मुझे कृष्ण नहीं , कृष्ण का रंग चाहिए
मैं अगर दुर्योधन भी तो, मित्र कर्ण चाहिए
भान रहे ना अगर मुझे अपने कुल का तो,
दान करने को राधेय जैसा मन चाहिए
राधेय या कौन्तेय क्या बिडंबना है,
मैं माँ से ही तो हूँ, क्यों मेरा खंड चाहिए
शीश ले सको तो अवश्य ले लो,
पर द्वन्द में रक्त श्रेष्ठ चाहिए
मैं वीर, पराक्रमी मैं कुण्डल कवच
मुझे जीतने को सूर्य सा अभ्र चाहिए
मैं सूर्य पुत्र,मैं ज्येष्ठ पाण्डव, फिर क्यों
विधाता को अनुज अर्जुन से द्वन्द चाहिए
मुझे सिंघासन का लोभ नहीं, बस
मुझे मेरे रण कौशल की कद्र चाहिए ll
: रविंद्र कुमार श्रीवास्तव