जिंदगी की हकीकत से गुजर कर इस बात का एहसास हो गया कि बिना किसी मतलब के यहां कोई किसी का खास नहीं। खून के रिश्ते भी सब दौलत की भूख के आगे फीके है। गर कुछ है जरूरी सबके लिए तो वो निजी स्वार्थ है, जो रिश्तों से ज्यादा मूल्यवान नहीं है। दुनिया में अधिकांश लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए जीते हैं और रिश्तों को भी उसी के आधार पर तौलते हैं। स्वार्थ और मतलब के ये रिश्ते अस्थायी होते हैं, जो पल में टूटते और बनते है।
जो चले थे संग, वो अब हैं दूर।
पैसों के इस खेल में, खो गए है सब।।
दौलत का चाह में, अपने सब छूटे।
बेजान हुए है, खून के ऐसे सब रिश्ते।।