दो साल बीत गए उस बात को, जब धीरे-धीरे ज़िंदगी समझ आने लगी थी, और तब से लेकर अब तक, इन दो सालों में ज़िंदगी ही नहीं मौत को भी जिया है, तजुर्बा जिंदगी जीने का भी है, और जीते जी मरने का भी, अच्छा था या बुरा मालूम नहीं, क्या खोया क्या पाया पता नहीं, लेकिन इन दो सालों में हर उस हालात को महसूस किया जो हुआ वो भी और जो न हुआ वो भी, और इसी हालात को महसूस करते-करते, मैं जज़्बात की ताक़त से वाकिफ हो गया, हुस्न, जिस्म, गुमान, मकान, दौलत, शौहरत, दुश्मनी और इस दुनिया में लगी तमाम तरह की आग तो बुझ जाती है, लेकिन अगर कोई आग सीने में एक बार धधकने लगे, तो वो सिर्फ़ अपनी चिंगारी से ही जज़्बात को धुआं कर देती है, और एक बार जब जज़्बात धुआं हो जाए तो.... फ़िर तो मैं खु़द भी कौन और क्या ये दुनिया, इस ज़िंदगी में कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिला कोई ज़मीं के लिए रोया तो किसी को आसमां नहीं मिला, कभी श्री कृष्ण को राधा नहीं मिली, तो कहीं किसी को श्याम नहीं मिला, अच्छा हो या बुरा, ज़िंदगी अगर मौका दे तो हर तरह के अनुभव से गुज़र जाना चाहिए, बुरा अनुभव तराज़ू से भी ज़्यादा सटीक तरीके से वक्त को तौलना सीखा देता है, और अच्छा अनुभव खुद को खुद का और बाकियों का भी एक अच्छा मार्गदर्शक बना देता है, छोटी ख्वाहिशें भी अगर वक्त पर पूरी हो जाएं तो उस दर्जे का सुकून दे जाती है, जो वक्त गुज़र जाने के बाद बड़ी से बड़ी चीज़ नहीं दे पाती, फ़िर तो, इंसान सारा जहां भी पा ले तो भी उसे कम ही लगता है, फिर तो भागना उसकी फितरत बन जाती है, और फ़िर तो रेस में सारे के सारे रिकॉर्ड तोड़कर अव्वल आने पर भी उसको वो शांति नहीं मिलती, वो अब भी सब कुछ जीतकर खुद को हारा हुआ ही महसूस करता है,
"दुनिया जिसे कहती जादू का खिलौना है जो मिल गया माटी और जो न मिला वो सोना है"
जज़्बात से उठती जुनून की ये आग खु़द-ब-खुद अक्सर सुख, चैन और सुकून सबका सौदा कर लेती है, और अब मैं जूनून के बोझ तले दब चुका हूं, हां ये सच है के मैं जुनून के हाथों बिक चुका हूं, खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया, शिद्दत से निभाया गया फ़र्ज़ भी अगर बदले में दर्द बनकर मिल जाए, तो ज़मीर और जज़्बात पर कामयाबी का क़र्ज़ अपने आप हावी हो जाता है, वफ़ा के बदले अगर जफा मिल जाए, तो कामयाबी दवा बन जाती है, वक्त सबकुछ देने की चाह में, बहुत कुछ छीन लेता है, जिसकी भरपाई नामुमकिन और मलाल ताउम्र रह जाता है। कहते हैं खुदा अगर किसी को हुस्न देता है तो नज़ाकत अपने आप आ जाती है, और अक्सर इस नज़ाकत के मद में चूर इंसान सबकुछ भूलकर अपनों से ही बगावत करने से भी गुरेज़ नहीं करता, ये शायरी, ज़िंदगी की डायरी, ये मलाल, ये ख़्याल, ये लिखावट, ये हिफाज़त, ये शराफ़त, ये शरारत, ये शिकायत, और कुछ नहीं बस उन्हीं कुरेदे हुए जज़्बात की जुबां हैं।