आज के समय में सभी माता पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते है उन्हे शिक्षित करना चाहते है। पिछली पीढ़ी के लोगो को पढ़ने के उतने अवसर नहीं मिले जितने की वर्तमान पीढ़ी को मिल रहे है। ये बात सुनने में बड़ी लगती है लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जिसका सीधा प्रभाव युवा विद्यार्थियों की जिंदगी पर पड़ रहा है। माता पिता बच्चों को शिक्षित करने की बजाए उनसे पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने की उपेक्षा करने लगे है। माता पिता ये सोचकर बैठ गए है की जो काम वो नहीं कर पाए अब उनके बच्चे उनके लिए करेंगे जैसे की उनके बच्चों की इच्छा का कोई मतलब ही न हो। खासकर उत्तर भारत के लोग जो बच्चों के पैदा होने से पहले निश्चित कर देते है की उनका बच्चा आई०ए०एस, इंजीनियर, डॉक्टर आदि बनेगा और बचपन से ही ये बाते उनके कानों में भर देते है और बच्चे जब बड़े होते है तो उन्हे लगता है की ये विचार उनके है। बच्चे इस बात से अनजान होते होते है की ये विचार उनके नही बल्कि उनके कानों में बड़ी सावधानी से डाले गए है। बच्चे को अपनी बुद्धि विवेक से अपना भविष्य तय करने की आजादी हम नहीं दे पाते है।
बुरे हालत उन बच्चो के अधिक है जो पढ़ाई लिखाई में बेहतर है क्योंकि उनसे ज्यादा उम्मीदें रखी जाती है, उन बच्चों का जिक्र तभी आता है जब पढ़ाई पर चर्चा चल रही हो। कभी कभी ऐसा लगता है की वो बच्चा पढ़ाई लिखाई में अच्छा न होता उसका मूल्य ही क्या था, इस समाज में, मोहल्ले में, और उसके रिश्तेदारों में उसकी हैसियत ही क्या होती।