कुछ घटना जीवन में ऐसी होती है। जो व्यक्ति को बताती है कि हमें अपने चरित्र का प्रमान किस से देना चाहिए। ये मेरे जीवन की एक सत्य घटना है, मेरे पिता श्री, एक छोटा सा रेस्त्रो चलते हैं, हमारे पिता जी का उस दिन कहीं बाहर जाना हुआ किसी कार्य हेतू, जिम्मेदारी मेरे पर आ गई थी ,
एक व्यक्ति रेस्ट्रो पर आया बोला हम कुछ रोटियां चाहिए हैं, मैं उससे कहा कब चाहिए!
वो व्यक्ति बोला आज शाम में बना दे 50 रोटी का ऑर्डर उसने हमें दिया।
वो व्यक्ति चला गया समय गुजरा| लेकिन पता नहीं कैसे मैं उससे लगवाना भूल गया, हम सब( रसोइया और मै) ,हम घर चले गए बंद करके, फिर मुझे याद आया मैं थोड़ा डर गया भी था, वह एक मस्जिद में ठहरे हुए थे,
मैं, रोटी बनने वाला मस्जिद में गए, मैं सलाम करके बैठ गये, मैं बोला साहब क्षमा चाहूंगा,
मेरी कारण से आपको कष्ट हुआ,
मुझे लगा था, वो बहुत गुस्सा होंगे |
लेकिन मैं उनका जवाब सुनकर मन मुग्ध गया ,
मैं शर्मिद था मैं बोला साहब आप चाहो तो मैं कुछ घर से बनवा दू !
उसने कहा नहीं दोस्त कोई बात नहीं हो गया खाना तो। गलती तो इंसान ही करता है आप बैठ जाओ सही से,
वो कुछ मिठाई लिया हुए थे ,अपने साथी से बोले
मेहमान के लिए भी लाओ, मैंने मना किया तो बोले नहीं दोस्त मना ना करे ये हमारे घर का बना है यहां नहीं मिलेगा
उस व्यक्ति को देख मैं हैरान था, वो बहुत कोमल हृदय का था उसकी बातो ने हृदय को छू लिया,
चलते वक्त बोला
दोस्त ऑर्डर लिखा लिया करो