तुम्हारे हिस्से की वह लाल,पीली,हरी
चूड़ियों के वे टुकड़े आज भी रखें हैं...
तुम्हारे लिए
जिनके लिए तुम लड़ जाता करतीं थीं
अपने तेज नाखूनों से खरोंच कर देतीं थी
वो गुडिया जो तुम्हारी मां ने वनाई थी
नीली,पीली छींट की साड़ी से....
जो तुम्हें बहुत प्यारी थी....
आज भी संबंधी रखीं हैं
बंद संदकुची में तुम्हारे लिए
वो तूम्हे पता है
लगता है भूल गयी होगी
हलकुलिया का स्वाद
कच्चे तेल की खुशबु
जली अधपकी रोटी.....
पता नहीं क्यों बिसुरती नहीं हैं यह यादें....
मैं फैंक देता हूं,दूर बहुत दूर इन्हें
फिर पता नहीं कैसे उसी संदकुची में
बंद मिलती है एकदम तरोताजा...!
यू .एस. बरी ,लश्कर, ग्वालियर
हलकुलिया/बच्चों की पिकनिक