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< देवीभागवतपुराणम्‎ – स्कन्धः ०४ अध्याय द्वितीय-(२) कर्मणो जन्मादिकारणत्वनिरूपणम्। अनेक प्राचीन ग्रन्थों में कृष्ण के पिता वसुदेव के जीवन के उन दृश्यों का अंकन किया गया है जब वे एक गोपालक का जीवन व्यतीत करते हुए अपना जीवन जी रहे थे । कर्म का सृष्टि के उत्पादन में योगदान विषय का निरूपण करते हुए ऋषि देवताओं और ब्रह्मा विष्णु और महेश को भी कर्म के अधीन मानते हैं । देवीभागवत पुराण "हरिवंशपुराण" मार्कण्डेय पुराण स्कन्द पुराण "और गर्गसंहिता" आदि ग्रन्थ वसुदेव के गोप जीवन के साक्ष्य हैं । प्रस्तुत हैं देवी भागवत पुराण से कुछ सन्दर्भ- ★ सूत उवाच★ एवं पृष्टः पुराणज्ञो व्यासः सत्यवतीसुतः । परीक्षितसुतं शान्तं ततो वै जनमेजयम् ॥१॥ सूत जी बोले – हे मुनियों पुराणवेत्ता वाणीविशारद सत्यवतीपुत्र महर्षि व्यास ने शान्त स्वभाव वाले परीक्षित्- पुत्र जनमेजय से उनके सन्देहों को दूर करने वाले वचन बोले ।।१=१/२।। उवाच संशयच्छेत्तृ वाक्यं वाक्यविशारदः । व्यास उवाच ! राजन् किमेतद्वक्तव्यं कर्मणां गहना गतिः ॥२॥ दुर्ज्ञेया किल देवानां मानवानां च का कथा। यदा समुत्थितं चैतद्ब्रह्माण्डं त्रिगुणात्मकम् ॥३॥ कर्मणैव समुत्पत्तिः सर्वेषां नात्र संशयः । अनादिनिधना जीवाः कर्मबीजसमुद्‌भवाः ॥ ४॥ नानायोनिषु जायन्ते म्रियन्ते च पुनः पुनः । कर्मणा रहितो देहसंयोगो न कदाचन ॥ ५ ॥ व्यास जी बोले- हे राजन इस विषय में क्या कहा जाय ! कर्मों की बड़ी गहन गति होती है। कर्मों की गति जानने में देवता भी समर्थ नहीं हैं । तो मानवों की तो बात ही क्या! जब इस त्रि गुणात्मक ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ उसी समय से कर्म के द्वारा सभी की उत्पत्ति होती चली आ रही है ।। विशेष-★ ( एक बार सबको एक समान स्थिति बिन्दु से गुजरना होता है - इस के पश्चात जो अपनी स्वाभिकता रूपी प्रवृत्तियों

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