आज तक जीवमात्र आधारहीन काम,क्रोध, लोभ,मत्सर और भ्रमजाल में है
कितना आश्चर्य, कितना पूर्वाग्रह और कितना उचित
सदाचार खोकर मुहाल में है
नहीं रहा है कुछ उसके मुट्ठी में जो था भी
खंडित मन रुग्ण तन जंजाल में है
अशांत कर्म, सूखती काया, झुलसती आशा
चौराहे पर दिग्भ्रमित पथिक कदमताल में है
कभी अपने, कभी पराये, कोई साथ आये,कोई दूर जाये
संगत दर्शन प्रवचन सब कुछ महाकाल में है
सृष्टि कुछ नहीं मांगती, प्रकृति सब कुछ दे डालती
खाली हाथ भूखा रहे, धनिक वर्ग मालामाल में है
कोई उपाय, कोई परिवर्तन, कोई सही दिशा में कदम
सुधार होता, उद्धार होता, कैसे सबका जीवन खुशहाल में है
नित्य कुकृत्य, छीना झपटी, तामस और मदपान
मन भर गया पीड़ा से, धरातल ही जब बदहाल में है
परवेज आलम भारतीय, 9931481554