इन आंखों ने न जानें कितने चेहरे देखे है...
पर ये निगाहें तुम पर ही आकर टिकी..
हाय!! ये दिल मैं तभी हार बैठी थी तुम पर..
ये बाहें ढूंढती है तुम्हे आगोश में भर लेने को।
कभी –कभी तो घंटो बैठी रहती हूं निहारने को
सोचती हूं कहीं पागल सी तो नही हो गई मैं...
ऐसा क्यूं होता जिससे न मिल पाऊं उससे ही दिल हार बैठता है...
न जाने कभी मिलना हो भी पाए हमारा, पर ये एहसास बहुत सच्चा लगता है .... और तुमसे मिलने की आस दिल मैं जगाए रखता हैं।।