इक परी बादलों से उतरकर
चांद से गुजरकर
धरती पर आई
बहुत खुश थी प्रसन्न थी
मंद मंद मुस्कुराईं
उसे लगा आसमां से भी प्यारा जहां है
बोली बाबा से कुछ दिन रहना यहां है
बाबा ने बहुत समझाया
पर वो पगली जिद पर अड़ी थी
ना जाने क्यों वो ्
आसमां को छोड़ धरती पर खड़ी थी
आखिर बाबा मान गये
छोड़ परी को खुद आसमान गये
कुछ दिन बिता सब कुछ बदला नजर आया
जो सोची थी परी वो सपना नज़र आया
अब हर रोज उसे ताने मिलते थे
नये-नये बहाने मिलते थे
जिंदगी अब उसे हर रोज रूला रही थी
सोचकर हैरान थी परी गुजरे लम्हों को
जब उसकी अम्बे मां लोरी गा
थपकियां दे सुला रही थी
क्या करती परी पछता रही थी,
आ जाओ ना बाबा बुला रही थी
पर बाबा अब इतनी दूर चले गए थे
जहां से आना कठिन था
परी जान चुकी है
पुरी तरह पहचान चुकी हैं
अब उससे यही रहना है
यह मान चुकी है