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सैलानियों का स्वर्ग काश्मीर

27 February 2023

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यात्रा संस्मरण

सैलानियों का स्वर्ग काश्मीर

लेखक: हरिहर आजाद

काश्मीर, पर्यटन की दृष्टि से विश्व का अत्यधिक आकर्षक स्थान है। यह शताब्दियों से सैलानियों का स्वर्ग बना हुआ है। प्राकृतिक सौन्दर्य जो काश्मीर घाटी में विखरा पड़ा है वह शायद कहीं और नहीं है। काश्मीर की पर्वत श्रेणियाँ इसके अनमोल बन रंग-बिरंगी पुष्प वाटिकायें स्वच्छ झील और झरने ये सहज ही सैलानियों का मन मोह लेते हैं।

काश्मीर हिमालय की अंचल में करीब 378 वर्ग कि०मी० की समतल घाटी में बसी हुई एक सुन्दर विश्रामस्थली है; जिसे प्रकृति ने स्वयं सँवारा है। घाटी में अनेक ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जहाँ आप मैदानों की गर्मी भूलकर नैसर्गिक वातावरण में खो जाएंगें। काश्मीर की राजधानी श्रीनगर है। श्रीनगर जाने के लिए पठानकोट जाना पड़ता है। पठानकोट उत्तर रेलवे का अन्तिम रेलवे स्टेशन है; जहाँ बम्बई, कलकत्ता, मद्रास तथा देलही से सीधी रेल गाड़ियां पहुँचती हैं। पठानकोट से श्रीनगर 400.7 कि0मी0 दूर है। इस दूरी को आप बस या टैक्सी से तय कर सकते हैं। इस दूरी को तय करने में बस को 15 घंटे लगते हैं। मार्ग में स्थित कुड़ बटोट, रामबान और बनिहाल आदि स्वास्थ्य बर्द्धक स्थान हैं। बनिहाल दर्रे को पार करते ही काश्मीर की सुरम्य घाटी प्रारम्भ हो जाती है।

बनिहाल पर्वत के बीचों-बीच करोड़ो रुपये की लागत से भारतीय एवं जर्मन इंजीनियरों के सहयोग से तैयार की गई एशिया की सबसे बड़ी स्थलीय सुरंग है। जो जवाहर सुरंग के नाम से विख्यात है। इस सुरंग से होकर बस या टैक्सी से श्रीनगर पहुँचा जाता है। इस ढ़ाई मील लम्बी सुरंग के बन जाने से जम्मू और काश्मीर के दरम्यान, फासले में करीब 30 कि०मी० की कमी हो गई है, और इसके चलते प्रत्येक मौसम के काश्मीर जाया जा सकता है।

काश्मीर घाटी में उतरते ही मौसम बिल्कुल बदल जाता है हल्की और सर्द हवायें हृदय को ज्योंही स्पर्श करती हैं मन खुशी के सैलाब से भर उठता है। हिमालय की ऊँची और चाँदी सी बर्फीली चोटियों के बीच बसी काश्मीर घाटी भारत के अन्य पर्वतीय स्थानों से प्रायः बिल्कुल अलग-थलग है, 5200 फीट की ऊँचाई पर स्थित श्रीनगर अन्य पर्वतीय स्थलों के सदृश्य ऊँची-नीची पहाड़ियों पर नहीं बल्कि, एक समतल घाटी में बसी हुई है। झेलम नदी के किनारे बसा हुआ, श्रीनगर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य स्वास्थ्य बर्द्धक जलवायु तथा मीठे सेव के लिए संसार प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण काश्मीर घाटी में पर्यटक बिना रोक-टोक एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं। श्रीनगर के सौन्दर्य में अगर किसी ने चार चांद लगाया है तो उसमें डल लेक का स्थान सर्वप्रथम आता है। यह 8 कि०मी० लम्बा और 4 कि०मी० चौड़ा है। नीले और स्वच्छ पानी के इस झील में सैकड़ों "हाउस बोट" एवं शिकारे मिलेंगें ।

भारत एवं विश्व के कोने-कोने से आये हुये पर्यटक इन "हाउस बोटो" में ठहरते हैं तथा शिकारों में सैर करते है। "हाउस बोट" अनेक श्रेणियों में बटे रहते हैं। श्रेणी के अनुसार ही इसमें ठहरने के किराये लगते हैं। तृतीय श्रेणी के हाउस बोट का प्रति दिन का किराया 10 रूपये से लेकर 25 रूपये तक है। काश्मीर आनेवाले प्रत्येक पर्यटक "हाउस बोट' में भले ही न ठहरता हो लेकिन शिकारों में बैठकर कम-से-कम एक बार डल झील का आनन्द तो जरूर लेता है। डल झील के "शिकारे" में बैठकर चश्माशाहों, नेहरू पार्क, निशात और शालीमार बाग का अवलोकन किया जा सकता है। अधिकांश "हाउस बोटो" के नाम अंग्रेजी ढ़ंग पर रखे गये हैं। जैसे गुड फेथ", "स्टार ऑफ काश्मीर" "वाटर डक" "वोस्टन' आदि इसी तरह शिकारों के नाम भी हैं जैसे “विगसन-साइन”‘न्यूगोल्डन हिन्द" आदि। डल झील के सदृश्य काश्मीर घाटी में अनेक झील हैं जैसे मानसबल, बूलर, तारसर, मनसर, गंगदल आदि। किन्तु बूलर झील भारत का ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी झील है। जिसका प्राचीन नाम महापद्मसर है।

मुगल बादशाहों द्वारा निर्मित चश्मा शाही शालीमार और निशात बाग काश्मीर घाटी के सबसे खूबसूरत बागों में से है। जिन्हें देखते ही दिल मचल उठता है प्रत्येक रविवार को इन बागों की रौनक में चार चाँद तब लग जाते हैं जब इनके फव्वारे छूटते हैं। श्रीनगर से 8 कि०मी० की दूरी पर स्थित चश्मा शाही मीठे जल का एक सुन्दर चश्मा है; जिसका पानी पीकर आप पत्थर भी पचा सकते हैं। चश्मा शाही का निर्माण 1632 ई० में मुगल गर्वनर अली मर्दन खां द्वारा हुआ था। चश्मा शाही के बाद जो सबसे हसीन बाग है, उसका नाम है निशांत बाग, जिसको मलकाये नूर जहां के भाई आसफरवां ने बनवाया था। इस बाग की विशेषता यह है कि वह नीचे-उपर पहाड़ों के ढलाव पर एक पंक्ति में बनाया गया है। मुगल बादशाह जहाँगीर ने जब पहली बार इसे देखा, तो वह देखते ही झूम उठा और उसके होठ फड़फडा उठे "यह मेरे शालीमार से भी बेहतरीन है।

श्रीनगर शहर से 16 कि0मी0 दूर 'डल लेक के बिल्कुल समीप शालीमार गार्डेन मुगल बादशाह जहाँगीर द्वारा निर्मित अत्यन्त ही सुन्दर बाग है, इसकी बनावट शालीमार तथा चश्मा शाही से भिन्न है इसमें अनेकों प्रकार के सुगन्धित पुष्प और फल हैं, जिनको देखने-चखने पर हृदय खुशी से भर उठता है। शालीमार से 5 कि०मी० आगे बढ़ने पर हार्बन है। हार्बन में कृत्रिम झील है जिससे सम्पूर्ण श्रीनगर को पानी दिया जाता है।

श्रीनगर जिस प्रकार झीलों और बागों का देश है उसी प्रकार मंदिरों और मस्जिदों का भी देश है। यहां का शंकराचार्य मंदिर जो नगर से 1000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, देखने लायक है मंदिर से सम्पूर्ण श्रीनगर तथा काश्मीर घाटी को देखा जा सकता है। इस शिवमंदिर को मुसलमान लोग तख्ते सुलेमान कहते हैं। श्रीनगर की प्रसिद्ध मस्जिदों में जामा मस्जिद, दस्तगीर, शाहीमस्जिद हजरतबल प्रसिद्ध है। श्रीनगर की सबसे विशाल जामा मस्जिद है जिसमें ईद के अवसर पर करीब एक लाख लोग एक साथ नमाज पढ़ते हैं। जामा मस्जिद के बाद हजरतबल का प्रमुख स्थान है। यह मुसलमानों का पवित्र जयारत का स्थान है। यहां प्रत्येक शुक्रवार को काश्मीर घाटी के कोने-कोने से मुसलमान लोग नमाज पढ़ने के लिये आते हैं, यहीं पैगम्बर मुहम्मद साहब का बाल रखा गया है, जिसका दर्शन खास-खास उत्सवों पर कराया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व जब बाल की चोरी हुई थी तबसे यहां सुरक्षा की अच्छी व्यवस्था है।

शहर की भीड़-भाड़ से यदि आप कुछ समय के लिये बचकर आराम करना चाहते हैं तो नेहरू, प्रताप और गांधी पार्क में चले जाइये। मुगल बादशाहों के बागों की तरह ये भी आरामदेह हैं । सिल्क की काश्मीर के इंडस्ट्रीज एण्ड आर्ट सेन्टर अधिकाशंतः 'ओल्ड सीटी" में स्थित हैं, जहां कश्मीरी शाल, साड़ी, कारपेट तथा अन्य लकड़ी के सामान फैक्टरी रेट पर मिलते हैं। काश्मीर अपनी हस्त-कला उद्योग में भारत के किसी अन्य राज्य से पीछे नहीं है।

श्रीनगर काश्मीर घाटी के बीच में स्थित सैलानियों का प्रमुख विश्राम स्थल है। यहाँ से पर्यटक सुदूर घाटी के किसी भी हिस्से में आसानी से आ-जा सकते हैं। प्रत्येक भागों में जाने के लिये बसों की प्रर्याप्त सुविधा प्राप्त है। श्रीनगर चूंकि राज्य की राजधानी है, जिसके चलते यहां काफी चहल-पहल रहती है। यदि आप शहर के भीड़-भाड़ से अलग हटकर कुछ समय के लिये प्रकृति की आँचल में विश्राम करना चाहते हैं, तो यहां के प्रमुख पर्वतीय स्थल पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग, यूसमर्ग आदि स्थानों में जाकर कुछ दिन व्यतीत कर सकते हैं।

आइये सबसे पहले आपको पहलगाम ले चलें

पहलगाम - हिमालय की ऊँची और चांदी सी बर्फीली चोटियों चीर और चीनार के सघन वनों के बीच लीदर और तानिन नदियों के संगम पर बसे विश्व की सबसे खूबसूरत एवं स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान है। यह श्रीनगर से 96 कि०मी० की दूरी पर बसी हुई हिन्दुस्तान की जन्नत है। पहलगाम के रास्ते में श्रीनगर से 14 कि0मी0 दूरी पर पामपुर नामक स्थान मिलता है जहाँ केसर की खेती होती है। सारे संसार में केसर की खेती के लिये बहुत कम जमीन है यह भारत का सौभग्य है कि उसकी खेती काश्मीर में होती है। मैं जून 1972 में काश्मीर गया था। जून के महीने में केसर के खेतों को तो देखा किन्तु केसर का फूल नहीं देख पाया। केसर के फूल और पौधों का समय सितम्बर-अक्टूबर का महिना होता है। पामपुर के बाद अवन्तीपुर आता है। जहां अनन्त स्वामी का एक मंदिर है इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ था । अवन्तीपुर के बाद अनन्तनाग आता है, जो इस्लामाबाद के नाम से भी जाना जाता है। अनन्त नाग में गन्धक का चश्मा है, जिसमें नहाने से फोड़े-फुन्सी तथा अनेक प्रकार के कुष्ट रोग जड़-मूल से खत्म हो जाते हैं। अनन्त नाग से 25 कि०मी० दूर कोकरनाग है कोकरनाग में भी चश्मा है जिसका शीतल और स्वच्छ जल लोग उसी प्रकार पीते हैं जैसे चश्मा शाही का, ज्योंही कोकरनाग से टूरिस्ट बस आगे बढ़ती है, कुछ दूरी तय करने के बाद अचवल में रूकती है। अचवल में श्रीनगर के मुगलवाग निशात की तरह एक गार्डन है जिसका निर्माण शाहजहां की बेटी ने 1640 ई0 में करवाया था। पहलगाम के रास्ते में में अचवल से कुछ दूर आगे जाने पर मटन नामक स्थान मिलता है जिसका प्राचीन नाम मातण्ड है। मटन को सिख लोग मटन साहेब कहते हैं। यहां प्रत्येक ढ़ाई वर्ष पर कुम्भ लगता है, जहां भारत के कोने-कोने से हिन्दू तीर्थ यात्री आते हैं। मटन के बाद पहलगाम की पवित्र भूमि का दर्शन होता है । लीदर नदी के किनारे बसी हुई यह घाटी प्रत्येक पर्यटक का मन मोह लेती है। पहलगाम की घाटी में जो प्राकृतिक सौन्दर्य है जो शान्ति है वह शायद इस भूभाग पर अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। जब हम चीर और चीनार के घने वृक्षों के बीच खड़े होकर शून्य आकाश की ओर देखते है तब हमें यह महसूस होता है; हम प्रकृति की अनन्तता से घीरे हुए हैं। मानव का क्षुद्र रुप प्रकृति के सौन्दर्य के समक्ष बिल्कुल फीका पड़ जाता है।

पहलगाम में यात्रियों को ठहरने के लिये टूरिस्ट कॉटेज तथा यूरोपीयन एवं इंडियन स्टाइल होटल हैं। आप जहाँ चाहे ठहर सकते हैं। प्लाजा और रीगल प्रसिद्ध होटल हैं। इस प्रिय घाटी में आप जहाँ चाहें वहाँ स्वच्छन्द रुप से भ्रमण कर सकते हैं। यदि आप गोल्फ या बैटमिंटन के शौकिन हैं तो आपको पहलगाम-कल्ब से सम्र्पक स्थापित करना पड़ेगा। मछलियों का शिकार खेलना चाहते हो तो लीदर नदी में जाल फेंक सकते हैं। हौर्स राइडिंग का शौक हो तो आपको किराये पर वहाँ घोड़े मिल जायेगें। आप घोड़े पर सवार होकर वसुरन जा सकते हैं जो स्थानीय खेल का मैदान तथा चारागाह है। पहलगाम को केन्द्र बनाकर यात्री अमरनाथ जाते हैं किन्तु जून के महीने में भी अमरनाथ के मार्ग में बर्फ मिलता है इसलिये हम अमरनाथ नहीं जा सके। जून में टूरिस्ट केवल चन्दनबाड़ी तक ही जा सकते हैं, चन्दनबाड़ी पहलगाम से केवल 13 कि0मी0 दूर है।

हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू अपने जीवनकाल में जब कभी दिल्ली की उमस भरी जिन्दगी से घुटन महसूस करते थे अपनी प्रिय घाटी में आकर विश्राम करते थे। प्रधानमंत्री जी की यह घाटी आज भारतीयों के लिये किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। मुझे यहाँ पहाड़ के एक भूखण्ड पर स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
के विचार अंकित मिले।

"हमें यह समझने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिये कि भारत क्या है और किस प्रकार इस राष्ट्र ने अपने मिश्रित व्यक्तित्व का विकास किया है जो कि बहुमुखी होते हुए भी स्थायी एकता से युक्त है। समाज का कोई भी वर्ग भारत के मस्तिष्क और उसकी विचार धारा पर एकाधिपत्य का दावा नहीं कर सकता, प्रत्येक वर्ग ने इस देश को बनाने में योग दिया है यदि हम इस आधारभूत तथ्य को नहीं समझते हैं तो हम भारत को रंचमात्र भी नहीं समझ सकते।"        - जवाहरलाल नेहरू

गुलमर्ग

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काश्मीर घाटी में पहलगाम के बाद जो सबसे सुन्दर पर्वतीय स्थल है, उसे गुलमर्ग के नाम से जाना जाता है। मर्ग
कश्मीरी भाषा में चारागाह को कहा जाता है। गुलमर्ग 9000 फीट की ऊँचाई पर बसा हुआ कभी अंग्रेजों का बहिश्त था, आज भारतीयों के लिये जन्नत से कम नहीं हैं। गुलमर्ग करीब श्रीनगर से 45 कि०मी० दूर गुलमर्ग जाने के लिये हमें टनमर्ग तक बस से जाना पड़ा। टनमर्ग से गुलमर्ग हमें पैदल चलना पड़ा। वैसे घोड़े से भी इस दूरी को तय किया
जा सकता है किन्तु जो मजा पैदल में आता है घोड़े पर नहीं। जिन्हें पहाड़ों पर चढ़ने का शौक हो, उन्हें तो अवश्य पैदल जाना चाहिये, क्योंकि टनमर्ग से गुलमर्ग तक चढ़ाई है। रास्ते में देवदार चीर के सघन विशाल पेड़ मिलते हैं जिनके बीच हम बिल्कुल खो जाते हैं, 6 कि०मी० की इस दूरी को पार करते हुए ऐसा लगता है जैसे हम ऐवरेस्ट की चोटी पर चढ़ रहे हों। जैसे ही हम गुलमर्ग में प्रवेश करते हैं हमें चारों तरफ से सर्द हवायें जकड़ लेती हैं। चारों तरफ हमें बर्फ ही बर्फ दिखती है। पर्यटकों को ठहरने के लिये यहाँ गर्वमेन्ट रेस्ट हाउस है तथा भारतीय एवं यूरोपियन ढ़ंग के होटल हैं। गुलमर्ग खेलों के लिये एक असाधारण स्थान है जून और सितम्बर के महीने में गोल्फ टूर्नामेंट चलता रहता है। दिसम्बर और जनवरी के महीने में "आइस स्केटिंग" और "आइस स्कीइंग" खेल खेला जाता है। पोलो खेलने के लिये यहाँ भारत के कोने-कोने से खिलाड़ी आते है यदि आप "स्लेज गाड़ी" से बर्फ पर फिसलने का मजा लेना चाहते हो तो अफराबट चले जाइये। बड़ा मजा आता है, फिसलने में, 9000 फीट की ऊँचाई पर स्थित आउटर सरकुलर रोड पर संध्या समय टहलने में काफी आनन्द आता है।

गुलमर्ग से मन जब उब जाये तो आप  बाबा ऋषि चले जायें। यह गुलमर्ग से करीब 5 कि०मी० दूर है इस दूरी को आप टट्टू से या पैदल जाकर भी तय कर सकते हैं। मुसलमानों का यह पवित्र तीर्थ स्थान है, यहाँ प्रत्येक धर्म के लोग आते हैं और अपनी मुराद पूरी करने के लिए फल-फूल चढ़ाते हैं। इसकी शोहरत अमरनाथ से कम नहीं है।

गुलमर्ग से खिलन मर्ग 6 कि0मी0 दूर है, खिलनमर्ग 13000 फीट की ऊँचाई पर स्थित एक सुन्दर चारागाह है। यदि आकाश स्वच्छ हो तो खिलनमर्ग से नंगा पर्वत की चाँद सी बर्फीली चोटियों को आसानी से देखा जा सकता है। खिलनमर्ग से उपर अफराबट और अफराबट से उपर अलपत्थर की चोटियां हैं जहाँगर्मी के मौसन में भी बर्फ पड़ती रहती है।

गुलमर्ग के पुनर्निमाण के लिए हमारी सरकार ने 10 करोड़ रूपये की वृहद् योजना को कुछ वर्ष पूर्व स्वीकार कर लिया था। इस संबंध में कहाँ तक प्रगती हुई है कुछ कहा नहीं जा सकता। हाँ! यदि इस मास्टर प्लान
को पूर्णतः लागू कर दिया जाये तो गुलमर्ग के रौनक में बहार आ जायेगी।

गुलमर्ग, खिलमर्ग और पहलगाम कश्मीर घाटी के कुछ मुख्य सौन्दर्य स्थल हैं तो सोनमर्ग और यूसमर्ग भी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य में कुछ कम नहीं हैं। 7870 फीट की ऊँचाई पर स्थित यूसमर्ग श्रीनगर से 50 कि0मी0 दूर है। यूसमर्ग के रास्ते में चारेशरीफ है, जो मुसलमानों का प्रसिद्ध "शेरीन' है, जहाँ दूर-दूर से मुसलमान लोग जियारत के लिये आते हैं इसे हिन्दू नन्द ऋषि कहते हैं। यूसमर्ग एक सुन्दर चारागाह है। यहाँ होटल आदि की व्यवस्था नहीं है, इसलिये यहाँ कोई ठहरता नहीं है जो टूरिस्ट यहाँ आते हैं 2-4 घंटे रूक कर वापस श्रीनगर चले जाते हैं। यूसमर्ग में टट्टूओं पर सवार होकर आप पूरा मैदान का चक्कर लगा सकते हैं, 6 कि0मी0 की दूरी पर स्थित नीलनागलेक है। यह लेक काफी छोटा है किन्तु काफी गहरा है। यूसमर्ग से 5 कि०मी० की दूरी पर स्थित एक झरना है जिसे यहाँ के लोग "दूध गंगा' के नाम से पुकारते हैं। यदि यूसमर्ग का विकास किया जाय होटल आदि की समुचित व्यवस्था की जाय तो पर्यटक यहाँ ठहरकर एक दो रोज यूसमर्ग के शान्त वातावरण का आनन्द ले सकते हैं।

आइये आपको अब सोनमर्ग ले चलें।

श्रीनगर से 86 कि0मी0 दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित सोनमर्ग 9000 फीट ऊँचाई पर बसी हुई एक सुन्दर पर्वतीय स्थल है, जिसका प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। सिन्ध घाटी से गुजरते हुए जब हम सोनमर्ग पहुँचते हैं तो हमें रास्ते में अनेक छोटे-छोटे ग्लेसियर मिलते हैं जिनको देखते ही हृदय खुशी से मचल उठता है। और हम प्रकृति से की विचित्रता में खो जाते हैं। सोनमर्ग का रास्ता काफी बीहड़ है। सोनमर्ग का रास्ता मध्य मई से खुलता है और फिर अक्टूबर के अन्त में जाकर बन्द हो जाता है। सोनमर्ग में टूरिस्ट कॉटेज तथा रेस्ट हाउस हैं किन्तु यहाँ काफी सर्दी पड़ती है इसलिये यहाँ
कोई ठहरना नहीं चाहता है। सोनमर्ग के आस-पास अनेक ग्लेशियर हैं लेकिन यहाँ का "थजवस ग्लेशियर' काफी प्रसिद्ध है यह सोनमर्ग 5 कि०मी० की दूरी पर स्थित है जाड़े के दिनों में यहाँ लोग स्केटिंग और स्कीइंग के सहारे उछलते-कुदते हैं। किन्तु जून के महीने में यहाँ केवल फिसलने का ही मजा लिया जा सकता है। किन्तु जो आनन्द स्लेज से फिसलने में खिलनमर्ग में मिलता है वह मजा थजबस में नहीं मिलता। सोनमर्ग से 25 कि0मी0 दूर
13,500 फीट की ऊँचाई पर स्थित अत्यन्त ही सुन्दर झील है, किन्तु दुर्भाग्य बस इन झीलों तक बसों की सुविधा उपलब्ध नहीं होने से पर्यटक इन झीलों तक नहीं जा पाते हैं। कारगील, लेह और लदाख के रास्ते सोनमर्ग से ही जाते हैं।

वास्तव में कश्मीर घाटी का
सौन्दर्य अपने आप में बेजोड़ हैं, बेमिशाल है। फारसी के एक कवि ने कश्मीर के बारे में
ठीक ही लिखा है -

अजशाहें जहांगीर हमें न जा चूँ जुस्त बन्द । वाख्वाहिशे दिले गुप्त की, कश्मीर दिगर है च ।।

अर्थात् – मरने के बाद स्वर्ग किसने देखा है लेकिन अपने जीवन काल में जिसने कश्मीर की स्वर्ग की झांकी देखी है, वह बार-बार कश्मीर जाना चाहेगा।

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