ज्योंज्यों ही जन्मी बिटिया घर में,
सन्नाटा सा हो गया नगर में,
मातम का एक तूफान उठा,
और जा बरसा उस माता पर,
क्यूं जन्मी थी उसने कन्या,
इस बात की उसको सजा मिली।।
वो कलि सी कोमल नाजुक थी,
चेहरे में एक आकर्षण था,
वो एक चुम्बक का टुकड़ा थी,
और माता थी एक लौह अयस्क,
वो कहीं हटाती नजरो को ,
जा टिकती कली पर जाकर के ।
जैसे जैसे दिन रात ढले ,
वैसे वैसे कली बढ़ी हुई ,
सब पुरुष वही सब लोग वही,
केवल अब नजरे बदल गईं ,
वो सड़क चले तो भी मुश्किल,
कॉलेज को चले तो भी मुश्किल,
बाजार का जाना बंद हुआ,
नजरों का पहरा शुरू।।
देवी दुर्गा की पूजा करो ,
और नारी का तिरस्कार करो ,
नही कोई पूजा सफल होगी ,
चाहे यज्ञ हवन अश्वमेघ करो।