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कभी किसी से प्रेम किया है ?

4 December 2022

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एक बार किसी ने मुझसे पूँछा !
कभी आपने किसी से प्रेम किया है ?
मैनें कहा नहीं !

उसने कहा कि एकदम झूठ बोल रहे हो आप !
मैने कहा क्यों ??
उसने कहा कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि किसी ने कभी किसी से प्रेम न किया हो !
मैने कहा कि अगर तुम प्रेम का विस्तृत अर्थ ले रही हो तो ऐसा मैने कितना किया है !

अपने माँ-बाप से,
अपने भाई-बहन से,
अपने दोस्त से-अपने शिक्षक से,
अपने आदर्श से,
अपने प्रथप्रदर्शक से,
अपने प्रशंसक से,
अपनी पत्नी और बच्चों से......!

लेकिन इसमें क्या खास बात है ?
जब प्रेम होता है तभी तो रिश्ते चलते हैं !
और रिश्ते होते हैं तो प्रेम भी होता है !

उसने कहा नहीं,
हमने उस प्रेम की बात नहीं की आपसे !
मैने कहा फिर ?

अच्छा एक बात बताइये कि कभी आपको किसी चेहरे को देखकर बार-बार देखने की जी नहीं किया ?
किसी को देखकर ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वो मेरे सामने रहे ?
उसके होने या न होने को नोटिस नहीं किया ?
उसे किसी से बात करते देखने पर या एक बार बात करने पर ऐसा नहीं लगा कि कम से कम एक बार या बार-बार बात करूँ?
किसी से बात करते हुये कभी नर्वस नहीं हुये ?
किसी विपरीतलिंगी को देखकर आकर्षण नहीं हुआ ?
उसकी खासियतें बार-बार दिमाग में नहीं घूमती रहीं ?
या कभी किसी को प्रभावित करने का मन नहीं किया ?
उसका नाम लेकर बिना कुछ बताये बार-बार उसके बारे में बात करने का मन नहीं हुआ ?
कभी आप सजे सँवरे हो तो लगा हो कि उसकी नजर जरूर पड़े,
नहीं पड़ी तो अच्छा नहीं लगा !

अगर ये सब हुआ है आपके साथ तो फिर प्रेम नहीं तो क्या है !
अगर नहीं तो फिर आप पक्का झूठ बोल रहे हो !

अरे इसे तुम प्रेम कहती हो ?
मैने हँसकर कहा !
मैने कहा अरे ये तो हुआ है,
इसमें से सब कुछ नहीं तो थोड़ा कुछ !
हाँ ऐसे एहसास तो जीवन में हुये हैं !
और एक बार नहीं दो-तीन बार !

लेकिन ये प्रेम कहाँ होता है !
उसने कहा प्रेम नहीं तो और क्या है ये ?

और आप ने ये एक बार नहीं कई बार महसूस किया है,
और कह रहे हो कि कभी किया ही नहीं !
बड़े मँझें हुये खिलाड़ी महसूस होते हो,
अबकी सवाल पूँछने वाले की आवाज में रोष था,
चेहरे पर गुस्सा और नजरें पढ़ने पर महसूस हुआ कि शायद मेरी कुछ इज्जत भी कम हुई !

मुझे समझ नहीं आया कि मैं गलती पर हूँ या फिर सवाल ही गलत है !
मुझे बोलना ही पड़ा !

ये प्रेम नहीं बस आकर्षण होता है 
और यह स्वाभाविक भी है क्योंकि ईश्वर ने हमारे अंदर ऐसी प्रोग्रामिंग की है !
दो विपरीत ध्रुव आपस में खिंचते ही हैं !
और यह बात कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है !
और शायद ये प्री होता है ! 
और प्रेम मेन्स होता होगा !

जैसे एक कच्ची मिट्टी का बर्तन समझो !
और यह जब यह पक जाता है तब यही बर्तन कहलाता है !
यही प्रेम होता है अन्यथा कच्ची मिट्टी में फिर से बदल जाता है फिर से चाक पर चढ़ने के लिये तैयार हो जाता है !

खैर अब समझ आया कि शायद तुम उसी प्रेम की बात कर रही हो,
जो आजकल फिल्मों में,कहानियों में और उपन्यासों में,
बस में,ट्रेन में और आजकल एयरपोर्ट पर भी !
स्कूल में,काॅलेज में,कोचिंग में कभी प्रतियोगी परीक्षा में भी,
मंदिर-मस्जिद-चर्च-गुरुद्वारे और तीर्थयात्राओं में भी,
गीत में-कविताओं में-गज़ल में और शायरी में भी !
साहिर-इमरोज़,हीर-राँझा,लैला-मजनू,शीरी-फरहाद और रोमियो-जूलिएट इन्हीं सब की बात कर रही हो ना ?
जिसके लिये इन्हें याद किया जाता है ?
जो आजकल दिखता है !
वही प्रेम ना ?

राधा-कृष्ण का नाम नहीं लिया तुमने !

मैं इन सबके साथ जोड़कर उनका अपमान नहीं करना चाहता !
और तुमसे भी मेरा निवेदन है इन लोगों के साथ उनका नाम मत जोड़ा करो !

ऐसा क्यों ?
पहले तुम्हारे सवाल का जबाब दे दूँ फिर आखिरी में इस सवाल का जबाब दूँगा !

वहीं लौटता हूँ !
अगर यही प्रेम होता है तो फिर मैने कभी भी प्रेम नहीं किया है !
वो अवाक थी मैं बोल रहा था अपनी रौ में !

क्योंकि जब आपके पैर अपनी जमीं पर रहें !
आपको अपनी उड़ान की हद पता रहे !
अपनी जिम्मेदारियाँ याद रहें !
जाति की दीवारों की ऊँचाई मालूम हो !
हैसियत का अन्दाजा रहे,
एक दूसरे के सम्मान की परवाह रहे !
किसी को पाने से ज्यादा उसे खो सकने की हिम्मत रहे !
जब आपके रिश्ते मिलने के मोहताज न हों !
आपका दिल दिमाग को अपने वश में न कर पाया हो,
आप मिलने की बजाय किसी से दूरी इसलिये बनाये रखें कि आप इतिहास बनने के लायक नहीं !
और सबसे अन्त में जब पाना बहुत आसान भी हो लेकिन आप अपने आत्मसम्मान को दाँव पर इसलिये न लगा सकते हों क्योंकि ये आपके लिये न कीमती होकर आपसे ज्यादा दूसरे को दुःख पहुँचायेगा !
बस यही बात है कि 
मैने कभी प्रेम किया ही नहीं !

क्योंकि इतनी शर्तें पूरी करने की काबिलियत मैं नहीं रखता !
इसीलिये सबसे पहले भी यही कहा था !

उसके चेहरे पर कौन से भाव थे,
मुझे नहीं मालूम जैसे वो कथित छत्र जो ज्वालादेवी के भवन में टूटा पड़ा है उसकी धातु को कोई नहीं बता पाया !

उसने धीरे से साँस ली और पसीना पोंछा !
मैं धीमे से मुस्कुरा कर पीछे पलट चुका था !
और आगे चल दिया !

मुझे लगा कि किसी ने मुझे पुकारा !
मैने अपने गहरे काले चश्मे के पीछे छुपी आँखों से देखा,
वो देख रही थी अभी मुझे !

उसने धीमे से बुदबुदाया !
और राधा-कृष्ण के बारे में नहीं कहेगें कुछ !

मैने कहा !
क्या कहूँ ?

अब भी तुम्हें लगता है कि प्रेम किया उन्होने ?
उनका नाम इस लिस्ट से काट दो !

उसके होठ कुछ कहना चाहते थे,
लेकिन उसकी निगाहें मेरे चश्मे के काले शीशों को बेध जाना चाहती थी !
पूँछने से ज्यादा कुछ देखना चाहती थी !

इससे आगे मैं कुछ बोल न सका !
और खामोशी से मुड़ कर चल दिया !

पीछे खामोशी थी अब !!

द्वारा-साहिल 
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2nd November 2022 
00:47 AM 

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