मोबाइल फोन में सब दोस्तो के नंबर तो हैं, परउनके लिए वक्त नहीं। गैर तो गैर हैं, अपनोके लिए वक्त नहीं। मां किलोरियो का एहसास तो हैंपर मां कोमां कहने का वक्त नहीं। पैसोंकी दौड़ में, ऐसादौड़ कि, थकने का भी वक्त नहीं। नेट से दुनिया से तो जुड़े हैं, पर पड़ोस में कौन बीमार हैं, जानने का वक्त नहीं पैसे वाले तो बनना चाहते हैं, पर इंसान बनने का वक्त नहीं। खुशी पाने की चाहत तो हैं पर दु:खों को महसूस करने का वक्त नहीं। तू ही बता ऐ जिंदगी, इस जिन्दगी का क्या होगा ? कि पल-पल मरने वालों को जीने का भी वक्त नहीं। वक्त नहीं वक्त नहीं । लेखक मंगेश कुमार