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ग़ज़ल : तुमको लगता है तुम्हारी ज़िंदगी पुर-नूर है

13 November 2024

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तुमको लगता है तुम्हारी ज़िंदगी पुर-नूर है

देखो तुम इक बार फिर से रौशनी कुछ दूर है


साथ में घर बार लेकर चल रही हैं औरतें

सोचते हो तुम ये केवल माँग में सिंदूर है


नौ नए लड़कों को अब तक खा गई नौ-नौ दफ़ा

ये तुम्हारे शहर में क़ातिल हवा या हूर है


सर पकड़ कर डिग्रियों को देखता है नौजवाँ

मुल्क में इस वक़्त बेकारी बहुत मशहूर है


ईंट के भट्टों पे अपना तोड़ता है तन-बदन

ये किसी का बाप है मज़दूर है मज़बूर है


इश्क़ में हो बेवफ़ाई बेहयाई बेकली

तुमको गर मंज़ूर है तो हमको भी मंज़ूर है 

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कुछ तो बाक़ी रह गया है
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"कुछ तो बाक़ी रह गया है" - यह शब्द हमें जीवन की अनंत संभावनाओं और अपूर्णताओं की याद दिलाते हैं। नकुल कुमार के इस रचना संग्रह में, हमें जीवन के विभिन्न रंगों और भावनाओं का अनुभव होगा। ग़ज़ल, नज़्म और शेर के माध्यम से, नकुल ने अपने अनुभवों, विचारों और सपनों को शब्दों में पिरोया है। इस संग्रह में, नकुल ने प्रेम, संघर्ष, आशा और निराशा की भावनाओं को व्यक्त किया है। उनकी रचनाएँ हमें जीवन की छोटी-छोटी बातों में भी गहराई और अर्थ ढूंढने की प्रेरणा देती हैं। नकुल की कविताई शैली सरल, स्पष्ट और भावपूर्ण है, जो पाठकों को अपनी भावनाओं के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करती है। "कुछ तो बाक़ी रह गया है" न केवल रचनाओं का संग्रह है, बल्कि यह जीवन के अनुभवों का संग्रह है, जो हमें आगे बढ़ने और नई उम्मीदें बनाने की प्रेरणा देता है। नकुल की रचनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन में कुछ तो बाक़ी है, जो हमें अभी अनुभव करना बाक़ी है, जो हमें अभी जीना बाक़ी है। इस पुस्तक के माध्यम से, नकुल ने अपनी कविताई की दुनिया में आपका स्वागत किया है। आइए, इस दुनिया में प्रवेश करें और जीवन की अनंत संभावनाओं का अनुभव करें।