(हमने तो तेरी इबादत की है सनम्)
रुपयों से तुमने मुहब्बत की है सनम,
प्यार की तुमने ख़िलाफ़त की है सनम्।
खुद अमीरी के वतन में रहती हो पर,
हम गरीबों से अदावत की है सनम्।
हम दरख़्ते-क़ौम की सेवा करें और,
तुमने क़ौमों पर तिज़ारत की है सनम्।
तुमने भी चारागरी अब सीख ली,
दर्द की तुमने हिमायत की है सनम्।
चाहने वाला तुम्हें होगा कोई,
हमने तो तेरी इबादत की है सनम्।
( डॉ संजय दानी दुर्ग )