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ये चीखती हुई बेज़ुबा सी हवाएं आज कुछ इस कदर मेरे दर पे हैं आईं ना जाने क्यू पहले मुझसे आंख मिचौली खेले है मुझसे सीधे तो नहीं मेरे खिड़की मेरे, कलम किताबो से बोले हैं इतना सब मै अपनी आं