है। पर्यटक यहां बैठकर आनन्द ले सकते हैं और फोटोग्राफी भी कर सकते हैं। यहां का वातावरण काफी शांत है। पिकनीक मनाने का भी एक उचित स्थान है।

Batasia Railway Loop:- घुम रेलवे स्टेशन और वेस्ट प्वाइंट स्कूल के बीच में बतासिया लूप रेलवे इजिंनियरीन का एक बेजोड़ कमाल है। जर्मन इजिंनियरों के द्वारा बनाया गया यह रेलवे लुप वैज्ञानिक और तकनीकि दृष्टिकोण से अत्यन्त ही आकर्षक और चकित करनेवाला है। यहां एक शहीद स्तम्भ है। इस रेलवे लुप को देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ सदैव लगी रहती दार्जिलिंग में अनेकों दर्शनीय स्थान हैं जिसको बिना गाइड के सहारे भी आसानी से देखा जा सकता है। दर्शनीय स्थलों को छोड़कर मानवीय मनोरंजन के लिए शहर के बीच में कैपिटल सिनेमा और रिंक सिनेमा भी उपलब्ध है। यहां अनेक चर्च मंदिर और मस्जीद भी उपलब्ध हैं जहां लोग पुजा अर्चना करते हैं। कैथोलिक चर्च और सेन्ट एण्डुर्ज चर्च यहां के प्रसिद्ध चर्च है। यहां अंग्रेजी स्कूलों की भरमार है। जैसे सेन्ट जेवियर, सेन्ट पॉल, वेस्ट प्वाइंट, विद्या विकास के अतिरिक्त अन्य शैक्षणिक संस्थान हैं जहां बिहार बंगाल के अलावा विदेशी छात्र, जैसे थाईलैंड, म्यंमार, बंगलादेश, नेपाल, भूटान इत्यादि के भी पढ़ने के लिए आते हैं। लोरेन्टो कॉलेज चौरास्ता के बगल में लोरेन्टो कान्वेन्ट के पास है।

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अनेक मित्रों, शुभचिंतकों का आग्रह था कि आप एक ऐसी पुस्तक लिखें, जिसमें आपके व्यक्तिगत यात्राओं का वर्णन हो, जिसमें देश विदेश की यात्राओं का जिक्र हो, परंतु उसमें पर्यटकों, ट्रैकरो, प्रकृति प्रेमियों और सैलानियों के लिए पर्याप्त जानकारी भी हो। यह पुस्तक इस दिशा में एक लघु प्रयास है, जिसमें हिमालय की गोद में अवस्थित कश्मीर,दार्जिलिंग, नैनीताल, गंगटोक (सिक्किम) के साथ पूर्वोत्तर के शिलांग, असम के राज्य के साथ पश्चिमोत्तर के वाघा बॉर्डर (भारत पाकिस्तान सीमा) पर स्थित गांव का जिक्र है। साथ ही नेपाल, भूटान, म्यांमार की यात्राओं के संबंध में पर्याप्त जानकारी प्रदान की गई है। यह पुस्तक आपके हाथों तक पहुंचाने में सिद्धार्थ आजाद का विशेष प्रयास है, जिनके निरंतर प्रयास से यह पुस्तक पाठकों तक पहुंचाने में मुझे सफलता मिली है। हरिहर आजाद, अजय भवन, महादेवा, सिवान - 841226, बिहार, ईमेल - hariharazad@gmail.com मो - 9472296657