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चिट्ठी

22 January 2023

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     सावन का पावन महीना समाप्ति की ओर था। चारो तरफ हरियाली थी। सावन के महीने में कई त्योहार भी आते हैं। जिनमें से एक है रक्षाबंधन। रक्षाबंधन में सबके घर कुछ न कुछ आ रहा था। किसी के घर राखी तो किसी के घर मिठाई तो किसी के घर तोहफ़े लेकिन रमेसर के घर जो आया उसने सबकी राखी फ़ीकी कर दी।

शाम का वक़्त था, रमेसर कुछ लोगों के साथ चाय पी रहे थे। गांव के बाजार का चाय दुकान जरूर था लेकिन विजय ने इसमे टीवी लगा रखी थी। सब न्यूज़ देख रहे थे, तमाम तरह की चर्चाएं भी हो रही थी। गांव का चाय दुकान किसी न्यूज़रूम से कम नहीं होता , वहां भी राजनीति से लेकर विज्ञान तक कि चर्चाएं होती रहती हैं। आज सुबह जो खबर आई थी जिसमें आतंकियों ने सेना के काफ़िले पर हमला करके 14 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। वही खबर अभी भी सभी चैनलों पर छाई हुई थी। गांव के लोग भी इसी ख़बर को लेकर बात कर रहे थे तभी रमेसर के मोबाइल बजने की आवाज़ पर सब रुके। रमेसर ने जैसे ही मोबाइल का हरा बटन दबाया उधर से आवाज आई-" हेलो , क्या आप रामेश्वर सिंह बोल रहे हैं?" रमेसर ने जवाब में सवाल कर दिया-" जी, आप बताइए कौन हैं?"
उधर से आवाज आई-" मैं सेना के 26 बटालियन से बोल रहा हूँ......" उसके बाद जो बात उस व्यक्ति ने बताई उसको सुनकर रमेसर के हाथ से चाय का कुल्हड़ तो छूटा ही वो खुद भी धप्प से नीचे बैठ गए। वहां खड़े लोग हतप्रभ होकर उनकी मदद करने लगे लेकिन रमेसर कुछ देर के लिए पत्थर की मूर्ति बन गए। इसी बीच सुबोध ने फ़ोन उठाई और आगे की बातें की।

फ़ोन कट चुका था लेकिन सुबोध अभी तक उसको कान से चिपकाए न जाने कहाँ खोया हुआ था। अगर दूसरे लोगों ने उसको जंकझोरा न होता तो किसी को पता नहीं चल पाता कि अपने गांव का नौजवान योगेश आज आतंकवादी हमले में शहीद हो गया। गांव में मातम पसर गया। किसी तरह रमेसर को लोगों ने घर पहुंचाया। घर मे कोहराम मच हुआ था। मां दहाड़े मार कर रो रही थी कि बाबू फ़ोन पर बोला था कि मां तुम चिंता न करो इसबार छुट्टी में आऊंगा तो तुम्हरी आंखे बनवा दूंगा , अब तो मेरी आँखें ही चली गई।

योगेश की तो गृहस्ती भी अभी ठीक से जमी नहीं थी 5 साल की एक बिटिया थी। उसकी बीवी का रोना सबको रुला दे रहा था। बेचारी पहाड़ जैसी ज़िन्दगी किसके सहारे काटेगी? अभी तो इसने जिंदगी की शुरुआत ही देखी थी, अब आगे क्या होगा? इसकी मासूम बेटी का क्या होगा? तमाम तरह की बाते लोग फुसफुसा रहे थे। उस मासूम लड़की को समझ भी नहीं आ रहा था कि सब रो क्यों रहे हैं? वो अपनी नन्ही हाथों से कभी दादी के आंसू पोछती तो कभी मम्मी के। कोई पत्थरदिल भी रहा हो तो क्या उस गुड़िया के रुआंवसे चेहरे को देखकर सब रो रहे थे।

अगले दिन सेना के लोग बड़े सम्मान के साथ शहीद हवलदार योगेश सिंह के पार्थव शरीर ,शरीर क्या बल्कि उसके कुछ टुकड़े जो मुश्किल से मिल पाये थे को लेकर आये। कई गांव के लोगों ने मिलकर उस शहीद की शवयात्रा निकाली और अंततः अंतिम संस्कार किया गया।
चुकी पूरा शरीर तो आया नहीं था इसलिए मांस के उस लोथड़े को ही सबने बेटा मानकर आंसू बहाए थे लेकिन मासूम दिव्या अभी भी नहीं जान पाई थी कि ते सब हो क्या रहा है।

हवलदार योगेश सिंह अपने रेजिमेंट और गांव के लिए गर्व थे। कश्मीर में एक आतंकवादी मुठभेड़ में अदम्य साहस और सूझबूझ के दम पर 2 आतंकवादियों को मार गिराया था और एक के पैर में गोली मारकर जिंदा पकड़ा था। तबसे गांव में इनकी कहानियां सुनाई जाती थी। सरकार ने भी सम्मानित किया था। आज उस महावीर की तेरहवीं थी। इतने दिनों में दिव्या ने कई लोगों से पूछा था कि क्या हुआ है? पापा की फोटो यहां क्यों लगी है? तब किसी ने बताया था कि पापा भगवान के पास गए हैं , कुछ दिन में आ जाएंगे। दिव्या अपने दादा से जिद करने लगी कि फ़ोन लगाओ और पापा से बात कराओ। ये दृश्य सबको रुला गया। किसी तरह उसको समझाया गया कि भगवान के पास फ़ोन में नेटवर्क नहीं आता।

तेरहवीं की पूजा में पंडित जी को दान देने के लिए चारपाई, कुर्सी, गद्दे ,बर्तन,लालटेन जैसे सब सामान जुटाए जा रहे थे। दिव्या ने किसी से पूछा कि ये सब क्यूँ दिया जा रहा है। फिर उस व्यक्ति ने समझाया की यहां जो भी दान किया जाएगा वो सब आपके पापा को मिलेगा। इतना सुनना था कि दिव्या किसी सोच में पड़ गई फिर घर मे गई और कुछ देर बाद कागज के एक टुकड़े के साथ लौटी और उसको भी उन्हीं सामन में रख दी।

क्रिया कर्म की सारी जरूरतें पूरी हुई। पंडित जी अपने हिस्से आये सारे सामान को घर ले गए। अब धीरे-धीरे रिश्तेदार भी जाने लगे। इस परिवार में कमाने वाला केवल योगेश ही था सो अब आर्थिक दिक्कते भी महसूस हो रही थी।

उधर जब पंडित जी के घर पंडिताइन सामान ठीक कर रहीं थी तब उनको कागज़ मिला जिसको उन्होंने पंडित जी को ये कहते हुते दिया- देखिए तो ये कोई काम का तो नहीं।
पंडित जी ने जब उसको देखा तो चौंक गए। पेंसिल से किसी बच्चे ने अपने कच्चे हैंडराइटिंग में कुछ लिखा था , उन्होंने पढ़ना शुरू किया-

पापा ,
सब कहते हैं कि भगवान से पास नेटवर्क नहीं है इसलिए चिट्ठी लिख रही हूँ। हम लोग यहां उतने खुश नहीं हैं क्योंकि आपकी बहुत याद आती है। मम्मी से जब-जब पूछती हूँ कि पापा कब आएंगे तब-तब वो रोने लगती है। इसलिए अब मैं नहीं पूछती। क्योंकि आपने हमसे प्रॉमिस लिया था कि मम्मी को ज्यादा परेशान नहीं करना।
हमको तो अपना प्रॉमिस याद है लेकिन आप अपना प्रॉमिस भूल गए। आप बोले थे जल्दी आएंगे। आप कब आएंगे पापा। सब बोल रहे थे कि आप भारत माता की गोदी में चले गए हमको भी आपकी गोदी में खेलने का बहुत मन हो रहा है। अब आ जाइये पापा। खुशबू के पापा उसको मोटरसाइकिल पर बिठा कर बाजार ले जाते हैं , हमको कोई नहीं ले जाता। आप आइयेगा तो हमको भी मोटरसाइकिल से बाजार ले जायेगा न पापा? हम किसी से लड़ाई भी नहीं करते हैं, बिट्टू को तो इसलिए मारे की वो बोल रहा था कि आप मर गए हैं, अब आप कभी नहीं आएंगे। आप नहीं मरे हैं न पापा? अपने स्वीटी के पास आएंगे न पापा? हमको नया कपड़ा नहीं चाहिए, बड़ा चॉक्लेट नहीं चाहिए और साईकल भी नहीं चाहिए बस पापा चाहिए। हमाई याद आये तो आप रोना मत, मम्मी तो खाली रोती है। इस बार रक्षाबंधन में तो नहीं आये लेकिन अगर दिवाली में नहीं आये तो हम आपसे बात भी नहीं करेंगे। पंडित जी जब आपको सारा सामान देंगे तब ये चिट्ठी भी आपको मिल जाएगी। अगर फ़ोन न लगे तो आप भी चिट्ठी लिख दीजिएगा। अब हम पढ़ लेते हैं।

पंडित जी ने एक सांस में चिट्ठी पढ़ डाली लेकिन इस बीच वो कई बार रोए। रोते रहे और पढ़ते रहे और फिर खूब रोये। पंडिताइन सोच-सोच घबराती रही कि रो क्यों रहे हैं। पूछना भी चाही लेकिन पंडित जी ने चुप हो जाने का इशारा कर दिया और चिट्ठी उनको पकड़ा गमछे में आंसू पोंछने लगे। पंडिताइन भी पढ़ती गई और रोती गई।

अगले दिन सुबह-सुबह पंडित जी तैयार होकर निकले , पंडिताइन ने पूछा तो आ रहा हूँ कह कर बाजार की तरफ़ निकले। वहां से एक साईकल, बड़ी चॉकलेट और दो जोड़ी कपड़ा लिए रमेसर के घर पहुंचे। वहाँ जाकर रमेसर को सब बताया और दिव्या को बुलवाकर सब सामन दिया। दिव्या को पंडित जी ने बताया कि ये पापा ने भेजे हैं और उन्होंने कहा है कि वो दिवाली में जरूर आएंगे। इतना बोलकर फटाक से पलटे और गमछे में छुप कर रोने लगे। वहां मौजूद सब लोगों की आंखें गीली हो गई थी।पंडित जी दिव्या के सर को सहलाते हुए पूछे- "अच्छा ये बताओ आप बड़े होकर क्या बनियेगा ? " बेटी ने तपाक से जवाब दिया पापा की तरह सेना में जाउंगी . दिव्या इनसब चीजो से खुश नहीं थी उसने पंडित जी से पूछा- क्या पापा ने मेरे लिए कोई चिट्ठी नहीं दी।? ये प्रश्न और सबका कलेजा पानी और आंखें समंदर हो गईं। दिव्या की मम्मी उसको अंदर ले गई। वो बार-बार मम्मी से पूछ रही थी- "क्या पाप दिवाली में आएंगे?"

किसमे इतनी हिम्मत थी जो उस मासूम को बता पाता कि अब पापा किसी भी दिवाली में नहीं आएंगे। वो सच में भारत माता की गोदी में सो गए हैं।

- लव कांत सिंह 'लव'