👃👃👃🌷नारी शक्ति 🌷👃👃👃
तु अमृतमयी तु जन्मदात्री ,
तु ही हमें संयोयी है ,
खड़ा किया चलना सिखाईं ,
पहचान एक - एक कराईं है ।
ईंक तुही तेरी रूप अनेक ,
सर्वत्र तेरी ही माया है ,
रक्तो कि धारा बहाने वाली,
तु नाड़ी तु नारी तू ही मेरी काया है।
नासिका से श्वास संचालन ,
नासिका रूप ढ़ाई है ,
हे..... मेरी प्राणाधार ,
तुही मेरी पहचान कराई है ।
तुझसे चुराके क्या - क्या ना खाया,
आचरण दो मुखी बनाईं है,
श्रेष्ठ दिखाने कि चाह से तुझको,
पग-पग अपमानित कराईं है ।
दोषारोपण हर बार की तुझपर,
तु तनिक नहीं घबराई है ,
उल्टी -सिधी पांच पन्नो कि,
तिखे शब्द सुनाई है ।
अर्द्धांगिनी नारी को मैंने ,
जुती स्वरुप बनाईं है ,
बहन बेटी को खेल गुड़ियों कि,
घिनौनी संसर्ग अपनाई है ।
तब भी चैन नहीं ली मैंने ,
उन्हें बिक्री कराईं है ,
वृद्ध मां - पिता को ना छोड़ा ,
वृद्धाश्रम तक पहुंचाई है ।
प्रदुषित विचारों कि प्रगाढ़ता ,
छिन्न भिन्न कर डालीं है ,
चरित्र रिश्ते मनोभावना को ,
लोभांग्नि जला डालीं है ।
अंध बना लोभ के कारण ,
धन यौनकिड़ा में गंवाई है ,
नारी सोसड़ कि भागिदारी ,
अमानुष हद तक ढ़ाई है ।
नारी जगत का अत्याचारी ,
एक विचार हीं कहर डारी ,
अगर विचार प्रदुषित ना होता,
मनोरम सम्बन्ध होती उजियारी ।
आर्य मनोज , २०.०९ .२०२२