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आँखें तेरी, कितनी हसीं

25 July 2024

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Udaipur

एक फैक्ट्री के बाहर एक आदमी अपने दोनों हाथ अपनी पीठ के पीछे करके खड़ा हुआ था। वो बहुत ध्यान से उस फैक्ट्री को देख रहा था, उसके पीछे एक दूसरा आदमी खड़ा था और उसके आस पास कई और लोग खड़े थे, उन सभी के हाथों में बंदूकें थी। तभी एक आदमी उनके पास आके अपना सर झुका के उसे कहता है —" सिकंदर सर आप यहाँ"

सिकंदर बिना उसकी तरफ़ देखे ही  उस्से कहता है, —"क्यूँ राजेश हम यहाँ नहीं आ सकते क्या"

राजेश उसकी बात सुनकर जल्दी से बोला—"  कैसी बात कर रहे हो सर आप ,ये सब तो सर का ही है आपको यहाँ आने से भला कौन रोक सकता है,"

फिर वो थोड़ा रुक कर बोला —"मैं तो इसीलिये पूछ रहा था, कि कभी आप इस बंद फैक्ट्री को देखने नहीं आये सिर्फ फोन पर ही बात करते थे और आज तो मालिक भी आये हैं।" इतना बोल वो चुप हो गया

तभी वो आदमी जो फैक्टरी को ध्यान से देख रहा था वो, अपनी तेज मगर शांत आवाज मैं बोला—" अब इस फैक्ट्री के खुलने का समय आ गया है राजेश।" उस आदमी की आवाज में एक अलग ही रुतबा था, यह है अर्जुन सिंह राणावत

उसकी बात सुनकर राजेश बोला —"लेकिन सर वो खुराना"

राजेश की बात का जवाव देते हुए अर्जुन बोला —"उस खुराना से मिलने का भी समय आ गया है। " इतना बोल अर्जुन अपनी गाड़ी की तरफ बड़ जाता है।

उसे जाते देख वहाँ खड़े बाकी लोग भी अपनी अपनी गाड़ी में बैठ जाते हैं और सिकंदर ,अर्जुन की गाड़ी में आँगे वाली सीट पर बैठ जाता है। सिकंदर, अर्जुन का पर्सनल बॉडीगार्ड और खास आदमी था।

उनकी गाड़ियाँ हबा से बातें करते हुए थोड़ी ही देर में एक घर के बाहर जाके रुकती हैं। ये खुराना कंस्ट्रक्शन के मालिक विजय खुराना का घर था।

सिकंदर जल्दी से गाड़ी से बाहर निकल पीछे का गेट खोलता है, अर्जुन अपने पावरफुल औरा के साथ गाड़ी बाहर निकलता है।

तभी उस घर के बाहर खड़े गार्ड अर्जुन का रास्ता रोकते हैं। ये देख अर्जुन के आदमी जल्दी से अपनी-अपनी बंदूकें निकाल उन सबको सर पर रख देते हैं। तभी सिकंदर अपना हाथ दिखा कर अपने लोगों को अपनी बंदूकें नीचे करने को कहता है।

फिर अर्जुन के आदमी, खुराना के आदमियों को साइड करते हैं।, उसके बाद अर्जुन उनके बीच से होते हुए घर के अंदर  दाख़िल होता है। घर में खुराना अपने लिविंग रूम के सोफे पर बैठा था, अर्जुन सीधा जाके उसके सामने वाले सोफे पर आके बैठ जाता है।

अर्जुन जिस तरह बैठा था,वो इस समय किसी राजा की तरह लग रहा था ।

अर्जुन को अपने सामने देख खुराना गुस्से से अपनी जगह से खड़ा होता है, खुराना की आँखों में भी गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। खुराना, अर्जुन को घूरते हुए गुस्से से कहता है—"तुम यहाँ क्या करने आये हो।"

खुराना की बात का जवाब देते हुए अर्जुन अपने चेहरे पर एक शातिर मुस्कान के साथ बोला —"कमाल करते हो खुराना, घर आये मेहमान से इस तरह पेश आया जाता है"

फिर अर्जुन , अपने सेकुरिटी हेड सिकंदर को इशारा करता है, उसका इशारा पाकर सिकंदर अपने साथ लाए कुछ फाइलें अर्जुन को दे देता है।

अर्जुन उन फाइलों को खुराना को देते हुए कहता है—" ये उस फैक्ट्री के पेपर्स हैं, आज से वो फैक्ट्री ASR की हुई "

अर्जुन की बात पर खुराना गुस्से से उसकी की तरफ देख बोला —"तुम जानते हो मैं क्या कर सकता हूं।"

तभी अर्जुन अपनी जगह से खड़ा हुआ और खुराना की आँखों में आँखें डाल कर बोला—" लेकिन तुझे अंदाज़ा नहीं है मैं क्या क्या कर सकता हूँ तेरे साथ।"

उसकी बात पर खुराना  गुस्से में चिल्लाते हुए बोला —"अर्जुन  सिंह राणावत, भूलो मत तुम इस भक्त मेरे इलाक़े मैं खड़े हो। तुम्हारे साथ तुम्हारे ये आदमियों की भी  जान जा सकती है।"

खुराना का इतना कहना था की तभी अर्जुन अपनी जेब से बंदूक निकाल खुराना के माथे पर प्वाइंट करते हुए गुस्से से उसकी आँखों मैं देख कहता है—"अगर आज के बाद मेरी फैक्ट्री या मेरे किसी आदमी की तरफ आँख भी उठाई तो तेरी माँ की कसम खाके कहता हूंँ, तेरे इसी घर में तुझे जिंदा गाड़ दुंगा।"

अर्जुन का गुस्सा देख तो एक बार के लिए उसके आदमी भी डर गए। लेकिन सिकंदर, अर्जुन के साथ पिछले 10 साल से था। वो उसकी रग रग से वाकिफ़ था।

 बात को समालते हुए,सिकंदर बोला- "खुराना इस बार हम सिर्फ बात करने आए थे, अगली बार हमारी किसी चीज पर नजर डाली ना तो याद रखना।"

उसके बाद अर्जुन अपनी आँखों पर शेड्स लगाकर वहाँ से निकल जाता है।

कुछ दिन बाद

रविवार का दिन,

उदयपुर शहर के चेतक सर्कल की एक गली में एक छोटा सा घर बना हुआ था ,वैसे तो ये घर देखने में एक  साधारण मध्यम वर्ग का  घर जैसा ही था ,मगर आज कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रहा था ,गेंदों के फूलों, लिली के फूलों से सज़ा ये घर जिसके मेन गेट से balcony तक फूल लगे थे ,आज किसी दुल्हन की तरह लग रहा था।

घर के आँगन में से एक आदमी की आवाज़ आती है,"आज मुझे कोई चाय देगा की नहीं ,या आज बिना चाहे पिए ही रह लूँ, अरे मेरा आज का अखबार कहाँ है, इस बुड्डे को तो कोई पूछता ही नहीं है। "

ये हैं इस घर के सबसे बड़े और सबके प्यारे, मोहन कुमार शर्मा यानि कि दादाजी। 

"क्या दादाजी ,क्या ऐसा कभी हो सकता है, कि आपको कोई ना पूछे, कोई और सुने ना सुने हम जरूर सुनेंगे, ये लीजिए आपका अखबार और आपकी गरमा गरम चाय। " ये हैं प्रिया शर्मा,मोहन जी की छोटी पोती।

"ये चाय तूने बनाई है?" दादाजी ने पूछा। 




जी दादाजी। "

"तो मुझे नहीं पीनी,में तो अपनी चाहत बेटी के हाथ की ही बानी चाय ही पीता हूँ।"मोहन जी ना कहा। 

"तो फिर आपको अपनी सुबह की चाय का इंतज़ार करना होगा क्यूं की आपकी प्यारी बेटी,चाहत दी बाहर गई हैं। "प्रिया ने कहाl ये सुनकर मोहन जी ने मुंह बना लिया।

दूसरी तरफ उदयपुर ,शहर की एक सुनसान सड़क पर एक लड़की कुछ लोगों से बचने के लिए भाग रही थी, कपड़े पर खून के धब्बे और चेहरे पर घबराहट, बिखरे बाल और हाथों पर चोट के निसान।भागते भागते वो लड़की जब वो थक गई ,तो वो एक बड़े से बैंक्वेट हॉल के पास आके रुकी। जब उसको लगा ली वो लोग उसके पीछे ही आ रहे हैं ,तो वो जल्दी से अंदर भाग गई।

" वो लड़की कहाँ गई ढूढो उसे अगर वो लड़की नहीं मिली तो बॉस हमें जान से मार देंगे। "उन लोगों में से एक आदमी ने कहा। 

"पर अंदर जाना ठीक रहेगा? देखो ना इस जगह पर कितनी सिक्योरिटी है, किसी ने हमें पहचान लिया तो?" दूसरे आदमी ने कहा। 

वो लड़की एक कोने में छुपके उनकी ये बातें सुन रही थी उसे भी लगा कि ये जगह उसके लिए सुरक्षित है।

शर्मा परिवार में -

"ये चाहत बेटी का फोन क्यों नहीं लग रहा कहाँ रह गई ये?" ये बोलते हुए अरविंद जी के चेहरे पर दुख के भाव थे। ये हैं अरविंद शर्मा ,मोहन जी के बेटे और चाहत और प्रिया के पिता।

"आप क्यों इतनी चिंता कर रहे हो ,आ जाएगी वो हमारी बेटी बहुत समझदार है ,किसी काम में फंस गई होगी। " ये हैं अरविंद जी की पत्नी और चाहत और प्रिया की माँ स्वर्णिमा जी।

"आप नहीं समझतीं हमारी बेटी बहुत मासूम है ,और ये जमाना बहुत खराब है,2 बेटियों के बाप हैं। हमें चिंता तो होगी ही ना, ऊपर से आज चाहत की सगाई है। हम नहीं चाहते कि आज के शुभ दिन पर कोई भी परेशानी हो। " अरविंद जी ने कहा।

BANQUET Hall - 

वो लड़की सबसे छुपके एक कमरे में घुस गई, कमरे में जाते ही उस लड़की की नज़र बिस्तर पर रखी एक ड्रेस पर गई ,फिर उसने खुद के कपड़े पर लगे खून को देखा और खुद से कहा कहा,"चाहत बेटा अपने कपडे चेंज कर और भाग यहाँ से, अगर इस खून के कपड़ों में किसी ने तुझे देख लिया ना तो समस्या हो जाएगी। "

जी हाँ सही पहचाना आपने , ये है चाहत शर्मा ,अरविंद जी की बड़ी बेटी और शर्मा परिवार में सबकी प्यारी और लाडली।

उसने वो ड्रेस उठाई और अंदर वॉशरूम में चली गई वॉशरूम में जाने के बाद चाहत ने वो ड्रेस देखी तो उसका मुंह खुला रह गया और अपने सर पर मारते हुए खुद से कहा ,"चाहत ये तो किसी दुल्हन का लहंगा लगता है ,अब हम कुछ नहीं कर सकते भगवान हमें माफ करना किसी का लहंगा चुरा रहे हैं, क्यूँ कि हमारे कपडे तो खराब हो गए हैं, और हमारे पास दूसरे कपडे भी नी हें। "

यहीं सोचते सोचते चाहत ने वो लहंगा पहन लिया और वॉशरूम से बाहर आ गई। देर बाद उस कमरे का दरवाज़ा खुलता है ,और एक 45 साल की महिला अंदर आती है, दिखने में  वो किसी 90 की हीरोइन से कम नहीं थी, गहरे लाल रंग की साड़ी पर कट स्लीव ब्लाउज़ ,जैसे ही उन्होंने कमरे में कदम रखा तो सामने देखा कि एक लड़की उनकी तरफ अपनी पीठ करे खड़ी है।

वो बोली,"नताशा बेटा तुम अभी तक तैयार नहीं हुई, जल्दी करो बाहर सभी मेहमान आ चुके हैं। "

और ये बोलकर वो चाहत की तरफ बढ़ने लगीं, उनके कदम खुद की तरफ आते देख चाहत की साँसे तेज हो गई ,वो मन मैं बोली,"आज तो हम गए ,आज हमें कोई नहीं बचा सकता?"

वो औरत चाहत की तरफ़ आती उससे पहले ही बहार से आवाज आती है," Mrs.bajaj आपको मिस्टर बजाज कबसे ढूढ़ रहे हे चलिये बारात आ गयी है। "

"अरे वाह! बारात आ गई ,नताशा बेटा तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हम तुमको लेने आएंगे। "ये कह कर वो कमरे से चली गई ।

 उनके जाने के बाद चाहत की जान में जान आई उसने खुद से कहा ,"चाहत बेटा भाग यहाँ से जल्दी, नहीं तो ये आंटी तेरी सादी कराके मनेगी। "

फिर और इदर उधर देख कर चुकपे से कमरे से बाहर निकलने लगी तभी अचानक से उसकी नजर उन्हीं लोगों पर पड़ी जो उसका पीछा कर रहे थे ,और वो बिना देखे पीछे मुड़ी और किसी से टकरा गई ,पर जैसे ही वो गिरती, किसी ने उसे अपने मजबूत हाथों में थाम  लिया डर की वजह से चाहत ने अपनी आँखें बंद करली।

उसके कानों में एक आवाज़ सुनाई दी,"Beautiful" , 

उसने अपनी आँखें खोलीं और जल्दी से सीधी खड़ी हो गई ,और बोली , "सॉरी सॉरी हम गलती से आपसे टकरा गए ,हम जा ही रहे थे। "

जैसे ही वो जाने को हुई उस लड़के ने उसका एक हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा  ,अब चाहत के दोनों हाथ उस लड़के के सीने पर थे। वो दोनों इस वक्त एक दूसरे की आँखों मैं देख रहे थे। चाहत की आँखे इतनी आकर्षक और गहरी थीं, कि देखने वाला उनमें डूब जाए, उसकी आँखें किसी क्रिस्टल की तरह चमक रही थी, वो शक्स उसकी आँखो में ही देख रहा था। 

चाहत की  आँखें गहरी थीं उसपर बड़ी बड़ी पलकों का पेहरा था।वो सिर्फ उसकी आखौं मैं देख रहा था, चाहत की आँखें इतनी खुबशुरत थीं कि हर किसी का दिल ले लेंगी।

तेरी आँखों मैं इतनी गहराई है की होकर के मैं मदहोस् डूबा चला जा रहा हूं।

तबी background मैं म्यूजिक बजता है।

आँखों में तेरी अजबसी अजबसी अदायें हैं आँखों में तेरी अजबसी अजबसी अदायें हैं दिल को बना दे जो पतंग साँसे ये तेरी वो हवायें हैं।

आख़िर किस्से बचके भाग रही थी चाहत और कौन थी ,नताशा और कौन था जिस्से टकराई थी चाहत? 

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Ishq ibadat
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ले कहानी तीन ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी बैकग्राउंड और बिलीफ बिल्कुल अलग हैं। अमीर, गुस्से वाला और आत्मविश्वासी उदयपुर का बिजनेसमैन, अर्जुन सिंह राणावत और एक नॉर्मल मिडिल क्लास फैमिली की लड़की, चाहत। अर्जुन सिंह राणावत, एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन जो अनुशासन और फैमिली वैल्यूज़ के अनुसार जीता है, उसकी मुलाकात चाहत से होती है। और अर्जुन को पहली नजर में ही चाहत से प्यार हो जाता है। दूसरी तरफ़ है द्वारका की एक फैमिली की लड़की, कृष्णा। कृष्णा जो किसी का भी मूड ठीक कर सकती है, खूब बात करती है,अपने ग्रुप की स्टार है, हर पल का आनंद लेती है, आत्मविश्वासी है। इन तीन व्यक्तियों का जीवन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, तथा भाग्य एक धूर्त खेल खेलता है।