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स्कूल बच्चे और भूत

Ranjeet verma

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Completed on 26 May 2022
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जनवरी का महीना था घड़ी में 5 बज रहे थे मोहन अपने दालान में बैठा स्कूल से लौट रहे बच्चों का इंतजार कर रहा था। आज इतना समय हो गया बच्चे अभी तक नहीं आए वो तो 4.30 तक हर रोज आ जाया करते थे । लक्ष्मी...... ओ.... लक्ष्मी मै जा रहा हूं देखूं बच्चे कहां रह गए , ठीक है। जाओ तब तक मै बच्चों हेतु कुछ जलपान की व्यवस्था करती हूं। मोहन घर से 2 किमी की दूरी पर अवस्थित जूनियर हाई स्कूल में पहुंचता है जहां पर सुदीप 8 वीं कक्षा में और सीमा 6 वीं कक्षा में पढ़ते हैं। आस पास के लोगों से पूछा तो कोई ठीक जानकारी प्राप्त ना हुई, सभी ने वहां किसी बच्चे को छुट्टी के बाद ना देखने की ही बात बताई । मोहन घर की तरफ वापस निकल पड़ता है .....घर आने पर पता चला कि बच्चे घर पर भी नहीं आए हैं, मोहन बहुत परेशान हो जाता है वह दूसरे बच्चों से पूछने लगता है तभी सुदीप के साथ पढ़ने वाला अमित बताता है कि वह स्कूल से निकलने के बाद किसी के साथ बेर तोड़ने के लिए स्कूल के पीछे वाले बाग में जाने के लिए कह रहा था । मोहन यह सुनकर गुस्से में झल्लाते हुए बाग की ओर चलने ही वाला था कि सुदीप और सीमा हाथों में बेर लिए घर की ओर जा रहे थे ।.... मोहन उन दोनों तक पहुंचता इससे पहले वह दोनो घर में प्रवेश कर जाते है ।         लक्ष्मी .... ओ... लक्ष्मी , हां जी इन दोनों को यहां बुलाओ पूछूं तो इनसे कहां गए थे दोनों ...  अरे आप इतना गुस्सा मत करिए.. मै अभी पूछती हू कि दोनों कहां गए थे... नहीं तुरंत पूछो आज मै इनकी सारी घुमक्कड़ी निकाल दूं.. अच्छा आप शांत हो जाइए मै अभी दोनो को समझा दूंगी। लक्ष्मी उन बच्चों से कुछ कह पाती इससे पहले .....मोहन भी बच्चों के पास ही पहुंच जाता है । तुम दोनों कहां गए थे .. पूछते हुए मोहन सुदीप का हाथ पकड़ लेता है। तुम मुझे रोंकने की कोशिश मत करना.... काफी भयंकर ध्वनि में बदली हुई आवाज में सुदीप बोलता है .....  इससे पहले मोहन कुछ समझ पाता कि झटके में ही उसका हाथ छूट जाता है  । ( लाल आंखें क्रोधित सा चेहरा पूरा शरीर जैसे तप रहा हो, हाथ पैर अकड़ते हुए ) तुम मुझे आने जाने में रोकने की कोशिश मत करना वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा..... धीरे धीरे शरीर ठंडा होने लगा चेहरा सामान्य हो रहा था ..... बेटा तुम्हे क्या हो गया .. बेटा ...बेटा.. क्या अपनी मां से भी बात नहीं करोगे.. बिटिया तुम्हारे भैया को क्या हो गया है.. मां जी पता नहीं क्या हो गया है जब स्कूल से छुट्टी हुई तो भैया ने कहा कि चलो बाग में बेर खाने चलते हैं जब मैंने कहा कि नहीं घर चलिए तो मुझसे भी इसी तरह डरावनी सी आवाज में कहने लगे कि तुमको मेरे साथ चलना पड़ेगा मै डरती हुई साथ में चली गई लेकिन मां जी मै बहुत डर रही हू .. बाग में जाकर यह ना जाने किससे बात कर रहे थे... पेड़ की टहनियां खुद इनके पास आ जा रही थी यह बेर तोड़ रहे थे जो गिर जाती वह मुझसे कहते तू ले ले। जैसे ही यह ठीक से बोलने लगे तुरंत मुझसे कहे घर चलो नहीं तो घर पर डांट पड़ेगी। बेटा और भी कोई था तुम लोगों के साथ .. मुझे तो कोई दिख नहीं रहा था लेकिन पता नहीं भैया किससे बात कर रहे थे.... मोहन यह सब सुन रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वह अपने कमरे में आकर चुप चाप बैठ गया और सोचने लगा कि यह सब क्या हो रहा है मेरे बच्चे के साथ मन में अनेक कल्पनाएं होने लगी कि कहीं यह पागल पन की बीमारी तो नहीं है यह फिर कोई मानसिक समस्या तो नहीं है इस प्रकार के सैकड़ों बाते वह सोचने लगा ।  तब तक काफी समय बीत चुका था सबने भोजन किया और फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए। सुबह होते ही फिर मनोज अपने काम पर निकल गया बच्चे स्कूल चले गए और लक्ष्मी अपने गृहस्थी के कार्यों में उलझ गई दिन ढला फिर छुट्टी का समय बीत गया था और बच्चे घर नहीं पहुंचे.... काफी देर बाद वह दोनो घर पहुंचे .....इसी तरह अब रोज की यही आदत हो गई थी .. सीमा और सुदीप स्कूल के बाद उस बाग में अवश्य जाते परंतु इनको आते जाते उस बाग में कोई देख नहीं पाता था.. यह प्रक्रिया चलती रही किसी का ध्यान अब इस ओर नहीं जाता था कि यह दोनो घर विलम्ब से क्यों पहुंच रहे हैं। एक दिन सुदीप का अपने साथी अमित से विवाद हो गया और धीरे धीरे बात आगे बढ़ने लगी तभी सुदीप ने अपनी ही उम्र के साथी को उठा कर पटक दिया जिससे अमित को काफी चोट आई फिर.. बात बढ़ते हुए देखकर सुदीप उसी बाग की ओर भाग जाता है सभी उसे रोंक ही रहे थे तब तक वह देखते ही देखते गायब हो जाता है ... शाम को प्रधानाचार्य जी की दी हुई चिट्ठी लेकर अमित घर आता है जिसमें अभिभावकों को अगले दिन स्कूल बुलाया जाता है । जब यह सुदीप को पत चलता है तो वह उसी बदले हुए स्वर में अमित से मिलने को झपट पड़ता है लेकिन किसी तरह लक्ष्मी उसे रोक लेती है .. अगले दिन मोहन और लक्ष्मी स्कूल नहीं गए और ना ही बच्चे पढ़ने गए.. दूसरी ओर अमित के पिता जी भी अमित को लेकर स्कूल पहुंचे और प्रधानाचार्य जी से अमित को लगी चोटें दिखाते है जिस पर प्रधानाचार्य जी सीमा और सुदीप को स्कूल से निष्कासित कर देते हैं।              अगले दिन सीमा सुदीप स्कूल पहुंचते है तो इन दोनों को गेट से ही वापस कर दिया जाता है । दोनो बड़ी अनुनय विनय करते है उसके बाद अचानक से उठकर दोनो उसी बाग में चले जाते हैं सीमा और सुदीप में कुछ कहासुनी होने लगती है कि इस अमित के कारण ही हम लोगों का स्कूल छूट गया... शाम हुई दोनो घर आ गए लेकिन आज इन दोनों के चेहरे बदले हुए थे भय और क्रोध दोनो एक साथ दिख रहा था चेहरे पर शाम हो गई थी.. तभी अचानक से दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है मोहन जाकर देखता है तो एक अपरिचित व्यक्ति जो पूछ रहा था कि सुदीप का घर यही है .. मोहन ने सहमति में सर हिलाया तो वह जोर जोर से चिल्लाने लगा कि मेरा बेटा आज स्कूल से घर नहीं आया है उसकी लड़ाई तुम्हारे बेटे से हुई थी उसने ही कुछ किया होगा। सुदीप झपटकर बाहर आता है और बदले हुए स्वर में कहता है कि मैंने उसे छिपाया नहीं है जाओ जाकर ढूंढो उसे कहीं ..अमित के पिता निराश होकर स्कूल की तरफ बढ़ने लगे रात होती जा रही थी स्कूल पहुंचते पहुंचते रात के 9 बज गए थे सुरक्षा गार्ड को आवाज लगाई वह बाहर निकल कर आया उससे पूछने पर पता चला कि वह आज स्कूल ही नहीं आया ... अब जैसे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई कि आखिर कहां गया होगा वह घर की तरफ दौड़ता है कोई उपाय न सूझने पर वह पास के पुलिस स्टेशन में जाकर पूरी घटना कह सुनाता है। गुमशुदगी कि एक प्राथमिकी दर्ज कर दरोगा जी वापस जाने को कहते है लेकिन मन ना होने के कारण काफी देर तक वहीं चिंतित भाव में बैठा रहा.. तभी किसी मुखबिर के द्वारा दरोगा जी को सूचना मिलती है कि स्कूल के पास वाले बाग में एक बच्चे का शव पड़ा है.. आनन फानन में दरोगा जी पहुंच कर शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजते हैं जिसकी रिपोर्ट में मरने का कारण दिल का दौरा बताया गया है उस बच्चे की शिनाख्त अमित के रूप में होने पर अमित के पिता जी बिल्कुल पागलों जैसे परेशान हो जाते हैं उनका शक ओर गहराता जाता है कि हो ना हो यह सुदीप की ही चाल होगी लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट कुछ और ही कह रही थी इस पर कुछ निर्णय ना हो सका .......अब स्कूल ना जाने के कारण सुदीप और सीमा उस बाग में कई दिनों तक नहीं जाते है उसके बाद सुदीप और सीमा पूरा पूरा दिन कमरे को बंद करके उसी में बैठे रहते कभी कभी तो जोर जोर से आवाजें भी आने लगती ऐसा लगता जैसे अन्दर कोई तोड़ फोड़ हो रही हो। यह सब देखकर मोहन एक तांत्रिक के पास जाता है जो पास के ही गांव में कुटिया बनाकर रहते थे उनका स्वभाव लोगो की सेवा करना और जन हित के कार्यों को पूर्ण करके समाज सेवा करना रहता था जब उनको यह पूरी बात बताई गई तो वह मोहन के साथ घर आए उन्होंने घर आकर देखा तो बताया कि आपके दोनो बच्चे बहुत ही खतरनाक हो गए हैं और यह रात रात भर शैतानी शक्तियों के नियंत्रण में रहते हैं सूर्यास्त होने के बाद इन दोनों से कोई मिलने ना पाए अन्यथा उसके लिए ठीक नहीं होगा... यह कह कर तांत्रिक महोदय जब जाने लगते हैं तो मोहन उनके चरणों में बैठकर उनसे दया की भीख मांगते हुए कहता है कि कोई उपाय बताएं महाराज बड़ी प्रार्थना करने पर वह एक काला धागा अभिमंत्रित करके देते है और उसे सभी को पहनने को कह कर जाते हुए अगले दिन सुबह आने को कहते हैं शाम होते ही उन दोनों के कमरे को बाहर से बन्द कर लिया जाता है दोनो लोग उस धागे को पहन लेते है जैसे जैसे रात बढ़ रही थी वैसे वैसे उस कमरे से आवाजें आ रही थी कि दरवाजा खोलिए दरवाजा ...... आवाज बहुत डरावनी थी मोहन ओर लक्ष्मी बहुत डर रहे थे किसी कमरे से आवाजें आ रही थी कि दरवाजा खोलिए दरवाजा ...... आवाज बहुत डरावनी थी मोहन ओर लक्ष्मी बहुत डर रहे थे किसी तरह रात्रि बीत गई सुबह होते ही साधु की कुटिया पर पुनः गए पूरी बात बताई तो तांत्रिक साधु उनके साथ घर आकर कहा कि अब इन दोनों का दरवाजा खोल दो मोहन ने जैसे ही दरवाजा खोला दोनो बच्चे मोहन का गला पकड़ने को दौड़ते है तभी गले में धागा पहने होने के कारण वह गले को स्पर्श नहीं कर पाते हैं । तांत्रिक मंत्र पढ़ते हुए उन पर भभूत फेंकता है और पूछता है कि कौन हो तुम क्या चाहते हो तो सुदीप गुर्राते हुए कहता है कि कोई नहीं बचेगा ....तुम सब मारे जाओगे..... तुम लोगों ने ही मुझे इन बच्चों से दूर किया है यह मुझसे मिलने नहीं आए इसीलिए मुझे बाग से यहां आना पड़ा है .. सब मरोगे अब कोई नहीं बचेगा...... तांत्रिक क्या चाहते हो तुम । मुक्ति..........चाहता हूं। वह तुम्हें कैसे मिलेगी...... उसके लिए मुझे 7 स्कूली बच्चों के जिंदा या मुर्दा शरीर चाहिए एक मुझे मिल गया है जिस बच्चे को मैंने मार दिया 2 यह मेरे साथ है अभी चार बच्चे और चाहिए मुझे...... ऐसा तुम क्यों करना चाहते हो क्योंकि स्कूल के बच्चों ने ही बहुत पहले मुझे स्कूल में अध्यापक से बहुत मार खिलवाया था जिस से तंग आकर मै स्कूल ना जाकर उसी बाग में बैठा रहता था एक दिन अध्यापक के कहने पर मेरे 7 साथियों ने मुझे जबरदस्ती स्कूल में उठाकर उपस्थित कर दिया उस दिन मेरी बहुत बेइज्जती हो गई उसी दिन शाम को निकलने के बाद मैंने उसी बाग में बेर के पेड़ से लटक कर फांसी लगा ली तब से मेरी आत्मा यहां भटक रही है जो बच्चे स्कूल से गायब होकर मेरे पास आते है वो मुझे अच्छे लगते है तथा उन बच्चों को जो परेशान करता है उनको मै नहीं छोडूंगा और जो बहुत अच्छी तरह से पढ़ते है वह मुझे अच्छे नहीं लगते हैं वह सब मरेंगे....... तांत्रिक मंत्र पढ़ते हुए एक रेखा खींचता है और मोहन से सात पुतले बच्चों के बनाने को कहता है जिनको स्कूल के ड्रेस पहना दी जाए , मोहन बैसा ही करता है फिर मंत्र पड़ते हुए तांत्रिक उन सातों बच्चों के पुतले को उसी रेखा वाले चक्र में डाल देता है और मोहन से उन्हें जलाने को कहता है मोहन उन पुतलों में आग लगा देता है आग लगते ही खूब चीखने की आवाजें आने लगती हैं दोनो बच्चे गिरकर बेहोश हो जाते है और जैसे जैसे आग बढ़ती जाती है वैसे वैसे वैसे चीखें धीमी होती जा रही थी....... आग समाप्त हो रही थी दोनो बच्चे होश में आ रहे थे, होश में आकर वह बड़े आश्चर्य के साथ पूछ रहे थे कि यह सब क्या है.... तांत्रिक ने कहा कुछ नहीं यह धागा तुम दोनों भी पहन लो .. सुदीप और सीमा ने धागा पहन लिया सब शांत हो गया था ..... मोहन और लक्ष्मी दोनो ने। तांत्रिक साधु का आभार कर विदा किया और अपने बच्चो को गले लगा लिया..... इति सिद्धम @सर्वाधिकार सुरक्षित स्वरचित कहानी  

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