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ग़ज़ल

1 October 2022

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इक मैं ही नहीं जिसके थे नुकसान हजारों।
हैं मुझसे भी याँ लोग परेशान हजारों।।🌹

हरगिज़ नहीं छोडेंगे हम उम्मीद का दामन।
जीवन मे आए- जाएं जो तूफ़ान हजारों।।🌹

कुछ इसलिए खामोश ही रहता हूँ मैं अक्सर।
उसके हैं अभी सर मेरे अहसान हजारों।🌹

हर इक की नज़र थी मेरे रुखसार प लेकिन।
तुमसे ही जुड़े थे मेरे अरमान हजारों।।🌹

मुश्किल जो पड़े यार मुझे आज़मा लेना।
कर दूँगा मुसीबत में समाधान हजारों।।🌹

हर इक से कभी राब्ता रक्खा नहीं मैंने।
आए तो मेरी जीस्त में इंसान हजारों।।🌹

इक तुझसे ही था राब्ता तुझसे ही थी उल्फ़त।
इस दिल में नहीं आते थे मेहमान हजारों।।🌹

क्यों जाने मेरे दिल में है फिर भी ये महब्बत।
गो सुनते महब्बत के हैं नुकसान हजारों।।8🌹

क्या समझी है कीमत कभी सरकार ने उनकी।
जाती है वतन के लिए जो जान हजारों।।9🌹

मीनाक्षी गोयल
7.7.22

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