ये कहानी है शहर में रहने वाली लड़की की जिसका नाम विद्या है. विद्या के घर में वो उसके माता पिता और भाई बहन ऐसी उसका परिवार है. उसके माता पिता काम के लिए गांव से दूर शहर में आकर बस गए. शहर में रहना इतना साधारण नहीं है वो भी बढ़ती महगाई में, पर वे लोग जैसे तैसे अपना निर्वाह कर रहे थे. विद्या की बड़ी दीदी की शादी होगयी थी. घर में लोग काम थे पर खर्चे आज भी ज्यादा क्युकी उसकी दीदी के शादी के लिए उसकी पिता ने बैंक से कर्ज लिए था तोह उसकी किस्ते जाती थी. विद्या पढ़ने में बोहोत तेज थी पर बोहोत बार पैसो के वजेसे मन चाही चीज़े कर नहीं सकती थी. विद्या की अपनी भी एक दुनिया थी जिसे वो कभी बहार नहीं आना चाहती थी उस दुनिया का नाम था सोच की दुनिया. वो बहुत ज्यादा सोचती थी वो लोगो से बातें कम सोच में ज्यादा वेस्त रहती थी. विद्या सोचती थी उसके पास भी ढेर सारा पैसा है वो बहूत अच्छीसी ज़िन्दगी जी रही है. मनचाहे यूनिवर्सिटी में अड्मिशन ले लिया है. यूनिवर्सिटी में अच्छे नंबर पाकर अच्छी पोस्ट पर नौकरी मिल गयी है. घर का खर्चा उठाने की और माता पिता को खुस रखने की जिम्मेदारी अच्छीसी पूरी कर ली है. पर जब वो अपने सोच की दुनिया से बहार अति तोह दुनिया वही के वही रुकी होती है. यूनिवर्सिटी के टाइम से ही विद्या ने छोटे मोठे नौकरी करना स्टार्ट कर दिया था. जहा उसके क्लास फेलो टाइम पास करते थे वो उस टाइम मेहनत कर अपने सोच को पूरा करने की कोसिस करती थी. उसकी मेहनत रंग लायी उसने यूनिवर्सिटी में टॉप किआ और कैंपस में जॉब सिलेक्शन भी होगया. उसने जो सोचा था उसकी सोच की दुनिया में वो उसे कही ज्यादा हद कर उसने पा लिया. ये सब से उसके घर में सब खुश थे उसको लेकर गर्व भी महसूस करते थे. इस कहानी से ये सिख मिलती है जो सोचो वो करने की हिमत और मेहनत में कमी नहीं होनी चाइये. मेहनत से सब मिलता है. धन्यबाद
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