मैं लिखूंगा तुम्हें
मैं लिखूंगा तुम्हें, वर्तमान में, भविष्य में, अनन्त राहों में बहती नदियों में, गिरते झरनों में, उफनते समंदर में ।
मैं लिखूंगा तुम्हें, खिलते बसंत में, बागानों में, पतझड़ में, ऊँचे पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में, सावन की बारिश में।
मैं लिखूंगा तुम्हें, रेत पर, जमीन पर, आसमानों में, भोर की सुबह में, चढ़ती दुपहरी में, ढलती साँझ में।
मैं लिखूंगा तुम्हें, स्वप्न में, अभिलाषा में, महत्वाकांक्षाओं में, हर नयी उम्मीद में, हर खोए अरमानों में।
मैं लिखूंगा तुम्हें, सुबह की रोशनी में, सूरज की किरण में, हर रात की चाँदनी में, हर सांस की गहराई में,
मैं लिखूंगा तुम्हें, हर धड़कन, हर खामोशी में, कविता के शब्दों में, मेरी हर कहानी में ।
मैं लिखूंगा तुम्हें, हर साँस में, हर धड़कन में, सपनों की दुनिया में, जागते ख्वाबों में ।
मैं लिखूंगा तुम्हें, तुम्हारी हंसी में, तुम्हारी चुप्पी में, हर बात में, हमारी होने वाली मुलाकात में......!!!