Meaning of घाट in English
- of Ferry
- Made of jet, or like jet in color.
- A part of a building that jets or projects beyond the rest, and overhangs the wall below.
- A wharf or pier extending from the shore.
- A structure of wood or stone extended into the sea to influence the current or tide, or to protect a harbor; a mole; as, the Eads system of jetties at the mouth of the Mississippi River.
- To jut out; to project.
- A place for mooring.
- of Moor
- The act of confining a ship to a particular place, by means of anchors or fastenings.
- That which serves to confine a ship to a place, as anchors, cables, bridles, etc.
- The place or condition of a ship thus confined.
- Any detached mass of masonry, whether insulated or supporting one side of an arch or lintel, as of a bridge; the piece of wall between two openings.
- Any additional or auxiliary mass of masonry used to stiffen a wall. See Buttress.
- A projecting wharf or landing place.
- A mole, bank, or wharf, formed toward the sea, or at the side of a harbor, river, or other navigable water, for convenience in loading and unloading vessels.
- To furnish with quays.
- The throat; the gullet; the canal by which food passes to the stomach.
- A narrow passage or entrance
- A defile between mountains.
- The entrance into a bastion or other outwork of a fort; -- usually synonymous with rear. See Illust. of Bastion.
- That which is gorged or swallowed, especially by a hawk or other fowl.
- A filling or choking of a passage or channel by an obstruction; as, an ice gorge in a river.
- A concave molding; a cavetto.
- The groove of a pulley.
- To swallow; especially, to swallow with greediness, or in large mouthfuls or quantities.
- To glut; to fill up to the throat; to satiate.
- To eat greedily and to satiety.
Meaning of घाट in English
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- #poetry "१५ अगस्त.... "
आज वह शख्स भी आजादी की
गाथाएँ गाते हुए नजर आया,
जिसने जाती और मजहब मे
लोगों को उलझा कर रखा है ।
उसने हमेशा बतलाया है के तुम बड़े हो,
तुम्हे बड़ा होना चाहिए और
सबसे आगे होना चाहिए,
तुम हिंदू हो तुम मुश्लिम हो
तुम सिख हो तुम ईसाई हो,
और आज मंच पर, कुछ लोगों के बीच
कह रहा था के हम भारत वासी एक हैं ।
जो अपने फायदे के लिए अपनी
शान के लिए, अपने पद के लिए
जाने कितनों को मौत के घाट उतार दिया होगा!
वह शख्श आज मंच पर, तिरंगे के सामने
इस देश को मजबूत बने रहने का
शिक्षा दे रहा था ।
जो हमेशा लोगों को कम शिक्षित
रखने का उपाय ढूंढता रहा, वह
आज मंच पर विद्यार्थियों के सामने
उच्च शिक्षा पाने की हौशला दे रहा था ।
कुछ शहीदों के बारें मे, उनका चरित्र
चित्रण कर रहा था, अल्पज्ञ लोगों को
समझा रहा था, आजादी कैसे हुयी
इसकी गाथा सबको सुना रहा था जिसने
अपने कर्मों का किताब कहीं
छुपा कर रखा है ।
बहोत बड़ी बड़ी बातें की उसने,
वह सब उसकी जुबानी थी, और
सच तो ये है की वह सब किसी की
लिखी हुयी कहानी थी ।
उसने ये नही कहा कि अस्पताल में,
मरीजों (गरीबों ) को क्यूँ रुलाते हो,
उचे पद पर बैठकर लूट पाट क्यूँ मचाते हो,
किसी मशले को हल करने मे
इतना वक़्त क्यूँ लगाते हो ।
वो लोग भी क्या अजीब थे
जो उसके चिकनी बातों के करीब थे,
तालियां बज रही थी, जय हिंद के
नारे भी लग रहे थे परंतु.....
हिंदुस्तान को जिताने का या फिर
जश्न ए जीत का भाव किसी के
दिल मे नहीं था ।
सब इसी मे डूब गए, के, कब, कैसे
और किसने आजादी दिलायी,
कितनी मुशक्कत् स्वतंत्रता सेनानियों ने
उठायी... बस इन्ही सब बातों पर
हम सबको फुसला कर रखा है ।
आज वह शख्स भी आजादी की
गाथाएँ गाते हुए नजर आया, जो
इस जमी का खाता है, इसी जमी पर
रहता है, हम लोगों के बीच जीता है मगर
भला सिर्फ अपना सोचता है,
मै भी चाहता हूँ,
आजादी की शुभकामनाएँ दूँ... पर
किसे दूँ.... किसे....... 😥
✍️ Author Munna Prajapati
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