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प्रथम पाठ : भाग्य का फेर ********** दुनिया भर की तो पता नहीं पर अपने देश में भाग्य,नसीब या फिर किस्मत नाम की एक चीज होती है। सैद्धांतिक रूप से हर आदमी के पास एक अदद भाग्य होता है। कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास दो-चार तो कुछ लोगों के पास सौ-सौ भाग्य भी होते हैं। ऐसे लोगों को सौभाग्यशाली कहा जाता है। शास्त्रों में कर्मफल का सिद्धान्त बतलाया गया है। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को कर्म करने का पूरा अधिकार प्राप्त है। लेकिन इन कर्मों के फल पर भाग्य विधाता का एकाधिकार है। सबके कर्मों के फल उसी भाग्य विधाता की मंडी में पहुंचते हैं। यूं समझ लीजिए कि फलों के बाजार का एकमात्र थोक व्यापारी वहीं है। फिर वे अपनी सुविधानुसार फलों की होम डिलीवरी करवाते हैं। कर्म करने को मजबूर लोग मजदूर नहीं बल्कि कर्मचारी कहे जाते है। फल की डिलीवरी करने का अधिकार रखने वाले अधिकारी कहलाते हैं। कर्म के अनुसार जो मिलता है वह फल है, बिना कर्म किए जो प्राप्त होता है वह भाग्य है। मान लीजिए एक प्रतिभागी किसी परीक्षा में शामिल होता है और असफल रहता है। यह उनके कर्मों का फल है। वहीं दूसरा प्रतिभागी जो परीक्षा में भाग लिए बिना सफल रहता है तो यह उसका भाग्य कहलायेगा। परंतु यदि कोई प्रतिभागी बिना आवेदन दिए सफलता के झंडे गाड़ देता है तो उसे सौभाग्यशाली माना जाएगा। कर्म और भाग्य साथ-साथ चलते हैं। आपने बैंक में पैसा जमा किया यह कर्म है, वापस मिलना भाग्य की बात।आप नौकरी करें तो कर्म है , वेतन मिलना भाग्य है। सरकारी स्कूल में जाकर भी साक्षर हो पाना किस्मत की बात मानी जाती है। खैराती अस्पताल से किडनी समेत घर आना अच्छे नसीब की निशानी है। बिना सरकारी नौकरी के विवाह हो जाना सौभाग्य की बात है। उधार के पैसे बिना नंगई पर उतरे वापस मिल जायें यह खुशकिस्मती है। किस्मत अच्छी भी हो सक

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भोर का फेर

भोर का फेर

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