*शीर्षक-"हिंदी है,पहचान हमारी"
हिंदी, हिंदु, हिदुस्तान,
तीनों ही हैं, सबसे महान्,
हिंदी हैं,यह मातृभाषा,
सुंदर हैं,शब्दों का सांचा,
प्रबल,भावपूर्ण अर्थ हैं,इसके
और अक्षर,वर्णों की बात न पूंछो,
सर्व-स्पष्ट प्रमाण हैं,इसके,
गाता हर कोई गुणगान,
"तभी कहलाती सर्व-महान्
तभी कहलाती सर्व महान् "।
हिंदी हैं,पहचान हमारी,
आन–बान–और शान हमारी,
हर अंतर्मन में बसे भाव,
हिंदी हैं, प्राणों से प्यारी,
इसके अनेक गुणों का कैसे,
करूं में एक–साथ बखान,
प्रारंभ करूं जब पहला गुण,
"कैसे दूजें का करूं ध्यान,
कैसे दूजें का करूं ध्यान"।
किया प्रयास की गिन लूं मैं,सब गुण,
तब हुआ चौकन्ना कुछ क्षण था,
लेकिन जब गिने गए कुछ गुण,
तब आया समझ मेरे कुछ था,
इसके तो हैं गुण अनगिनत,
हुआ तभी अहसास यह था,
की यह क्या भूल चुनी मैनें,
इस भूल को न दोहराऊंगा,
"गिन सकतें हैं,हम सभी गुण,
पर मां के गुण ना गिन सकतें"।
आज दिवस हैं,धूमधाम का,
और सबसे महत्वपूर्ण एक काम का,
है,यह दिवस विचार–भाव का,
और प्रबलतम स्थान–प्राप्ति का,
हिंदी यह तो मां है,सबकी,
इसकी आज है,एक पुकार,
देवभाषा की तनुजा है,यह,
व सौंदर्यता की सिंधु अपार,
आओं मिलकर ले दृढ़–संकल्प,
मातृभाषा से राष्ट्रभाषा,हमको इसे बनाना हैं,
ना ही केवल भारत–भूमि अपितु,
संपूर्ण विश्व–जगत मैं,
"मां का परचम लहराना हैं,
मां का परचम लहराना हैं"।
हैं!भारत–भू के भाईबंधुओं,
माता का यह है,आह्वान,
पुनः प्राप्त करना हैं,हमको
विश्वगुरु का वह उपमान,
और दोहराना है,इतिहास पुनः वह,
हिंदी अपना माध्यम होंगा,
तब मां की न हंसी रुकेंगी,
तभी पूर्ण ये प्रण होंगा,
जब उस क्षण माता का अपना,
वह सपना पूरा होंगा,
और विश्व–पटल पर मां का मेरे,
"स्थान ही कुछ अलग होगा,
स्थान ही कुछ अलग होगा"।
हिंदी, हिंदु, हिदुस्तान,
तीनों ही हैं, सबसे महान्,
हिंदी हैं,यह मातृभाषा,
सुंदर हैं,शब्दों का सांचा,
प्रबल,भावपूर्ण अर्थ हैं,इसके
और अक्षर,वर्णों की बात न पूंछो,
सर्व-स्पष्ट प्रमाण हैं,इसके,
गाता हर कोई गुणगान,
"तभी कहलाती सर्व-महान्
तभी कहलाती सर्व महान् "।
हिंदी हैं,पहचान हमारी,
आन–बान–और शान हमारी,
हर अंतर्मन में बसे भाव,
हिंदी हैं, प्राणों से प्यारी,
इसके अनेक गुणों का कैसे,
करूं में एक–साथ बखान,
प्रारंभ करूं जब पहला गुण,
"कैसे दूजें का करूं ध्यान,
कैसे दूजें का करूं ध्यान"।
किया प्रयास की गिन लूं मैं,सब गुण,
तब हुआ चौकन्ना कुछ क्षण था,
लेकिन जब गिने गए कुछ गुण,
तब आया समझ मेरे कुछ था,
इसके तो हैं गुण अनगिनत,
हुआ तभी अहसास यह था,
की यह क्या भूल चुनी मैनें,
इस भूल को न दोहराऊंगा,
"गिन सकतें हैं,हम सभी गुण,
पर मां के गुण ना गिन सकतें"।
आज दिवस हैं,धूमधाम का,
और सबसे महत्वपूर्ण एक काम का,
है,यह दिवस विचार–भाव का,
और प्रबलतम स्थान–प्राप्ति का,
हिंदी यह तो मां है,सबकी,
इसकी आज है,एक पुकार,
देवभाषा की तनुजा है,यह,
व सौंदर्यता की सिंधु अपार,
आओं मिलकर ले दृढ़–संकल्प,
मातृभाषा से राष्ट्रभाषा,हमको इसे बनाना हैं,
ना ही केवल भारत–भूमि अपितु,
संपूर्ण विश्व–जगत मैं,
"मां का परचम लहराना हैं,
मां का परचम लहराना हैं"।
हैं!भारत–भू के भाईबंधुओं,
माता का यह है,आह्वान,
पुनः प्राप्त करना हैं,हमको
विश्वगुरु का वह उपमान,
और दोहराना है,इतिहास पुनः वह,
हिंदी अपना माध्यम होंगा,
तब मां की न हंसी रुकेंगी,
तभी पूर्ण ये प्रण होंगा,
जब उस क्षण माता का अपना,
वह सपना पूरा होंगा,
और विश्व–पटल पर मां का मेरे,
"स्थान ही कुछ अलग होगा,
स्थान ही कुछ अलग होगा"।