शीतकालीन सत्र मे पढने का मजा भी कुछ ओर है।आज सुबह की गुलाबी ठंड जैसे मन को ज्यादा पुलकित करते है।कॉलेज के पहले दिन से प्रभावित हिर ओर हर्ष का आज एक साथ जन्म दिन भी है।आज एक दिन के लिए जैसे हिर ने हर्ष के दिल पर दस्तक दे दिया है।सभी सहैलियो का ईशारा भी कुछ इस बात को ही सहमति देता है। कालेज की गेलरी के पास खड़ा हर्ष कहा जानता है कि जन्नत मेरे साथ ही है। हिर हाथ मे चॉकलेट का बॉक्स लेकर आई।कहती है-
हिर:जन्म दिन की बधाई हो।
हर्ष:सेम टु यु,,,,,,।
हिर:कहा घूमने जाओगे फेमिलि के साथ?
हर्ष:फेमिलि; मै ओर मेरी माँ दोनो ही है
हिर:पापा?
हर्ष:नही है,,,,,,,,,,,कितने साल हो गए,,,,,,,,,,।
हिर:पढाई का खर्च?
हर्ष:माँ शब्द निकलते आख से आसू बहने लगे।
हिर:एसी दैवी को मै वंदन करती हु।
हर्ष मुझे प्रोमिस करो कि आप एकबार मुझे उनसे मिलाओगे।
हर्ष:जरूर।
(आज के बाद धनवान हिर का हर्ष दिवाना बन गए है)
हर्ष मजबूरी और मुसीबत दोनो को जानता है।
थोडे दिन के बाद हिर ने जिद किया हर्ष अपना आईना जानता है,
कितनी बार समझाने का प्रयास विफल हुआ।अंत मे हिर और हर्ष दोनो घर जाते है।
अर्ध शुष्क चमड़ी की पवित्र प्रतिमा हिर देखकर चकित हो जाती है।
हिर की आख से आज पहलि बार अश्रु धारा प्रवाह बहता है।
हिर:हर्ष इतनी गरीबी?
हर्ष मै तुजे क्या कहु?