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दोहे- दर्शन

21 January 2023

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आज कुछ नया लिखने का मन हुआ तो सोचा कुछ कम शब्दों में अपनी बात कही जाए और फिर मुझे दोहे याद आये.. बातें सब पुरानी ही हैं पर उन्हें नए कलेवर में ढालने का प्रयास किया है...

सीधी सादी बात को, क्यों देते हो तूल,

अहं छोड़ के मान लो, हुयी जो कोई भूल,

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तुझमें है इच्छा शक्ति, फिर क्यों तू कुछ मांग,

छूना है आकाश को, तो पहले मार छलांग,

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सब कुछ अपना वार के, दे देती है जाँ,

जिस स्त्री में है ये गुण, वो कहलाये माँ,

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जितनी सेवा हो सके, उससे ज्यादा कर,

ये रत्न अमूल्य हैं, बुजुर्गों से है घर,

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वो बैठा किनारे पर, लेकर बस इक चाह,

आँखों में दिखती है, दो रोटी की आह,

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मंदिर बने मस्जिद बने, आज भी है ये शोर,

सीख ना ली परिंदों से, जो बैठते दोनों ओर,

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निकल पड़ा सवेरे ही, हो कर थकने चूर,

बच्चे खुश हो जायेंगे, जब लौटेगा मजदूर,

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भूखे को रोटी नहीं, महंगाई की मार,

कब तक सोती रहेगी, दिल्ली की सरकार,

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सब कुछ तो है बिक चुका, सिर्फ बची है जान,

अन्न कहाँ से पैदा करे, ऋण से दबा किसान,

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