पृथ्वी ,भू,आकाश से पहचान कराई उसने।
अच्छा, बुरा,भला क्या है, ये समझाया उसने।।
रिश्ते-नाते, से मिलवाया उसने ।
टूटने पर समझा और संभाला उसने।।
कामयाबी न चढ़े सिर ये बतलाया उसने।
द्वेष, कलह से परे वात्सल्य से, मिलवाया उसने।।
कहती है मैं हूँ खड़ी चलती चल, डर नहीं।
ये शब्द सुन दिल आज तक ,डरा किसी से भी नहीं।।
ज़िंदगी की कठिनाइयों को अपने सिर ले मुस्काती है।
वो माँ है मेरी,इसलिए ये बात दिल को छू जाती है।।
एहसान है उसका, जिससे लगता जीवन धनवान है ।
उसकी इक स्नेहमयी झलक भी मूल्यवान है।।
वो खास है, बहुत ही खास
उसी से जुड़ी है, जीवन की हर एक आस।।
सोचा उसे शब्दों में बटोर लूँ, पर क्या करुँ?
स्तब्ध हूँ।
प्रयास का निष्कर्ष ये ही पाया वह वो है, जिसके कारण मैं
हूँ।।
मेरे अस्तित्व की परिचायक है वो।
वो खास, बहुत ही खास।
वो मेरी, सिर्फ़ मेरी
माँ है।
श्रीदीप