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भारतीय हूं गर्व मुझे खुद पर 15 October 2021

7 October 2022

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क्या अधूरापन , सिंधु के तन मे
क्या कमी है , भारत के तन मे
खुश नसीबदार , निशांत कुमार
भारतवासी , निशांत कुमार

चंद पैसों के लिए , वतन छोड़ दूं क्या ?
बाहरी आनंद के लिए , पवित्र धाम छोड़ दूं क्या ?
इस देश की संस्कृति , त्यौहार लाते है आनंद पूरा
मां के आंचल मे , मे मिलता सुकून पूरा

भारत देश छोड़ना , अपना तन छोड़ना
अपना घर छोड़ना , मां की उंगली छोड़ना
स्वदेशी होकर क्यों , मै विदेशी बनू ?
अपना होने के बावजूद क्यों , मै पराया बनू ?

क्या इतने गरीब है , हम जिंदगी ना चला सके ?
क्या इतना मतलबी है , हम अपनी मां को भूल जाए ?
हमे तो पैसा ही दिखता , पर अपना भारत नही दिखता
हमे तो आधुनिक जिंदगी दिखती , पर अपना वतन नही दिखता 
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मेरी भावनाएं
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मेरी भावनाएं सब के लिए प्यार है
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कहां गई मां मुझे छोड़ कर?

1 October 2022
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वो आंचल, पेड़ की छांवआनंदमय,नींद देती छांवटूटे उम्मीद,बने हौसलाजन्म दिया,नया जीवन दियाजीवनदाता ने,बहुत स्नेह दियारोता हूं मैं,आंसू पोछतीजहन से मेरे,दर्द पोछतीसनाटा छाया,गई मांबीच सफर,छोड़ गई मांवो कमी

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काश हम बच्चे ही रहते कवि: निशांत कुमार

2 October 2022
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वो कोमल कपास,छोटे-छोटे हाथउंगली पकड़े,बड़े थामे हमारा हाथपहले वादन,फिर चलन सिखाचरण शिखर,चढ़ना सिखाचलते-चलते,डगमगागते हमआगे बढ़ते-बढ़ते,गीर जाते हमचोट लगती,विलाप करते हमझखम सहे,आगे बढ़ते हममुख से,

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कोयल की उड़ान मधुर आवाज कवि: निशांत कुमार

3 October 2022
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चल पड़ी , चिल-चिल करतीमधुर स्वर , गुनगान करतीमीठापन , कोयल बरसाएअपना गीत , सुरीला गाएआवाज़ सुहानी , रौनक फैलादेवो सुरीला रस , चारौर बरसादेसुनो-सुनो , कुछ कहना चाहतीमधुर वाणी , हमे सुनाना चाहतीआम मिठफल

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किसी का दिल मत तोड़ना

5 October 2022
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टूटा दिल रोया , बचपनभारी पड़ गया , भोलापनतुम हो बड़े , अड़कनबाजधोखेबाज , धोखेबाजगरीब के मुंह से निवाला छीनातुमने उनका , अधिकार छीनातुम अधूरे , दिमाग बाजधोखेबाज , धोखेबाजतुमने मेरा , जहन तोड़ामेरा

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प्रात काल का सौंदर्य

6 October 2022
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हो गया नीला , निकल आया उजालाआकाश , हो गया थोड़ा नीला-नीलाउदय हो रहा , नई उम्मीदों काउग रहा , सूर्य विश्वास कानील जैसे , शंख बज रहा होयह वादय , भजन चल रहा होपक्षी चिलाकर , ऊर्जा बरसाता हैसूर्य स्वयं क

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भारतीय हूं गर्व मुझे खुद पर 15 October 2021

7 October 2022
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क्या अधूरापन , सिंधु के तन मेक्या कमी है , भारत के तन मेखुश नसीबदार , निशांत कुमारभारतवासी , निशांत कुमारचंद पैसों के लिए , वतन छोड़ दूं क्या ?बाहरी आनंद के लिए , पवित्र धाम छोड़ दूं क्या ?इस देश की स

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हे सुबह तुम्हे नमस्कार

10 October 2022
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नई ऊर्जा भण्डार हैशुरुवाती ही बेशुमार हैतुम से करू ज्यादा प्यारबरसाए उमंग बेशुमारहे सुबह तुम्हे नमस्कार आकाश नीला हुआ ज़रा साउम्मीद का निकला उजाला जरा साचला आया आनंद का सवेरालाया संग खुशियों का ब

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