क्या अधूरापन , सिंधु के तन मे
क्या कमी है , भारत के तन मे
खुश नसीबदार , निशांत कुमार
भारतवासी , निशांत कुमार
चंद पैसों के लिए , वतन छोड़ दूं क्या ?
बाहरी आनंद के लिए , पवित्र धाम छोड़ दूं क्या ?
इस देश की संस्कृति , त्यौहार लाते है आनंद पूरा
मां के आंचल मे , मे मिलता सुकून पूरा
भारत देश छोड़ना , अपना तन छोड़ना
अपना घर छोड़ना , मां की उंगली छोड़ना
स्वदेशी होकर क्यों , मै विदेशी बनू ?
अपना होने के बावजूद क्यों , मै पराया बनू ?
क्या इतने गरीब है , हम जिंदगी ना चला सके ?
क्या इतना मतलबी है , हम अपनी मां को भूल जाए ?
हमे तो पैसा ही दिखता , पर अपना भारत नही दिखता
हमे तो आधुनिक जिंदगी दिखती , पर अपना वतन नही दिखता