उपन्यास
विजय बहादुर
भाग -2
अनजान लड़की और आदमखोर
"वाह विजय बाबू मान गए तुम्हे,क्या भूतिया कहानी सुनाई है। मैं तो सच में डर गया था। "ठीक है मनोज,रात बहुत हो गई है, अंधेरा भी पहले से अधिक बढ़ गया है। अब हमे सो जाना चाहिए, सुबह कब्र की खोज पर को निकलना है।" ये सुनते ही मनोज ने भी हां में सिर हिला दिया। वे दोनों फिर गहरी नींद में सो गए। जंगल में चारो तरफ एक भयानक सा अंधेरा छाया हुआ था। भयानक आवाज़ें चारों तरफ से आ रही थी । कभी कुत्तों के भौंकने की आवाजें आती थी तो कभी गीदड़ों के भौंकने की आवाजें आती थी। अचानक से बाहर तेज हवा चलने लग गई ।विजय को अचानक से ठंडी हवा का एक झोंका सा आकर लगा और उसकी नींद खुल गई। उसने बाहर देखा चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था ।उसे अचानक एक लड़की की आवाज सुनाई दी। लड़की पुकार रही थी "बचाओ, बचाओ।" यह आवाज सुनकर विजय उठ खड़ा हुआ । उसने अपने दोस्त मनोज की और देखा तो मनोज गहरी नींद में सोया हुआ था। उसने मनोज को जगाने की कोशिश की मगर मनोज तो मानो कुंभकर्ण की नींद सो रहा था। विजय ने अपनी तलवार उठाई और गुफा से बाहर निकल गया। विजय ने बाहर आकर देखा बाहर अभी भी अंधेरा था पर यह चांदनी रात थी इसलिए काफी कुछ साफ नजर आ रहा था। पर चारों तरफ छाया अजीब सा सन्नाटा किसी के भी दिल में डर पैदा करते हैं ।अगर विजय के स्थान पर उस रात कोई और होता तो वो डर ही जाता। विजय गुफा के बाहर कुछ देर तक सतब्ध सा खड़ा रहा। उसे समझ में नही आ रहा था की वो क्या करे। उसने मनोज की और देखा वो अब भी गहरी नींद में सोया पढ़ा था। कि तभी फिर से वही लड़की की चिलाने की आवाज आई। विजय उस आवाज की और धीरे-धीरे चलने लगा। वह आवाज तेज होने लगी ।विजय ने भी अपनी गति तेज कर दी। फिर वह बहुत तेजी से दौड़ने लगा और गुफा से काफी दूर निकल गया। वह आवाज भी अब नजदीक आने लगी ।आवाज कुछ भयंकर सी झाड़ियां के पीछे से आ रही थी। उसे भी कुछ डर लग रहा था ।उसने डरते डरते धीरे से झाड़ियां के पीछे देखा तो झाड़ियों के पीछे का नजारा देखकर वह दंग रह गया ।उसका शरीर सुन सा हो गया। मानो उसे लकवा मार गया हो । कोई छोटी सी लड़की 10 से 12 साल की एक पेड़ के पास गिरी हुई थी और वह चिल्ला रही थी उस लड़की के सामने एक बहुत ही भयानक खतरनाक और बड़ा सा भेड़िया खड़ा था। वह भेड़िया लड़की की और घूर घूर कर भयानक सी नजरों से देख रहा था माना वह लड़की ही अब उसका भोजन थी। विजय के कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और क्या ना करें। विजय ने अपने कंप कंपाते हुए हाथों से अपनी तलवार निकाल ली। इतने में उस भेड़िए ने तेजी से उस लड़की की और छलांग लगा दी। उस लड़की ने डरते हुए अपनी आंखें बंद कर ली और जोर से चिला उठी मानो यह उसकी जिंदगी के कुछ आखिरी पल हो। कुछ देर तक कुछ भी घटित नहीं हुआ। उस लड़की ने डरते हुए धीरे-धीरे अपनी आंखें खोली। उसने देखा की विजय तलवार लेकर उस भेड़िए पर टूट पड़ा था। लड़की ने आश्चर्य से विजय की और देखा मानो उसे विजय के रूप में अपना मसीहा मिल गया हो। भेड़िए और विजय के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। कभी भेड़िया जीतते हुए नजर आता तो कभी विजय जीतते हुए नजर आता । वह लड़की आंखें फाड़ फाड़ कर सब कुछ देख रही थी। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है । विजय ने अपनी पूरी ताकत लगाकर भेड़िए को उठाकर दूर फेंक दिया।वह लड़की विजय की बहादुरी को देखकर दंग रह गई । कुछ देर तक दोनों के बीच इसी तरह यह लड़ाई चलती रही। लड़की अभी भी पेड़ की जड़ों के पास गिरी पड़ी थी। वह हिल भी नहीं पा रही थी मानो उसे लकवा मार गया हो। भेड़िए ने अचानक ही विजय के जोरदार पंजा दे मारा जिसके कारण विजय एक पेड़ से जा टकराया । उसकी तलवार भी थोड़ी दूरी पर जा गिरी। उस लड़की की अब विजय के रूप में आखरी उम्मीदें भी समाप्त हो चुकी थी। वह भेड़िया फिर से उस लड़की के सामने जाकर खड़ा हो गया और फिर से लालायित नजरों से उसकी और देखने लगा। विजय तो हिल भी नहीं पा रहा था। भेड़िया लड़की के ऊपर छलांग लगाने के लिए तैयार हो गया और उसने विजय के देखते ही देखते छलांग लगा दी। अचानक ही ना जाने किसने विजय में जान फूंक दी। उसने अपनी तलवार उठाई और जोर से चीखते हुए भेड़िए की ओर लपक पड़ा । इससे पहले कि वह भेड़िया लड़की तक पहुंच पाता विजय ने अपनी तलवार से उस भेड़िये के दो टुकड़े कर दिए। उसे भेड़िये के टुकड़े उस खामोश और सुनसान सी रात में वहीं पर बिखर कर रह गए। विजय भी लोटपोट होता हुआ एक पेड़ की कोख में जा गिरा। उस लड़की ने अब कुछ राहत की सांस ली।।वो सांवले से रंग की लड़की डरते हुई धीरे धीरे खड़ी हुई। विजय भी संभलते हुए खड़ा होकर उस लड़की के पास चला गया। विजय ने लड़की के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा"बेटा तुम कोन हो और इतनी रात को इस सुनसान से जंगल में क्या कर रहीं हो?" उस लड़की ने विजय की और भावसून्यता से देखते हुए कहा। " जंगल के दूसरे सिरे पर हमारा कबीला है। हम वही रहते हैं। मैं अपने दोस्तो के साथ जंगल में जड़ी बूटियां लेने आई थी। हमे काफी देर हो गई थी,अंधेरा भी पहले से अधिक बढ़ चुका था। वापिस लौटते वक्त मैं अपने दोस्तो से बिछड़ गई और इस जंगल में खो गई तभी मुझ पर उस भेड़िए ने हमला कर दिया।" यह कहकर लड़की कुछ देर के लिए अपनी सोच में गुम सी हो गई।वो लड़की फिर से घबराते हुए बोल पड़ी" लेकिन तुम इतनी रात को इस आदमखोरों के जंगल में क्या कर रहे हो?" आदमखोरों का नाम सुनते ही विजय थोड़ा सा घबरा उठा और बोला "आदमखोर"। "हां रात के वक्त इस जंगल में खतरनाक आदमखोर आते है। अगर कोई इंसान उन्हे मिल जाए तो वो उसे उठा ले जाते है और मारकर खा जाते हैं। जिस तरह वो मेरे दोस्त मीना और बुधिया को खा गए थे।" ये सुनते ही विजय थोड़ा सा घबरा गया। उसे अचानक ही मनोज का ख्याल आया। वो अपने आप से बुधबुधा पड़ा"मनोज।" लड़की ने भी शकभरी निगाहों से से विजय की और देखा और बोल पड़ी"कोन मनोज।" "मेरा दोस्त मनोज , हम दोनो एक गुफा में रुके थे,वो अब भी वही सो रहा है।" "तुमने उसे अकेला छोड़ दिया।जल्दी चलो उसे आदमखोर उठाकर ले जायेंगे।" लड़की की ये बात सुनते ही विजय के चेहरे का रंग उड़ गया। विजय ने उस लड़की का हाथ पकड़ा और तेजी से गुफा की और भागने लगा।वो थोड़ी देर में गुफा के पास पहुंचा।वो हांफने लगा। उसने डरते हुए गुफा के अंदर देखा और उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गई। अंदर मनोज नही था। वो डरते हुए गुफा के अंदर घुसा। लड़की भी डरते हुए उसके पीछे गुफा में घुसी। विजय ने सारी गुफा छान मारी पर अंदर मनोज नहीं था। वो डरते हुए तेजी से बाहर निकला और जोर जोर से मनोज को आवाज देने लगा । उसने अपना होश ही खो दिया। वो वही घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया और रोने लगा। वो रोते हुए खुद से ही कहने लगा "अगर मुझे पहले ही पता होता तो मैं मनोज को कभी भी अपने साथ नहीं लाता। मैंने उसे खो दिया।" यह कहकर विजय जोर जोर से रोने लगा । उसके आंसू जमीन पर गिरने लगे। उसने सारी जिजीविषा खो दी। ये सबकुछ देखकर वो लड़की भी भावुक हो गई। उससे ये दृश्य देखा न गया। उसने विजय के कंधे पर हाथ रखा और बोल पड़ी "तुम अब भी अपने दोस्त को बचा सकते हो। ये वक्त रोने का नही है तुम्हे बहादुरी से काम लेना चाहिए।" लड़की की इन बातों ने मानो विजय में प्राण फूंक दिए हो। उसने लड़की की और देखा और हड़बड़ाहट में बोल पड़ा "वो आदमखोर कहा रहते हैं?" ये सुनते ही लड़की थोड़ी सी निराश हो गई और धीरे से कहा"मुझे नहीं मालूम। मगर हां तुम मेरे साथ चलो। हमारे कबीले के सरदार जरूर तुम्हारी मदद करेंगे।" लड़की की इस बात ने विजय में थोड़ा सा उत्साह भर दिया और वो तेजी से बोल पड़ा "ठीक है जल्दी चलो।" वो लड़की तेजी से चलने लगी । विजय भी तेजी से उसके पीछे चलने लगा। विजय के तो कुछ भी समझ में नही आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है? वो बस तेजी से उस लड़की के साथ चला जा रहा था। सुबह हो गई। सूरज भी निकल चुका था। वे दोनो चलते चलते जंगल से बाहर निकल गए।वो लड़की विजय को कुछ झोपड़ियों की और ले जाने लगी । कुछ का काफी झोंपड़ियां थी । जंगल के बाहर तो अच्छा खासा कबीला बसा हुआ था। वे कबीले के अंदर घुसे। लड़की ने एक और नजर दौड़ाई और उस नजारे को देखकर वो सिहर उठी।।
✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।