बिहार-दिवस मनाने का श्रेय माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को जाता है। उन्होंने ही सत्ता में आने के बाद सबसे पहले 22 मार्च को प्रति वर्ष बिहार-दिवस मनाने की घोषणा की थी। 22 मार्च 2023 को बिहार अपना 111 वाँ स्थापना-वर्ष मना रहा है। बिहार-दिवस मनाने का उद्देश्य बिहार की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास को स्मारित करते हुए उसे अक्षुण्ण बनाये रखना है तथा बिहारवासियों को बिहारी होने पर गर्व की अनुभूति कराना है। 22 मार्च 1912 ई. को पश्चिम बंगाल से पृथक् होने वाला राज्य बिहार आदिकाल से ही ज्ञान-विज्ञान व अध्यात्म का केन्द्र रहा है। 'विहार' शब्द संस्कृत-भाषा से बना है, जिसका अर्थ है- पर्यटन या निवास। प्राचीनकाल में बौद्ध-मठ को 'विहार' कहा जाता था, जहाॅं 'बौद्ध-भिक्षु' निवास किया करते थे। यही 'बौद्ध-विहार' कालान्तर में 'बिहार' नाम से प्रसिद्ध हो गया। संसार को प्रथम विश्वविद्यालय देने वाला राज्य बिहार एक या दो बार नहीं अपितु तीन-तीन बार विभाजित हुआ। सर्वप्रथम 22 मार्च 1912 ई. को पश्चिम बंगाल से अलग होकर बिहार एक राज्य बना था। उसकी एक अलग पहचान बनी। 01 अप्रैल 1936 ई.और 15 नवम्बर 2000 ई.से पहले तक क्रमशः आज का ओडिशा और झारखण्ड भी बिहार का ही अंग था। बिहार का विभाजन राजनीतिक कारणों से हुआ। आज हम बिहार-दिवस मनाते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं,क्योंकि यह वही बिहार है, जिसने संसार को सबसे पहला नालन्दा विश्वविद्यालय दिया। यह नालन्दा विश्वविद्यालय संसार के लिए ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र रहा है। यहाॅं संसार के विभिन्न भागों से लोग ज्ञान प्राप्ति के लिए आया करते थे।
प्रचलित नौ दर्शनों में चार दर्शन देने वाला भारत का इकलौता राज्य बिहार ही है। बिहार की भूमि ऋषि-मुनियों की 'पवित्र भूमि' रही है। संसार को आलोकित करने वाली ज्ञान की धारा इसी पावन भूमि से प्रस्फुटित हुई। आज हम अपने आपको बिहारी होने पर गर्व का अनुभव कर रहे हैं और बिहार की सांस्कृतिक विरासत को स्मारित कर अपने आपको को धन्य मान रहे हैं। विदेहराज राजा जनक की पुत्री सीता की जन्मभूमि भी बिहार में ही है। ऋषि याज्ञवल्क्य,मण्डन मिश्र, अजातशत्रु, बिन्दुसार आदि प्रसिद्ध दार्शनिक और शासक बिहार के ही थे। बौद्ध धर्म के प्रवर्त्तक महात्मा गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बिहार की पावन भूमि(बोधगया) में ही हुई थी। जैन धर्म के प्रवर्त्तक वर्धमान महावीर की जन्मभूमि भी बिहार में ही है। महावीर का जन्म बिहार राज्य के वैशाली जिला के कुण्डग्राम में हुआ था। हमारे बिहार की भूमि अद्वैतवाद के प्रवर्त्तक आचार्य शंकर, जिसे शंकराचार्य भी कहा जाता है,को शास्त्रार्थ में पराजित करने वाली विदुषी भारती की जन्मभूमि बिहार ही रहा है।
बिहार की राजधानी पटना (पाटलिपुत्र) में चन्द्रगुप्त मौर्य, चक्रवर्ती सम्राट् अशोक, महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य (कौटिल्य) प्रभृति प्रसिद्ध महापुरुष उत्पन्न हुए, जिन्होंने अपनी विद्या और प्रतिभा के बल पर प्रसिद्धि पाई तथा अपनी कीर्ति स्थापित की। उपर्युक्त प्रसिद्ध महापुरुषों का स्मरण करते हुए हम सशक्त और समृद्ध भारत की सुसंस्कृत परम्परा का अवलोकन करते हैं तथा स्वाभिमान के साथ स्वयं को बिहारी होने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। संसार का सबसे प्राचीन गणराज्य लिच्छवी के साक्षी के रूप में हमारा बिहार हमारे मस्तिष्क को संसार के सामने उतुंग शिखर पर उठा रखा है। यह धरती संसार को सर्वप्रथम शून्य का ज्ञान देने वाले महान् गणितज्ञ आर्यभट्ट की धरती है। यह महान् स्वतन्त्रता-सेनानी बाबू वीर कुॅंवर सिंह और खुदीराम बोस की धरती है। यह प्रेम के बन्धन को लोहे से भी सशक्त कहने वाले गद्यकार बाणभट्ट की जन्मभूमि है। बाणभट्ट का जन्म प्रीतिकूट नामक स्थान पर हुआ था। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी (बेनीपुर,दरभंगा), राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (सिमरिया, बेगूसराय), जनकवि बाबा नागार्जुन (तरौनी, सतलखा, मधुबनी), प्रसिद्ध नैयायिक उदयनाचार्य (करियन, समस्तीपुर), मैथिली भाषा के विख्यात् कवि विद्यापति (बिस्फी, मधुबनी), आरसी प्रसाद सिंह (एरौत मुसहरी, खानपुर, समस्तीपुर), गोपाल सिंह नेपाली (बेतिया), प्रयाग-प्रशस्ति के लेखक और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबारी कवि हरिषेण प्रभृति विद्वान् लेखकों की जन्मभूमि भी बिहार ही रहा है। नलिन विलोचन शर्मा, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, पण्डित रामावतार शर्मा, विदेसिया नाच के अधिष्ठाता भिखारी ठाकुर प्रभृति प्रबुद्ध, शुद्ध एवं गणमान्य अमर साहित्य-लेखकों व साहित्य-सेवकों की जन्मभूमि बिहार ही रहा है। ये गणमान्य विद्वान् बिहार के गौरव और अस्मिता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए कृत संकल्पित और कटिबद्ध थे।
हमारे बिहार की भूमि ऋषि विश्वामित्र व आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि रही है। यह भूमि भामती की भी जन्मभूमि रही है। यह भूमि प्रसिद्ध बृहदारण्यकोपनिषदीय वाक्य ''आत्मा वा अरे द्रष्टव्य: श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्य:" का उद्घोष करने वाली भूमि रही है। बिहार का प्रसिद्ध छठ पर्व लोक आस्था का इकलौता पर्व है,जो अवनति की ओर अग्रसर होने वाले को भी आदर- सत्कार करने व सम्मान प्रदान करने की प्रेरणा देता है। यह छठ पर्व भारत के अलावा विश्व के विभिन्न देशों में भी मनाया जाता है। होली, रामनवमी, जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) आदि पर्व भी बिहार की ही देन है। संसार में प्रसिद्ध माछ ,पान और मखान का उद्घोष करने वाली मिथिलाभूमि भी बिहार में ही है।
बिहार का चम्पारण राष्ट्रपिता महात्मा गाॅंधी की कर्मभूमि है। प्रधानमन्त्री बनने से पहले श्री नरेन्द्र मोदी ने भी चुनाव प्रचार के लिए सबसे पहले बिहार की पावन भूमि पटना का ही चयन किया था। संस्कृत-भाषा में प्रथम उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार पण्डित अम्बिकादत्तव्यास की कर्मभूमि भी बिहार राज्य की राजधानी पटना ही रही है। पण्डित अम्बिकादत्त व्यास राजकीय संस्कृत महाविद्यालय,पटना में आजीवन प्राध्यापक के पद पर रहे।
उपर्युक्त तथ्यों के विश्लेषण उपरान्त हम स्वयं को बिहारवासी होने पर गर्व करते हैं तथा स्वाभिमान के साथ गदगद स्वर में कहते हैं कि हम बिहारी हैं। उपर्युक्त तथ्य उनके के लिए भी दर्शनीय हैं, जो बिहार को हेय-दृष्टि से देखते हैं और बिहारी कहकर बिहारवासियों का उपहास करते हैं। भारत को प्रथम राष्ट्रपति (डॉ.राजेन्द्र प्रसाद) देने वाला राज्य बिहार ही है। भारत को विश्वगुरु बनाने वाला राज्य और कोई नहीं, हमारा बिहार ही है। हमारा बिहार ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म का केन्द्र रहा है। विश्व को मधुरतम मैथिली भाषा देने वाली भूमि मिथिला भी बिहार में ही है। वाद्य यन्त्र को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जन्मभूमि भी बिहार में ही है। मिथिला पेंटिंग, जो विश्वभर में प्रसिद्ध है, बिहार की ही देन है, फिर भी हम स्वयं को बिहारी कहने में लज्जा का अनुभव क्यों करते हैं? इतनी बड़ी विरासत होने के कारण ही हम स्वयं को बिहारी कहलाने में लज्जा नहीं, अपितु गौरवानुभूति करते हैं।
डॉ नन्द किशोर साह
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़े हैं। समसामयिक मुद्दों पर लेखन में रुचि रखते हैं।
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