हर रातों को पूनम कह दूँ
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हर रातों को पूनम कह दूँ
तो, सच का प्रतिहार कहाऊँ;
क्या जब सच उद्भावित होगा
रातें बुरा नहीं मानेंगी?
हर सच की अपनी परिभाषा
गल्पों से तात्क्षणिक दुराव;
लोग उलझकर भ्रम जालों में
स्वजन से करते हैं दुर्भाव।
अपनी श्रद्धा स्वयं सत्य की
किंतु, झूठ की प्रथा अनोखी;
परंपरा के चालक करते
उपनियमों की देखादेखी।
हर बातों को सत्य मानकर
मैं सच का प्रतिहार कहाऊँ;
क्या जब सच उद्भावित होगा
बातें बुरा नहीं मानेंगी?
...“निश्छल”
©अमित_निश्छल