( दुर्गा माता की शान में)
कहीं काली कहीं अंबे कहीं दुर्गा,
अनेकों आपके हैं रुप जगदंबा।
निराली है छटा दरबार की तेरे,
कहीं जैकार की गूँज कहीं गरबा।
अमीरों को प्रतिष्ठा,धन गरीबों को,
दिशा जन को, सिपाही को तू दे जज़बा।
ज़माने से संहारक तू दुर्जनों की,
असुरों से करे अपने भक्तों की रक्षा,
दुखों की नाशनी जय हो तेरी जय हो,
बहाये हर तरफ तू खुशियों का दरिया।
तेरा छत्तीसगढ़ पूजे तुझे दिल से,
यहाँ पड़ने न देना तू कभी सूखा।
तुझे नवरात्री में हम घर न लाते गर,
तो ये मन साल भर बेचैन सा रहता।
( डॉ संजय दानी दुर्ग )